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    Baramulla Movie Review: सुपरनैचुरल तड़के के साथ आई कश्मीरी पंडितों पर अन्याय की कहानी, ऐसी है फिल्म

    Updated: Fri, 07 Nov 2025 06:05 PM (IST)

    Baramulla Review: कश्मीर की वादियों में छुपे रहस्यों और क्राइम को उजागर करने के साथ ही आदित्य सांबले ने इस फिल्म की कहानी में सुपरनैचुरल घटनाओं को पिरोया है। कश्मीरी पंडितों के दर्द और उनके साथ हुए अन्याय को डर और थ्रिल के साथ दिलचस्प बनाने की कोशिश की गई है।

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    आदित्य सुहास जांबले की बारामुल्ला नेटफ्लिक्स पर हुई रिलीज

    एकता गुप्ता, नई दिल्ली। कश्मीर की वादियां जितनी खूबसूरत हैं उसमें उतने ही गहरे राज दफ्न हैं। खूबसूरती और कुदरत के साथ ही इस घाटी ने आतंकवाद, क्राइम, बच्चों का अपहरण, धर्म के लिए लड़ाई, कश्मीरी पंडितों का दर्द और ना जाने क्या-क्या देखा है। इन सब मसलों को लेकर बॉलीवुड काफी मुखर रहा है, अक्सर भारतीय सिनेमा में इन मुद्दों पर फिल्में बनाई जा चुकी हैं। लेकिन 7 नवंबर को रिलीज हुई मानव कौल स्टारर बारामूला इन सबसे थोड़ी अलग है।

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    क्या है बारामूला की कहानी?

    बारामूला की कहानी एक बच्चे की किडनैपिंग से शुरू होती है लेकिन यह कोई आम किडनैपिंग नहीं है, क्योंकि यह एक जादूगर के द्वारा की गई है। इस किडनैपिंग में एक सुराग भी छोड़ा जाता है और वह है बालों का एक गुच्छा। इसके साथ ही यह बच्चा भी कोई आम बच्चा नहीं है बल्कि बारामूला के एमएलए का बेटा है। इसी किडनैपिंग की स्पेशल जांच के लिए डीएसपी रिदवान सैय्यद को बारामूला बुलाया जाता है। जिसका किरदार मानव कौल ने निभाया है। इसके बाद बारामूला में और भी बच्चों का अपहरण किया जाता है।

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    इसी बीच जिस घर में रिदवान की फैमिली ठहरती है उसमें कुछ सुपरनैचुरल घटनाएं उसकी पत्नी और बच्चों के साथ घटती है। हालांकि रिदवान इन सबमें नहीं मानता और अपनी इन्वेस्टिगेशन पर ध्यान देता है। ये सुपरनैचुरल घटनाएं उन बच्चों के रहस्यमयी अपहरण से कैसे जुड़ती है यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।

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    कश्मीर पर आधारित बाकी फिल्मों से अलग बारामूला?

    कश्मीर की वादियों की सच्चाई और दर्द को कई फिल्मों में दिखाया गया है। हालांकि आर्टिकल 370 बनाने वाले डायरेक्टर आदित्य सुहास जांबले ने बारामूला की सच्चाई को सुपरनैचुरल घटनाओं के साथ एक नया एंगल देने की कोशिश की है।

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    क्या है फिल्म की ताकत

    स्टोरीटेलिंग- आदित्य सुहास जांबले ने किडनैपिंग, कश्मीरी पंडितों की कहानी को बड़े साहस के साथ सुपरनैचुरल घटनाओं से जोड़ा है। फिल्म की स्टोरीटेलिंग आपको आखिरी तक बांधे रखती है क्योंकि यह डरावनी घटनाएं किस तरह बच्चों के रहस्यमय तरीके से गायब होने और कश्मीरी पंडितों के सच के साथ जुड़ी हुई है यह देखने की दिलचस्पी बनी रहती है।

    एक्टिंग- मानव कौल ने इस फिल्म में लीड रोल प्ले किया है और बिना किसी शक ने उन्होंने बेहतरीन एक्टिंग की है। उनके साथ ही अरिस्ता मेहता, भाषा सांबली ने भी प्रोमिसिंग एक्टिंग की है। मानव कौल बारामूला के ही निवासी हैं और शायद इसीलिए उनका किरदार ज्यादा वास्तविक भी दिखता है।

    डायरेक्शन और कहानी- आदित्य सुहास जांबले का डायरेक्शन अच्छा रहा है साथ ही फिल्म की कहानी थ्रिलिंग है जिसमें आखिरी तक सस्पेंस बना रहता है। आखिर में सारी घटनाएं किस तरह जुड़ती है यह देखने के लिए आप बेताब रहते हैं।

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    कहां रह गई कमी

    स्क्रिप्ट राइटिंग- यूनिक कहानी के साथ जरुरत होती है एक अच्छी स्क्रिप्ट राइटिंग की, जिसकी इस फिल्म में कमी रह गई। फिल्म का फर्स्ट हाफ काफी रोमांचक है क्योंकि आप जानने के लिए उत्सुक रहते हैं कि आखिर आगे क्या होगा। लेकिन सेकंड हाफ में डरावनी घटनाएं रियल कहानी से भटकाने का काम करती हैं। हां ये एक अलग और यूनिक एंगल जरूर है लेकिन इसे और बेहतर तरीके से लिखा जा सकता था।

    फिल्म अतीत और वर्तमान को साथ लेकर चलती हैं जिसमें कई सीन आपको इमोशनल भी कर देते हैं। लेकिन कई जगह यह आपको कंफ्यूज भी करती है, जो इसकी कमोजर स्क्रिप्ट राइटिंग को दर्शाता है।

    दूसरी ओर फिल्म काफी अंधेरे में चलती है। माना कि फिल्म डरावनी है और इसमें भूतों के साए भी हैं जो डार्कनेस की मांग करते हैं लेकिन कश्मीर में शूट हुई फिल्म पूरी तरह से अंधेरे में दिखती है, जो इसमें दिलचस्पी कम कर देती है। सिनेमैटोग्राफी थोड़ी बेहतर हो सकती थी।

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    देखें या नहीं

    अगर आप कश्मीर पर आधारित क्राइम-थ्रिलर देखना पसंद करते हैं और कुछ अलग देखना चाहते हैं तो यह फिल्म आपके लिए है। सुपरनैचुरल हॉरर पसंद करने वालों को भी यह फिल्म दिलचस्प लगेगी, क्योंकि डर से ज्यादा यह फिल्म आपको सोचने पर मजबूर करती है जिससे थ्रिल का एहसास होता है। कुल मिलाकर फिल्म वन टाइम वॉच है। 

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