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    Jatadhara Review: इंटरवल तक नहीं सुलझा पाएंगे ये गुत्थी, दिशाहीन फिल्म है सोनाक्षी की 'जटाधारा'

    By DEEPESH PANDEYEdited By: Tanya Arora
    Updated: Fri, 07 Nov 2025 03:56 PM (IST)

    Jatadhara Movie Review: सोनाक्षी सिन्हा ने फिल्म 'जटाधारा' से साउथ सिनेमा का रुख किया, जिसमें वह सुधीर बाबू संग नजर आई। इस फिल्म ने उन्होंने पहली बार 'पिशाचिनी' का किरदार निभाया। 'जटाधारा' को हॉरर बनाने के चक्कर में मेकर्स पूरी तरह से दिशाहीन हो गए। इंटरवल तक किस कंफ्यूजन में रहेंगे आप, पढ़ें पूरा रिव्यू: 

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    जटाधारा मूवी रिव्यू/ फोटो- Jagran Graphics

    दीपेश पांडेय, मुंबई। इन दिनों दक्षिण भारतीय सिनेमा में भारतीय संस्कृति और परंपराओं से जुड़ी कहानियां खूब दिखाई जा रही हैं। हालांकि, यह जरूरी नहीं है कि ऐसी सारी फिल्में अच्छी ही हो। फिल्म जटाधारा उसी का उदाहरण है।

    क्या है 'जटाधारा' की कहानी?

    फिल्म की कहानी शुरू शोभा (शिल्पा शिरोडकर) को दिखे एक सपने से होती है, जिससे उन्हें पता चलता है कि उनके घर में बड़ा खजाना है, लेकिन उसे पाने के लिए धन पिशाचिनी (सोनाक्षी सिन्हा) को खुश करना पड़ेगा। उसके बाद कहानी घोस्ट हंटर (भूतों को खोजने वाला) शिवा पर आती हैं, जिसे स्वयं भूतों में विश्वास नहीं होता है।

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    बचपन में अपने दोस्त के साथ हुई एक घटना के कारण वह भूतों और आत्माओं की तलाश में शहर के सबसे डरावने स्थानों पर जाता है। ऐसे ही एक स्थान पर उसकी मुलाकात सितारा (दिव्या खोसला) से होती है, जो अलग-अलग स्थानों की प्राचीन मूर्तियों पर शोध कर रही होती है। दोनों के बीच प्यार पनपता है। इसी बीच शिवा को खजाने वाले स्थान और धन पिशाचिनी के बारे में पता चलता है, वह भी उस स्थान पर पहुंचता है। जहां उसे उस स्थान से अपने बचपन के जुड़ाव का पता चलता है। अब शिवा धन पिशाचिनी पर काबू कर पाता है या मृत्यु उस पर विजय प्राप्त करती है, फिल्म इसी बारे में है।

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    कमजोर है फिल्म का निर्देशन

    फिल्म की कहानी बिखरी हुई है। कहानी किस दिशा में जाएगी या उसका उद्देश्य क्या है, यह इंटरवल तक भी नहीं पता चलता है। इंटरवल के बाद थोड़े रोमांचक सीन दिखते हैं। निर्देशन और एडिटिंग दोनों ही बहुत कमजोर है। फिल्म देखते हुए मन में कई सवाल उठते हैं, जिनका जवाब और तर्क दर्शकों को अपने मन से ही निकालना पड़ता है। फिल्म में उनके कोई जवाब नहीं हैं।

    अभिनय के मामले में सुधीर बाबू ने अपने हिस्से में आए काम को ईमानदारी से करने की कोशिश की है, लेकिन कई जगहों पर ऐसा लगता है कि आखिर नायक वह चीजें कर ही क्यों रहा है?

    दांत किटकिटाती रह गईं सोनाक्षी सिन्हा

    25 साल बाद बड़े पर्दे पर वापसी कर रही अभिनेत्री शिल्पा शिरोडकर के हिस्से में कुछ अच्छे सीन आए हैं, जिनमें वह प्रभावित भी करती हैं। अपनी पहली तेलुगु फिल्म में धन पिशाचिनी की भूमिका सोनाक्षी के लिए कुछ अलग करने का मौका था। हालांकि, पूरी फिल्म में वह सिर्फ दांत किटकिटाती और चिल्लाती रह गई। कई बार तो यह भी मन में यह भी सवाल उठते हैं कि आखिर उन्होंने इस फिल्म को स्वीकार क्‍यों किया। फिल्म में धन पिशाचिनी को मनाने के लिए महाकाली की पूजा करना भी बेतुका सा लगता है।

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    फिल्म में कई स्थानों पर सनातन धर्म को वैज्ञानिक तर्कों से भी जोड़ने की कोशिश की गई है, लेकिन वह सब सिर्फ भाषणनुमा लगता है। बैकग्राउंड म्यूजिक भी प्रभावित नहीं कर पाता है। फिल्म के गाने भी जबरदस्ती ठूंसे लगते हैं। अंत में फिल्म की सीक्वल भी बनाए जाने का संकेत है। इस बीच फिल्म में अगर कुछ भी अच्छा है तो वह है फिल्म का आर्ट डायरेक्शन, बड़े-बड़े सेट और सुधीर बाबू, शिल्पा शिरोडकर, इंदिरा कृष्णन और रोहित पाठक जैसे कलाकारों का अभिनय। बाकी यह फिल्म मनोरंजन कम और बोर ज्यादा करती है।

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