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    Bhool Chuk Maaf Review: निर्देशक की 'भूल' के कारण राजकुमार से हुई 'चूक'? क्या है फिल्म की कहानी

    Updated: Fri, 23 May 2025 12:47 PM (IST)

    राजकुमार राव और वामिका गब्बी की फिल्म भूल चूक माफ 9 मई को सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली थी लेकिन भारत-पाक के बीच तनाव की स्थिति को देखते हुए मेकर्स ने इसे ओटीटी पर रिलीज करने का निर्णय लिया। हालांकि हाई कोर्ट ने इसकी ओटीटी रिलीज पर रोक लगा दी। कई कंट्रोवर्सी के बाद अब ये फिल्म थिएटर में आ गई है। क्या सिनेमाघरों के लायक है फिल्म पढ़ें रिव्यू

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    कैसी है राजकुमार राव-वामिका गब्बी की भूल चूक माफ/ Photo- Jagran Graphics

    स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। विवादों से उबरने के बाद फिल्‍म भूल चूक माफ सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। इस बार निर्माताओं ने दर्शकों को एक सुविधा और दी है कि दो सप्‍ताह बाद फिल्‍म अमेजन प्राइम वीडियो पर रिलीज हो जाएगी। जबकि यह अंतराल आठ सप्‍ताह का होता है। शायद निर्माताओं को अहसास हो गया था कि फिल्‍म को बनाने में कुछ चूक हो गई है। यही वजह है कि दो सप्‍ताह के भीतर ही दर्शकों के घरों तक खुद ही पहुंचने का निर्णय ले लिया।

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    क्या है भूल चूक माफ की कहानी? 

    ‘भूल चूक माफ’  (Bhool Chuk Maaf movie review)को ‘टाइम लूप’ के तौर पर प्रचारित किया गया है। यह एक ऐसी शैली है जिसमें मुख्य पात्र बार-बार एक ही समय-सीमा में फंस जाते हैं, और बार-बार एकसमान घटनाओं का अनुभव करते हैं। यहां पर फिल्‍म का मुख्‍य पात्र 25 वर्षीय रंजन तिवारी (राजकुमार राव) का एकमात्र सपना अपनी प्रेमिका तितली (वामिका गब्‍बी) से शादी करने का है। आखिरकार तितली के पिता ब्रिज मोहन (जाकिर हुसैन) शर्त रखते हैं कि अगर रंजन की दो महीने में सरकारी नौकरी लग गई तो बेटी से उसकी शादी करा देंगे।

    Photo Credit- Youtube

    बेरोजगार रंजन की मां रमावती (सीमा पाहवा) अचार का बिजनेस करती हैं। पिता रघुनाथ (रघुबीर यादव) भी पत्‍नी के व्‍यवसाय पर आश्रित हैं। रंजन के साथ उसके मामा (इश्तियाक खान) और दोस्‍त हरि (धीरेंद्र गौतम) ही रहते हैं। रंजन के साथ शादी करने को बेकरार तितली अपनी मां का तीन तोले का सोने का हार गिरवी रखने से गुरेज नहीं करती। आखिरकार बिचौलिए भगवान दास (संजय मिश्रा) की मदद से रंजन की सरकारी नौकरी लग जाती है। शादी की तैयारी होती है, लेकिन हल्‍दी का दिन बार बार रंजन की जिंदगी में आता है। हैरान परेशान रंजन उससे कैसे निकलेगा कहानी इस संबंध में है। 

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    एक्टर्स नहीं आपके धैर्य की परीक्षा लेती है ये फिल्म 

    निर्देशक करण शर्मा ने ही फिल्‍म की कहानी और स्‍क्रीनप्‍ले लिखा है। उनका टाइमलूप का आइडिया रोचक है, लेकिन संदेश देने की कोशिशों में काफी चूक हो गई है। फिल्‍म का फर्स्‍ट हाफ मुद्दे पर आने में काफी समय ले लेता है। बीच-बीच में हंसी का झोंका आता है। दूसरे हाफ से कहानी टाइम लूप पर आती है। यहीं पर फिल्म जुगाड़ से समाज पर पड़ने वाले प्रभाव और इसके परिणाम की बात करती हैं। साथ ही सवाल उठाती है कि कब हमने परवाह करना बंद कर दिया? इस मुद्दे को स्‍थापित करने में करण ने काफी समय ले लिया है।

    एक ही तारीख को बार-बार जीने का प्रसंग उबाऊ लगने लगता है। सही मायने में यह फिल्म आपके धैर्य की परीक्षा लेती है, जिसका परिणाम एक बिखरे हुए और भटकाव भरे कथानक के तौर पर सामने आता है। किरदार को मासूम दिखाने के लिए कहानी को बनारस में सेट किया गया है, लेकिन परिवेश, भाषा या संवादों में उसकी अनुभूति कहीं भी नहीं होती। वैसे इस कहानी को किसी और शहर में भी आसानी से सेट किया जा सकता था। सिनेमटोग्राफर सुदीप चटर्जी बनारस की गलियों और घाटों की झलक देकर इतिश्री कर लेते हैं। एक सीन में रंजन तिवारी गाय को गुड़ रोटी खिलाने को पूरण पोली कहता है। जबकि यह विशुद्ध मराठी व्‍यंजन है। यह बहुत खटकता है। तितली और रंजन की प्रेम कहानी में प्रेम कम हमदम तकरार ही नजर आती है।

    bhool chuk maaf review

    Photo Credit- Youtube

    जिंदगी को लेकर उनके सपने या भविष्‍य पर कोई बात नहीं होती। भगवान का दो लाख रुपये एडवांस लेकर बेहद आसानी से रंजन को सरकारी नौकरी दिलाने का प्रसंग भी हास्‍यापद है। तितली संपन्‍न परिवार से आती है फिर पिता क्‍यों सरकारी नौकरी की शर्त रखते हैं उसकी वजह भी स्‍पष्‍ट नहीं है।

    राजकुमार राव का एक्टिंग में जान डालना भी नहीं आया माफ

    कलाकारों की बात करें तो छोटे शहरों के पात्रों को जीवंत करने में राजकुमार राव (Rajkummar Rao Wamiqa Gabbi performance) का कोई सानी नहीं। कमजोर स्‍क्रीनप्‍ले के बावजूद रंजन की लालसा, संघर्ष और टाइम लूप से निकलने की कोशिशों को वह पूरी शिद्दत से आत्‍मसात करते नजर आते हैं। वामिका गब्‍बी ने पहली बार कॉमेडी में हाथ आजमाया है। वह तितली की मासूमियत, जिद और बचकानेपन को समुचित तरीके से साकार करती है। सहयोगी भूमिका में आए कलाकार सीमा पाहवा, रघबुीर याद, इश्तियाक खान, संजय मिश्रा, जाकिर हुसैन और धीरेंद्र गौतम ने दी गई भूमिका साथ न्‍याय किया है। इरशाद कामिल के लिखे गीत और तनिष्‍क बागची का संगीत सिनेमाघरों से निकलने के बाद याद नहीं रहता।

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    भूल चूक माफ अंधविश्वास और समान अवसरों की कमी के बहाने कर्मकांड के बारे में प्रासंगिक बात कहने की कोशिश करती है, लेकिन दोहराव भले दृश्‍य, अल्पसंख्यकों और उनके अधिकारों को बहुसंख्यकों के लाभ के लिए दबाने का मुद्दा, अटपटी प्रेम कहानी को सिनेमाघर से निकल कर भूलना ही अच्‍छा होगा ।

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