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    Kesari Veer Review: कमजोर पटकथा में दब गई साहस की सच्‍ची कहानी? सुनील शेट्टी के सामने फीके पड़े सूरज पंचोली

    सूरज पंचोली एक लंबे समय बाद फिल्म केसरी वीर के साथ पर्दे पर लौटे हैं जहां उन्होंने राजपूत योद्धा हमीरजी गोहिल का किरदार निभाया जिन्होंने सोमनाथ मंदिर की सुरक्षा के लिए अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति संग युद्ध लड़ा था। मूवी में उनके साथ विवेक ओबेरॉय और सुनील शेट्टी भी हैं। कैसी है फिल्म की कहानी यहां पर पढ़ें रिव्यू

    By Smita Srivastava Edited By: Tanya Arora Updated: Fri, 23 May 2025 04:27 PM (IST)
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    कैसी है सूरज पंचोली-सुनील शेट्टी की केसरी वीर/ फोटो- Jagran Graphics

    स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। भारतीय इतिहास के कई गुमनाम शूरवीरों को हिंदी सिनेमा समय-समय सामने लाता रहा है। बीते दिनों रिलीज विक्‍की कौशल अभिनीत फिल्‍म छावा में छत्रपति संभाजी महाराज के गौरवशाली इतिहास को दर्शाया गया। अब राजपूत योद्धा हमीरजी गोहिल को निर्माता कनुभाई चौहान लेकर आए हैं।

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    उन्‍होंने ही कहानी भी लिखी है। हमीरजी ने सोमनाथ मंदिर की रक्षा के लिए अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति जलालुद्दीन जफर खान के खिलाफ लड़ाई लड़ी और अपने प्राणों की आहुति दे दी। उनकी वीरकथा को एक्‍शन पीरियड ड्रामा केसरी वीर में दर्शाया गया है।

    जफर खान के खिलाफ हमीरजी के साहस की कहानी

    फिल्‍म का आरंभ सूत्रधार शरद केलकर की आवाज में सोमनाथ मंदिर की पृष्‍ठभूमि बताने के साथ होता है। कहानी 14 वीं सदी में सेट है। यह वो दौर था जब तुगलकी शासकों ने भारत की धरती पर हुकूमत करना शुरू कर दिया था। हिंदू और हिंदुत्‍व को मिटाने की साजिश रची जा रही थी। हमीरजी (सूरज पंचोली) के साहस और पराक्रम की झलक देने के साथ फिल्‍म की शुरुआत होती है। उनकी मुलाकात राजल (आकांक्षा शर्मा) से होती है। धीरे-धीरे दोनों की प्रेम कहानी परवान चढ़ती है। उधर तुगलकी सेना का बेरहम सेनापति जलालुद्दीन जफर खान (विवेक ओबेराय) सोमनाथ मंदिर को लूटने के इरादे से सौराष्‍ट्र आता है।

    kesari veer review

    Photo Credit-Youtube

    मारवाड़ के मंदिर और राज्‍यों को लूटते हुए वह पाटन की ओर बढ़ता है। वह हिंदुओं पर धर्म परिवर्तन का दबाव बनाता है। ऐसा न करने पर उन पर अत्‍याचार करता है। उसका सामना हमीरजी से होता है। हमीरजी उसकी चुनौती को शिकस्‍त देने में कामयाब हो जाते हैं, जिससे जफर तिलमिला जाता है। वह पूरे गांव को जला देता है। पवित्र सोमनाथ मंदिर को लूटने से बचाने के हमीरजी उसका सामना करने आते है। उसमें राजल के पिता और कबायली भीलों के नेता वेगड़ा जी (सुनील शेट्टी) भी उसके साथ आते हैं। 

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    kesari veer review

    Photo Credit-Youtube

    युद्ध से ज्यादा प्रेम कहानी को खींचा गया है लंबा

    केसरी वीर को बनाने वाले कनुभाई, निर्देशक प्रिंस धीमान की यह पहली फिल्‍म है। उन्‍होंने अपने पहले प्रयास में देश की गौरवान्वित गाथा को उठाने का सराहनीय प्रयास किया है। सिनेमेटोग्राफर विकास जोशी ने सौराष्‍ट्र की संस्‍कृति को बहुत प्रभावशाली तरीके से दिखाया है। फिल्‍म के कुछ विजुल्‍स शानदार है जो फिल्‍म को भव्‍यता प्रदान करते हैं। हालांकि क्षितिज श्रीवास्‍तव द्वारा लिखे संवादों और स्‍क्रीनप्‍ले में कसाव न होना इसकी सबसे बड़ी कमी है। संवाद भी प्रेरक और चुटकीले नहीं बन पाए हैं। सत्‍या शर्मा और सुमंत शर्मा 161 मिनट अवधि की इस फिल्‍म को अनावश्‍यक दृश्‍यों को संपादित करके उसे चुस्‍त बना सकते थे।

    हमीरजी और राजल की प्रेमकहानी को काफी लंबा खींचा गया है। युद्ध आधारित इस फिल्‍म में लेखक और निर्देशक इमोशन को समुचित तरीके से उकेर नहीं पाए हैं। जफर का आतंक जितना संवादों में परिलक्षित होता है उतना परदे पर नहीं। फिल्‍म की सबसे बड़ी दिक्‍कत यह है कि इसमें सिनेमाई लिबर्टी काफी ली गई है। बेहतर होता है कि वास्‍तविकता के करीब रखते हुए फिल्‍म हमीरजी के साहस और पराक्रम पर ज्‍यादा फोकस होती। फिल्‍म की कमजोर कड़ी इसका वीएफएक्‍स भी है। कुछ सीक्‍वेंस में फिल्‍म का बैकग्राउंड संगीत महादेव को समर्पित है और गुजराती संस्‍कृति को बेहतर तरीके से पेश करता है। खास तौर पर कैलाश खेर का गाया शंभू हर हर भक्ति में रमा देगा।

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    सूरज पंचोली को एक्सप्रेशन पर करनी होगी कड़ी मेहनत

    कलाकारों की बात करें तो पहली बार पीरियड फिल्‍म का हिस्‍सा बने सूरज पंचोली भावों की अभिव्‍यक्ति में कमजोर नजर आते हैं। हालांकि एक्‍शन में वह खरे उतरे हैं। कमजोर पटकथा के बावजूद वेगड़ाजी की भूमिका में सुनील शेट्टी अपना रंग जमाते हैं। एक्‍शन दृश्‍यों में वह जंचते हैं। हमीरजी और वेगड़ा के बीच आपसी लड़ाई का दृश्‍य रोमांचक है। इस फिल्‍म से आकांक्षा शर्मा अभिनय की दुनिया में कदम रख रही हैं। वह खूबसूरत दिखी हैं। खलनायक बने विवेक ओबेराय मिले हुए अवसर को भुना पाने में नाकामयाब रहे हैं।

    यह प्रेरक कहानी है, लेकिन निर्माता निर्देशक सुमचित भावों के साथ उसे परदे पर साकार नहीं कर पाए हैं। मगर इस साहसिक कहानी को सामने लाने के लिए फिल्‍म की टीम बधाई की पात्र है।

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