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    Baby John Review: ये कैसा क्लाइमैक्स है! Pushpa 2 को छोड़कर बेबी जॉन देखने का बना रहे हैं मन, यहां पढ़ें रिव्यू

    Updated: Wed, 25 Dec 2024 11:45 AM (IST)

    क्रिसमस के मौके पर इस साल आमिर खान नहीं बल्कि वरुण धवन ऑडियंस के बीच आए हैं। लंबे समय से चर्चा में बनी हुई उनकी फिल्म बेबी जॉन (Baby John) 25 दिसंबर को सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। इस मूवी का ट्रेलर तो काफी दमदार था लेकिन क्या वरुण-कीर्ति सुरेश और वामिका गब्बी के साथ आप थिएटर में क्रिसमस मना सकते हैं या नहीं यहां पढ़ें रिव्यू

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    बेबी जॉन का रिव्यू/ फोटो क्रेडिट- जागरण ग्राफिफ्स

    स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। फिल्‍म बेबी जॉन ऐसे समय रिलीज हुई है जब पुष्‍पा 2 : द रूल बॉक्‍स ऑफिस पर अपनी पकड़ बनाए हुए है। यह साल 2016 में आई थलापति विजय, सामंथा और एमी जैक्‍सन अभिनीत फिल्‍म थेरी की रीमेक है। इस साल रिलीज रीमेक फिल्‍म सरफिरा, खेल खेल में बॉक्‍स ऑफिस पर नहीं चली थी। बेबी जॉन भी तमाम मसालों के बावजूद प्रभाव नहीं छोड़ पाती है।

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    थेरी का निर्देशन एटली ने किया था जिन्‍होंने पिछले साल शाह रुख खान के साथ मनोरंजन के मसालों से भरपूर जवान बनाई थी। अब एटली के असिस्‍टेंट रहे कालीस ने फिल्‍म के निर्देशन की बागडोर संभाली है। जबकि एटली इस बार निर्माता की भूमिका में हैं। फिल्‍म भले ही हिंदी में बनी है लेकिन दक्षिण भारतीय मसालों से भरपूर है। फिल्‍म में बच्चियों की तस्‍करी का एंगल जोड़कर इसे मूल फिल्‍म से थोड़ा सा अलग करने की कोशिश की है लेकिन यह कोशिश फिल्‍म को दिलचस्‍प नहीं बना पाई है।

    क्या है वरुण धवन की बेबी जॉन की कहानी? 

    कहानी केरल में सेट है। जॉन डिसिल्‍वा (वरूण धवन) अपनी बेटी खुशी (जारा जियाना), कुत्ते टाइगर और रामसेवक (राजपाल यादव) के साथ रहता है। एक नाटकीय घटनाक्रम में खुशी की टीचर तारा (वामिका गब्‍बी) पुलिस स्‍टेशन में शिकायत दर्ज कराती है। दरअसल एक नाबालिग बच्‍ची का कुछ गुंडे पीछा कर रहे होते हैं। तारा बच्‍ची को लेकर थाने जाती है। न चाहते हुए भी जान को पुलिस स्‍टेशन आना पड़ता है।

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    रात में कुछ गुंडे जान के घर पहुंचते हैं। जब वह खुशी को उठाने की बात करते हैं तो सीधा सादे दिखने वाले जान का असली चेहरा सामने आता है। वह सभी गुंडों को चित्‍त कर देता है। तारा को पता चलता है कि जॉन पूर्व आइपीएस है। वह राम सेवक से जान के अतीत के बारे में पूछती है। वहां से जॉन की जिंदगी की परतें खुलनी आरंभ होती हैं। जॉन उर्फ सत्‍या वर्मा निडर पुलिस अधिकारी होता है।

    Photo Credit- Imdb

    उसने लड़कियों की तस्‍करी करने वाले गैंग के सरगना नाना (जैकी श्रॉफ) के बेटे को मारा होता है जिसने नाबालिग लड़की का रेप किया होता है। प्रतिशोध में जल रहा नाना उसकी पत्‍नी (कीर्ति सुरेश) और मां (शीबा चड्ढा) को मार देता है। अपनी पहचान बदलकर रह रहे सत्‍या के बारे में नाना को पता चलता है। वह सत्‍या की जिंदगी उजाड़ने फिर आता है लेकिन क्‍या वह अपने मंसूबों में कामयाब होगा कहानी इस संबंध में हैं।

