IB 71 Review: गुमनाम नायकों की कहानी है विद्युत जामवाल की यह फिल्म, रोमांच के साथ होगा गर्व
IB 71 Movie Review विद्युत जामवाल ने इस फिल्म के साथ बतौर निर्माता भी डेब्यू किया है। वो फिल्म में एक भारतीय एजेंट के किरदार में नजर आये हैं जो भारत-पाक युद्ध के दौरान दुश्मनों की एक बड़ी साजिश को नाकाम करता है।
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। अपनी एक्शन फिल्मों के लिए पहचान रखने वाले विद्युत जामवाल ने फिल्म आईबी 71 से फिल्म निर्माण में भी कदम रख दिया है। फिल्म में अभिनय करने के साथ वह इसके निर्माता भी हैं। यह सीक्रेट मिशन की कहानी है, जिसे खुफिया एजेंसी के गुप्तचरों ने अंजाम दिया।
भारत-पाक युद्ध की बैकग्राउंड पर है कहानी
शुक्रवार को सिनेमाघरों में पहुंची फिल्म की कहानी सच्ची घटना पर आधारित है और भारत-पाकिस्तान युद्ध की पृष्ठभूमि में दिखायी गयी है। भारतीय खुफिया एजेंटों को जानकारी मिलती है कि पाकिस्तान और चीन दस दिन बाद भारत पर दोतरफा हवाई हमला करने की तैयारी में हैं। ऐसे में एयरस्पेस को बंद करने का ही विकल्प था।
उधर, कश्मीर की आजादी की मांग को लेकर जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के सरगना मकबूल भट्ट ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर कश्मीर की समस्या को उठाने के लिए भारतीय विमान के अपहरण की योजना बनाई। इसके लिए 17 साल और 19 साल के दो कश्मीरी युवाओं को चुना था। दोनों कश्मीर से पाकिस्तान पहुंचे थे।
उन्हें मकबूल के खिलाफ सूचना एकत्र करने लिए भेजा गया था, पर मकबूल से मुलाकात के बाद वे उसके ही संगठन में शामिल हो गए। उन्हें पाकिस्तान में हाइजैकिंग का प्रशिक्षण दिया गया। श्रीनगर वापस लौटते समय इनमें एक युवक पकड़ा गया। वह सच कुबूल कर देता है कि कैसे मकबूल हाइजैकिंग की योजना बना रहा है।
उसने बताया था कि दो और लोग उस काम को अंजाम देने वाले हैं। वह पुलिस का इनफॉर्मर बन जाता है। उसे एयरपोर्ट पर तैनात किया गया, ताकि संगठन के लोगों की पहचान कर सकें। हालांकि, वह अपने मकसद की तैयारी में जुटा होता है। खुफिया एजेंट उसकी हाइजैकिंग की योजना को देशहित में इस्तेमाल करते हैं।
वे गंगा विमान को अपहृत कराने की योजना बनाते हैं, जिसे सेवा से हटाया जा चुका है। अपहरणकर्ता विमान को रावलपिंडी की जगह लाहौर ले जाते हैं। पाकिस्तान से एक दिन बाद सभी यात्रियों को सुरक्षित भारत वापस भेज दिया गया, लेकिन मामला यहीं ठंडा नहीं हुआ।
हाइजैकिंग की खबर अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनी। भारत ने पाकिस्तान का एयर स्पेस बंद कर दिया। दरअसल, 1947 में पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच भारत की एयरस्पेस से ट्रेवल कर सकते थे। एयरस्पेस को बंद करने का मतलब था कि पाकिस्तानी जहाजों को अब श्रीलंका से घूमकर पूर्वी पाकिस्तान जाना पड़ता।
