Kesari Chapter 2 Review: इतिहास को कुरेदती पर संवेदनाओं में कमजोर, वीकेंड प्लान से पहले पढ़ लें रिव्यू
अक्षय कुमार-अनन्या पांडे और आर माधवन स्टारर फिल्म केसरी चैप्टर 2 सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। 13 अप्रैल 1919 में अमृतसर के जलियांवाला बाग हत्याकांड पर आधारित इस फिल्म में अक्षय कुमार एडवोकेट सी शंकरन नायर के किरदार में दिखाई दिए। अक्षय ने इस फिल्म में इतिहास तो दिखाया लेकिन अगर आप इस हत्याकांड के बारे में पढ़ चुके हैं तो कहीं-कहीं आपके मन में सवाल उठ सकते हैं।

स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। 13 अप्रैल, 1919 को बैसाखी के दिन पंजाब के गर्वनर माइकल ओ'डायर के आदेश पर ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड डायर ने जलियांवाला बाग में शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन करने वाले निहत्थे हिंदुस्तानियों पर तब तक गोलियां बरसाई जब तक वह खत्म नहीं हो गईं। हजारों मासूम लोगों की मौत पर ब्रिटिश साम्राज्य ने कभी माफी नहीं मांगी। बीते दिनों सोनी लिव पर रिलीज वेब सीरीज द वेकिंग आफ ए नेशन में इस नरसंहार के पीछे की साजिशों को दर्शाया गया था।
इस नरसंहार के 21 साल बाद माइकल ओ'डायर को सरदार उधम सिंह ने मारकर देश को गुलाम बनाने वाले अंग्रेजों की नींद उड़ा दी थी। इस पर शूजित सरकार की फिल्म सरदार उधम ने झकझोर कर रख दिया था। देश के इतिहास की प्रचलित घटनाओं को केसरी फ्रेंचाइज फिल्म में लाने वाले निर्माता करण जौहर ने अब केसरी चैप्टर 2 : द अनटोल्ड स्टोरी आफ जलियांवाला बाग में जनरल डायर को अदालत में खींचने वाले भारतीय वकील सर सी शंकरन नायर पर यह फिल्म बनाई है। बेहद संवेदनशील मुद्दे पर बनीं इस फिल्म में संवेदनाएं कहीं दब गई हैं।
केसरी 2 चैप्टर की क्या है कहानी?
कहानी का आरंभ जलियांवाला बाग से होता है जहां हजारों की संख्या में लोग एकत्र हो रहे होते हैं। फिर जनरल डायर ( साइमन पेस्ले डे) आकर उन पर गोलियां चलवाता है। वायसराय काउंसिल में एकमात्र भारतीय वकील सी शंकरन नायर (अक्षय कुमार) इस घटनाक्रम के लिए जनरल डायर को दोषी मानते हैं, जबकि बाकी सभी अंग्रेज सदस्य उन्हें निर्दोष करार देते हैं। फिर वकील दिलरीत गिल (अनन्या पांडेय) शंकरन को इस हत्याकांड को लेकर चेताती है।
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शंकरन उसके साथ जनरल डायर के खिलाफ अदालत में मुकदमा लड़ते हैं। उन्हें टक्कर देने आता है आधा एंगो इंडियन वकील नेविल मैककिनले (आर माधवन)। अदालती जिरह में जनरल डायर के निर्णयों पर शंकरन सवाल उठाते हैं।
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जलियांवाला बाग हत्याकांड की कहानी में ये मिस कर गए निर्देशक
निर्देशक करण सिंह त्यागी ने अमृतपाल बिंद्रा के साथ मिलकर फिल्म की पटकथा भी लिखी है। फिल्म शंकरन के केरल की प्राचीन मार्शल आर्ट कलरीपायट्टु में पांरगत होने की जानकारी देने और कथकली करते हुए उनके व्यक्तित्व से परिचित कराने से होती है। यह उनके पारिवारिक पृष्ठभूमि की जानकारी नहीं देती। शुरुआत जलियांवाला बाग नरसंहार से होता है, जिसमें एक बच्चा रोलेट एक्ट के खिलाफ पर्चे बांट रहा है, लेकिन इस एक्ट के बारे में भी कोई जानकारी नहीं दी जाती।