    कहानी कमजोर बेकार डायलॉग 

    मूल फिल्‍म थेरी देख चुके दर्शकों को बेबी जॉन देखकर काफी निराशा होगी। बेबी जॉन को मूल फिल्‍म से अलग करने के लिए कालीस ने इसमें लड़कियों की तस्‍करी का प्रसंग शामिल किया, लेकिन वह इसे वह समुचित तरीके से कहानी में शामिल नहीं कर पाए हैं। खलनायक के तौर पर जैकी श्रॉफ का लुक फिल्‍म में काफी अलग है, लेकिन उनका पात्र दमदार नहीं बन पाया है।

    कमर्शियल फिल्‍मों में जब तक खलनायक ताकतवर नजर न आए नायक उबर कर नहीं आ पाता है। यहां पर भी नाना का चित्रण और संवाद दोनों कमजोर है। इस वजह से नाना और जॉन के बीच की रंजिश दमदार नहीं बन पाई है। कहानी मुंबई में आती है लेकिन पहचानना मुश्किल होता है कि आप मुंबई में या कहीं और। गाने और डांस ट्रैक तो पूरी तरह से बेमेल हैं।

    आप अचानक से कहानी की दुनिया से बाहर खुद को महसूस करने लगते हैं। फिल्‍म की सबसे बड़ी कमी इमोशन की है। क्‍लाइमेक्‍स को मूल फिल्‍म से अलग किया गया है, लेकिन वह जल्‍दबाजी में हिंदी फिल्‍मों के घिसे पीटे फॉर्मूले की तरह है जिसमें नायक पहले पीटता है फिर गुंडों को ढेर करता है। फिल्‍म के एक दृश्‍य में राजपाल यादव का पात्र कहता है कॉमेडी इज ए सीरियस बिजनेस। वह फिर साबित करते हैं कि कॉमेडी सबसे बस की बात नहीं।

    वरुण धवन डीसीपी के किरदार में नहीं फूंक पाए जान 

    वरूण ने पहली बार दक्षिण भारतीय फिल्‍ममेकर के साथ काम करके बड़े परदे पर एक्‍शन करने की चाहत पूरी की है। एक्‍शन करते हुए वह अच्‍छे लगे हैं। हालांकि डीसीपी का रुतबा उनके व्‍यक्तित्‍व में झलकता नहीं है। उन्‍हें इमोशन पर काम करने की जरूरत है। मीरा बनीं कीर्ति सुरेश के साथ उनके रोमांस में कोई रोमांच नजर नहीं आता जबकि यह मूल फिल्‍म की हू ब हू कॉपी है।

    वामिका गब्‍बी के किरदार में मूल फिल्‍म से इस बार बदलाव किया गया है। हालांकि वह भी आधा अधूरा है। वह तस्‍करों के पीछे लगी है लेकिन उसका किरदार कहानी में कुछ खास जोड़ता नहीं है। उनकी आइपीएस की ट्रेनिंग महज एक सीन तक सीमित होकर रह जाती है। फिल्‍म का खास आकर्षण है खुशी बनीं जारा जियाना। वह हर सीन में बहुत सहज नजर आई हैं। सिनेमेटोग्राफर किरण कौशिक ने दक्षिण भारत की खूबसूरती को बहुत अच्‍छे से कैमरे के जरिए दर्शाया है।

    Photo Credit: Instagram 

    फिल्‍म की लंबी अवधि को बेवजह के गानों और अनावशयक दृश्‍यों को हटाकर कम करने की भरपूर संभावना थी। अंत में सलमान खान का कैमियो है लेकिन वह भी आपको आकर्षित नहीं कर पाता है। फिल्म में वरुण धवन का एक डायलॉग है कि 'मेरे जैसे बहुत आए होंगे लेकिन मैं पहली बार आया हूं’। उनसे पहले इस भूमिका में आए थलापति विजय अपना दमखम दिखा चुके हैं। वरूण उनके मुकाबले फीके नजर आते हैं।

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