स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। बांग्‍लादेश की राजधानी ढाका में एक जुलाई, 2016 को होली आर्टिसन कैफे में आतंकी हमला हुआ था। इस हमले में आतंकियों ने सभी विदेशी और गैर मुस्लिमों की निर्मम हत्‍या कर दी थी। इस हमले में एक भारतीय समेत 20 निर्दोष लोग मारे गए थे। इसी क्रूर घटना पर हंसल मेहता ने फिल्‍म फराज कहानी बुनी है।

बांग्लादेश में आतंकी हमले की कहानी

आरंभ में दर्शाया गया है कि पांच प्रशिक्षित युवा मिशन को अंजाम देने की तैयारी में हैं। वहीं, दूसरी ओर ढाका के संपन्न परिवार से ताल्लुक रखने वाले फराज अयाज हुसैन (जहान कपूर) की मां (जूही बब्‍बर) चाहती है कि फराज स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में जाकर पढ़ाई करे।

फराज अपने देश में रहकर ही कुछ करना चाहता है, वह इनकार कर देता है। वह अपनी दो महिला मित्रों से मिलने के लिए कैफे जाता है। इनमें एक कोलकाता से आई हुई हिंदू लड़की है, जबकि दूसरी बांग्‍लादेशी मुस्लिम। कैफे में सब अपने-अपने में मशगूल होते हैं।

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उसी समय निब्रस (आदित्‍य रावल) के नेतृत्‍व में ये युवा लड़के कैफे में मौजूद विदेशी नागरिकों को निर्ममता से मौत के घाट उतारने लगते हैं। वह धर्म विशेष के लोगों को बंधक बना लेते हैं। निब्रस ने फराज के साथ फुटबाल खेला होता है, वह फराज को जाने का मौका देता है, लेकिन वह अपनी महिला दोस्‍तों की वजह से जाने से इनकार कर देता है। धर्म की विचारधाराओं को लेकर फराज और निब्रस में थोड़ी बहस भी होती है। फराज अपनी हिंदू दोस्‍त को बचा पाएगा या नहीं कहानी इस संबंध में है।

महेश भट्ट ने दिया फिल्म का आइडिया

शाहिद, अलीगढ़ जैसी फिल्‍में बना चुके हंसल मेहता ने एक बार फिर संवेदनशील विषय को चुना है। उन्‍हें यह फिल्‍म बनाने का आइडिया फिल्‍ममेकर महेश भट्ट से मिला था। फराज के जरिए एक ही मजहब के दो लोगों की विचारधाराओं के टकराव को दर्शाने का प्रयास किया है।

हालांकि, रितेश शाह, कश्‍यप कपूर और राघव राज कक्‍कड़ द्वारा लिखित कहानी में कई सवाल अनुत्तरित रह जाते हैं। फिल्‍म का शीर्षक भले ही फराज है, लेकिन कहानी फराज से ज्‍यादा निब्रस की लगती है। फराज के किरदार को ज्‍यादा एक्‍सप्‍लोर नहीं किया गया है। सारे बंधक चुपचाप बैठे हैं। कोई वाश रूम जाने के लिए तक नहीं कहता।

बस फराज की दोस्‍त का मोबाइल बजता है और किसी का नहीं। वहीं निब्रस का व्‍यवहार भी अजीबोगरीब दिखाया गया है। बहरहाल विचारधाराओं के टकराव को यहां पर मुखर तरीके से दिखाने के बहुत मौके थे, लेकिन उसमें लेखक और निर्देशक पूरी तरह खरे नहीं उतर पाए हैं।

विषय के विस्तार में नहीं जाती फराज

कहानी कैफे पर हुए हमले तक ही सीमित है। ऐसे में यह युवा कौन थे, इनका ब्रेनवाश कैसे किया गया? धर्म के नाम पर इन्‍हें बरगलाना आसान क्‍यों होता है? ऐसे मुद्दे को यह फिल्‍म कहीं भी नहीं छूती है। संवाद भी बहुत दमदार नहीं बन पाए हैं। हालांकि, धर्म के नाम पर निर्दोष लोगों की हत्‍या देखकर पीड़ा होती है।

इस फिल्‍म से शशि कपूर के पोते और कुणाल कपूर के बेटे जहान कपूर ने डेब्‍यू किया है। भव्‍य लॉन्चिंग से इतर उन्‍होंने अनकन्वेंशनल फिल्‍म से अ‍पने अभिनय सफर का आगाज किया है। फराज की भूमिका में उनका पहला प्रयास सराहनीय है। हालांकि, उन्‍हें अपने क्राफ्ट पर आगे बहुत मेहनत करनी होगी।

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इस फिल्‍म का खास आकर्षण अभिनेता परेश रावल के बेटे आदित्‍य रावल हैं। उन्‍होंने अपने किरदार को बहुत शिद्दत से जीया है। टीम लीडर के तौर पर आतंकी की क्रूरता, धर्म को सोच को उन्‍होंने अपने किरदार के जरिए समुचित तरीके से चित्रित किया है।

फराज की मां की भूमिका में जूही बब्‍बर को कुछ दमदार सीन मिले हैं। उसमें वह खरी उतरी हैं। फराज का अर्थ होता है ऊंचाई। यह फिल्‍म अपने मकसद की ऊंचाई को हासिल करने में चूक जाती है।

प्रमुख कलाकार: जहान कपूर, आदित्‍य रावल, जूही बब्‍बर, सचिन लालवानी, जतिन सरीन, पलक लालवानी।

निर्देशक: हंसल मेहता

अवधि: 110 मिनट

स्‍टार: दो

Edited By: Manoj Vashisth