Move to Jagran APP

Kuttey Film Review: अर्जुन कपूर और तब्बू की फिल्म का नाम 'कुत्ते', पर कहानी में 'वफादारी' नदारद

Kuttey Film Review कुत्ते फिल्म का निर्देशन विशाल भारद्वाज के बेटे आसमान भारद्वाज ने किया है। आसमान और विशाल भारद्वाज की लिखी कहानी में दम नहीं है। कुत्ते को लेकर फिल्म के निर्देशक को कई अपेक्षाएं है। फिल्म में अर्जुन कपूर है।

By Rupesh KumarEdited By: Rupesh KumarUpdated: Fri, 13 Jan 2023 11:46 AM (IST)
Hero Image
Kuttey Film Review: फिल्म कुत्ते में कई कलाकारों की अहम भूमिका है।

प्रियंका सिंह, मुंबई। Kuttey Film Review: ओमकारा, मकबूल और हैदर फिल्मों के निर्देशक विशाल भारद्वाज के बेटे आसमान भारद्वाज की बतौर निर्देशक पहली फिल्म कुत्ते इस साल सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली पहली बड़ी हिंदी फिल्मों में शामिल है।

कहानी की शुरुआत होती है साल 2003 से, जहां नक्सल लक्ष्मी (कोंकणा सेन शर्मा) को पुलिस ने पकड़ रखा है। पुलिस स्टेशन पर हमला कर नक्सलियों की टोली उसे वहां से छुड़ा ले जाती है। कहानी 13 साल आगे बढ़ती है। भ्रष्ट पुलिस अधिकारी गोपाल (अर्जुन कपूर) और पाजी (कुमुद मिश्रा) पुलिस डिपार्टमेंट में रहते हुए भी ड्रग्स के धंधे में लिप्त हैं।

ड्रग माफिया नारायण खोबरे उर्फ भाऊ (नसीरुद्दीन शाह) इस धंधे में अपने प्रतिद्वंदी को मारने के लिए गोपाल और पाजी को भेजता है। भाऊ के प्रतिद्वंदी को मारने के बाद गोपाल और पाजी वहां मौजूद ड्रग्स साथ लेकर निकलते हैं, लेकिन पकड़े जाते हैं। दोनों को निलंबित कर दिया जाता है।

सीनियर पुलिस अफसर पम्मी (तब्बू) कहती है कि नौकरी पर लौटने के लिए दोनों को एक-एक करोड़ रुपये देने होंगे, तब वह कुछ सेटिंग कर पाएगी। नारायण की बेटी लवली (राधिका मदान) अपने पिता के लिए काम करने वाले दानिश (शार्दुल भारद्वाज) से प्यार करती है, लेकिन उसकी शादी कहीं और तय है। उसे अपने प्रेमी के साथ दूसरे देश निकलना है, जिसके लिए उसे एक करोड़ रूपये चाहिए।

यह भी पढ़ें: Friday Box Office Clash- मकर संक्रांति पर बढ़ेगा बॉक्स ऑफिस का तापमान, 'कुत्ते' के साथ आ रहीं ये 5 फिल्में

पैसे जमा करने का इन सबके पास एक ही रास्ता है। वह है पैसों से भरी वैन, जिसे लूटने का प्लान गोपाल, पाजी और पम्मी अपने-अपने तरीके से बनाते हैं। लवली और दानिश भी परिस्थितियों के मुताबिक उस प्लान से जुड़ जाते हैं। क्या वह वैन लूट पाएंगे, कहानी इस पर आगे बढ़ती है?

2 घंटा अवधि, फिर भी लम्बी लगती है फिल्म 

भले ही फिल्म की अवधि दो घंटे से कम है, उसके बावजूद लगता है कि फिल्म लंबी है। इंटरवल से पहले का हिस्सा बहुत धीमा है। बार-बार नजर घड़ी पर जाती है कि इंटरवल कब होगा, इस उम्मीद के साथ कि शायद इंटरवल के बाद कहानी रफ्तार पकड़ेगी, लेकिन ऐसा होता नहीं है। हालांकि, बीच-बीच में कुछ दृश्य जरूर आते हैं, जो हंसाते हैं, जैसे गोपाल का सबसे बंदूकें फेंकने के लिए कहने वाला दृश्य है, ड्राइवर को पकड़ने के लिए उसके पीछे भागने वाला पम्मी और पाजी का सीन।

फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी है, आसमान की लिखी कहानी और स्क्रीनप्ले। एडिशनल स्क्रीनप्ले में विशाल का साथ भी रहा है। आसमान स्मार्टनेस दिखाते हुए वक्त बचाने के लिए किसी भी पात्र के निजी जीवन में नहीं जाते हैं, लेकिन उनका यह प्रयोग सही साबित नहीं होता है। सारे पात्र लक्ष्यहीन लगते हैं। खुले आम गोलियां बरसाने वाले पुलिस वालों पर कोई केस नहीं बनता, ना ही किसी का ध्यान जाता है, यह हैरान करता है। हालांकि, पहली फिल्म के मुताबिक आसमान का निर्देशन अच्छा है। जिम्मेदार निर्देशक की तरह उन्होंने हर फ्रेम, उसके मुताबिक बैकग्राउंड स्कोर, कैमरा एंगल पर बारीकी से काम किया है।

बंदूकें चलाते हुए स्वैग से भरपूर सितारे, तेज बैकग्राउंड म्यूजिक के बीच बजता कमीने फिल्म का रीक्रिएट किया हुआ गाना फिर ढैन टेणां... इसे एक स्टाइलिश फिल्म बनाता है। आसमान के निर्देशन में विशाल की झलक दिखती है। विशाल के लिखे संवाद प्रभावशाली और मजेदार हैं, जिनमें चाहे पम्मी का पुरुषों पर किया गया कमेंट हो या फिर मेंढक और बिच्छू की कहानी में कैरेक्टर और लॉजिक की कश्मकश या फिर नक्सली लक्ष्मी का दमदार संवाद सिर्फ तू और तेरा मालिक देश नहीं है, हम भी हैं। देश से नहीं, देश में तुम जैसों से आजादी चाहिए।

एंटीहीरो बन जंचे अर्जुन कपूर

अर्जुन कपूर एंटी हीरो की भूमिका में सहज लगते हैं, यह उनका कंफर्ट जोन भी है। तब्बू दमदार लगी हैं, कुमुद मिश्रा छाप छोड़ते हैं। नसीरुद्दीन शाह ड्रग माफिया की नकारात्मक भूमिका में याद रह जाते हैं। राधिका मदान के हिस्से बहुत सीन तो नहीं आए हैं, लेकिन जितने भी आए हैं, उसमें उनकी मेहनत दिखाई देती है।

View this post on Instagram

A post shared by Arjun Kapoor (@arjunkapoor)

कोंकणा सेन शर्मा को नक्सली क्यों बनाया गया, उसका कोई जिक्र नहीं है, बैकग्राउंड ना होने की वजह से उनका किरदार दिशाहीन लगता है। फरहाद अहमद देहिवि की सिनेमैटोग्राफी की तारीफ करनी होगी, क्योंकि रात में शूट हुई इस फिल्म को वह कहीं से भी अंधेरे में खोने नहीं देते हैं। विशाल का संगीत इस फिल्म की जान है।हालांकि, लाल आसमान के बैकग्राउंड में नक्सलियों की आजादी पर बना एक पूरा गाना फिल्म को कोई दिशा नहीं देता है। फिल्म का शीर्षक समझ नहीं आता, क्योंकि इसमें कोई भी पात्र किसी से कुत्ते की तरह वफादारी करता नहीं दिखता है।

यह भी पढ़ें: Naatu Naatu के गोल्डन ग्लोब जीतने पर पूजा भट्ट ने RRR का किया बचाव, कहा- दूसरों का सुख बर्दाश्त नहीं

यह भी पढ़ें: Malaika Arora ने लेटेस्ट आउटिंग की तस्वीरें की शेयर, नेपाली थाली का स्वाद चखती आई नजर

फिल्म– कुत्ते

मुख्य कलाकार– अर्जुन कपूर, तब्बू, राधिका मदान, नसीरुद्दीन शाह, कोंकणा सेन शर्मा, कुमुद मिश्रा

निर्देशक– आसमान भारद्वाज

अवधि– 1 घंटा 52 मिनट

रेटिंग– दो