सेना की टुकड़ी द्वारा की गई अंधाधुन गोलीबारी का यह दृश्य दिल दहला देने वाला होना चाहिए था, लेकिन स्क्रीन पर उस भयावहता को दर्शा पाने में निर्देशक कामयाब नहीं पाते हैं। फिल्म में हंटर कमीशन का भी कोई जिक्र नहीं आता है। जलियांवाला बाग के बाद भी जनरल डायर का कैसा रवैया रहा, उसने प्रेस पर किस प्रकार अकुंश लगाया? भारतीयों का दमन किस तरह से किया? उसके बारे में फिल्म गहराई से बात नहीं करती। यहां पर वही पुराना डाग एंड इंडियंस आर नॉट अलाउड का बोर्ड दिखाकर अंग्रेजी मानसिकता दिखा दी गई है।
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फिल्म जलियांवाला बाग कांड की सुनवाई तक पहुंचने में इंटरवल का समय लेती है, जबकि इस मामले को अदालती कार्यवाही पर ज्यादा फोकस करने की जरूरत थी। डायर की बर्बरता को बारीकी से दिखाने की जरूरत थी। जनरल डायर के साथ इस हत्याकांड को अंजाम देने में माइकल ओ'डायर की सबसे बड़ी भूमिका थी। फिल्म उन्हें कठघरे में नहीं खड़ा करती है। दलीलें और सबूत ऐसे होने चाहिए थे कि आपका गला रुंध जाए, मन आक्रोशित हो जाए, लेकिन फिल्म यहां पर पूरी तरह असफल रहती है। इस संवेदनशील मुद्दे की स्क्रिप्ट पर और गहराई से काम करने की जरूरत थी, ताकि अंग्रेजों को 106 साल बाद ही सही, उनकी गलती का अहसास करा पाती। इस मामले में यह फिल्म शूजित सरकार की सरदार उधम से काफी पीछे लगती है।
क्या सी शंकरन की भूमिका में उभर कर आए अक्षय कुमार?
सबसे अहम बात शंकरन दक्षिण भारतीय थे, ऐसे में अक्षय कुमार को विशुद्ध रूप से हिंदी में बोलते देखना भी अटपटा लगता है। पूरी फिल्म में बस एक जगह उनका संवाद मलयालम में है। अगर उनकी जगह कोई साउथ इंडियन कलाकार होता, जिसके उच्चारण में दक्षिण भारतीय लहजा होने के साथ बीच-बीच तमिल बोलता, तो फिल्म का पूरा फ्लेवर मिलता। ऐसा नहीं है कि अक्षय ने फिल्म में गंभीरता लाने के लिए अपना योगदान नहीं दिया है, लेकिन केसरी चैप्टर 2 की समस्या यह है कि नायक की भाषाई और व्यवहार संबंधी विशेषताओं के साथ बहुत अधिक लापरवाह है।
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जनरल डायर की पैरवी करने वाले वकील की भूमिका में आर माधवन के हिस्से में चंद दमदार दृश्य हैं। फिल्म जाट के बाद रेजिना कैसेंड्रा एक बार फिल्म साउथ इंडियन पत्नी की भूमिका में हैं। हालांकि यहां पर उन्हें कुछ खास करने का मौका नहीं मिला है। माइकल ओ'डायर की भूमिका में मार्क बेनिंगटन हैं। उनके पात्र को समुचित तरीके से गढ़ा नहीं गया है। जनरल डायर की भूमिका में सिमोन पेस्ले डे हैं। वह अपनी भूमिका में डायर की भारतीयों के प्रति घृणा को बखूबी चित्रित करते हैं। जज मैकआर्डी बने स्टीवन हार्टले भी भूमिका साथ न्याय करते हैं।
मसाबा गुप्ता का क्लब में डांस अनावश्यक
फिल्म दर फिल्म अनन्या पांडेय के अभिनय में निखार आ रहा है। वकील की भूमिका में वह प्रभावित करती हैं। कानूनी सलाहकार की भूमिका में अमित सियाल पात्र के अनुरूप हैं। दृश्यों में घटनाओं की गति और लय बनाए रखने में संगीत से उपयुक्त मदद ली गई है। फिल्म में मसाबा गुप्ता का क्लब में डांस का सीक्वेंस अनावश्यक लगता है। यह एक गंभीर मुद्दे की तंद्रा को तोड़ने का काम करता है।
यह फिल्म रघु पलात और पुष्पा पलात द्वारा लिखी किताब द केस दैट शुक द एम्पायर पर आधारित है। किताब पढ़ते हुए कई बार आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे, लेकिन फिल्म देखते हुए आप कहीं से भी शुक (हिलाकर रख देना) नहीं होते।
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