यह पैसे और समय की बड़ी बर्बादी होती। इसने पाकिस्तानी योजनाओं पर भी पानी फेर दिया। आईबी 71 इसी घटनाक्रम पर है।
द गाजी अटैक जैसा करिश्मा दिखाने में चूकी
फिल्म का निर्देशन संकल्प रेड्डी ने किया है, जिन्होंने इससे पहले द गाजी अटैक बनाई थी। यहां पर वह द गाजी अटैक जैसा करिश्मा दोहरा नहीं पाए हैं। फिल्म में भारतीय एजेंट देव की भूमिका में विद्युत जामवाल हैं। कहानी उनके इर्द-गिर्द ही है। जबकि खुफिया एजेंसी के प्रमुख की भूमिका में अनुपम खेर हैं। बतौर निर्माता विद्युत ने देश को गौरवान्वित करने वाली कहानी उठाई है, लेकिन पर्दे पर वह समुचित तरीके से साकार नहीं हो पाई है।
मध्यांतर से पहले कहानी बिखरी हुई लगती है। हालांकि, मध्यांतर के बाद गति आती है। कई कौतूहल वाले दृश्य आते हैं। फिल्म के स्क्रीनप्ले और संवादों पर ज्यादा काम किया गया होता तो यह शानदार फिल्म बन सकती थी। फिल्म में कासिम (विशाल जेठवा) के किरदार को समुचित तरीके से स्थापित नहीं किया गया है।
उसकी बैकस्ट्रोरी में लेखक नहीं गए हैं। हालांकि, उसे पर्दे पर विशाल ने बेहतर तरीके से जीवंत करने की पूरी कोशिश की है। मकबूल भट्ट का किरदार भी बहुत सतही है। ऐसे में उसे समझ पाना मुश्किल है।
फिल्म की अच्छी बात यह है कि विषय की संवेदनशीलता को देखते हुए इसमें कोई नाच गाना जबरन नहीं ठूंसा गया है। फिल्म की सिनेमेटोग्राफी नयनाभिरामी है। कश्मीर की बर्फीली वादियां और वहां की खूबसूरती को कैमरे में अच्छे से दर्शाया गया हैं। फिल्म में कश्मीर की डल झील में नावों के बीच चेजिंग सीन रोमांचक हैं। ऐसे शॉट्स को पहले किसी फिल्म में नहीं देखा गया है।
कलाकारों का सधा हुआ अभिनय
कलाकारों में विद्युत ने भारतीय एजेंट की भूमिका निभाई है। पाकिस्तानी कैंप में घुसकर रील निकालने का उनका दृश्य रोमांचक है। यहां पर उनके खाते में ज्यादा एक्शन सीन नहीं आए हैं, लेकिन अपने किरदार को उन्होंने शिद्दत से निभाने की कोशिश की है।
आईबी मुखिया के किरदार में अनुपम खेर हैं। वह अपने किरदार में सहज हैं। आईएसआई प्रमुख के किरदार में अश्वथ भट्ट, मकबूल भट के किरदार में नरेश मलिक ने अपने किरदार साथ न्याय किया है। जुल्फिकार अली भुट्टो के किरदार में दलीप ताहिल हैं। फिल्म में उनका कोई संवाद नहीं है, लेकिन वह अपनी उपस्थिति दर्ज करा ले जाते हैं।
1971 युद्ध की बात हो तो पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का जिक्र जरूर आता है। यहां पर वैसा नहीं है। हालांकि, रक्षा मंत्री के तौर पर जगजीवन राम (विमल वर्मा) को अवश्य दिखाया गया है। यह प्रसंग भी बहुत दिलचस्प नहीं बन पाया है। देश के गुमनाम नायकों को श्रद्धांजलि देती यह फिल्म उन पलों की जरूर याद दिलाती है, जिसे हमारे बहादुर एजेंटों ने अंजाम दिया।
कलाकार: विद्युत जामवाल, विशाल जेठवा, अश्वथ भट्ट, विमल वर्मा आदि।
निर्देशक: संकल्प रेड्डी
अवधि: 119 मिनट
स्टार: ढाई स्टार