Azaad Movie Review: राशा थडानी और अमन देवगन ने मनवाया अभिनय का लोहा? पढ़ें उनकी डेब्यू फिल्म 'आजाद' का रिव्यू
जब भी कोई स्टार किड लॉन्च होता है तो फैंस के मन में सवालों का तूफान उमड़ने लगता है। अब रवीना टंडन की बेटी राशा थडानी और अजय देवगन के भांजे अमन देवगन ने भी कम उम्र में एक्टिंग की दुनिया में कदम रख दिया है। उनकी फिल्म आजाद ने इमरजेंसी के साथ बॉक्स ऑफिस पर टक्कर ली है। कैसी है आजाद यहां पढ़ें रिव्यू

स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। आजाद के प्रचार के दौर ही निर्देशक अभिषेक कपूर ने बताया था कि फिल्म का शीर्षक घोड़े के नाम पर है जो वास्तव में कहानी का अहम हिस्सा है। वाकई यह बेजुबान जानवर बिना संवाद के अपने भावों और कार्यों की वजह से याद रह जाता है।
अंग्रेजों के शासनकाल की दिखाई गई है कहानी
कहानी 1920 में अंग्रेजों के शासनकाल में सेट है, जब देश में असहयोग आंदोलन चल रहा था। वहीं सुदूर गांव में किसान का बेटा गोविंद (अमन देवगन) अपनी नानी से महाराणा प्रताप की कहानी सुनते हुए बड़ा हुआ है। वह जमींदार राय बहादुर (पीयूष मिश्रा) के अस्तबल में अपने पिता के साथ काम करता है। उसे घुड़सवारी का शौक है लेकिन गरीबी उसे घोड़ों की सवारी की इजाजत नहीं होती।
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एक दिन घोड़े की सवारी करने की वजह से उसे कोड़े की सजा मिलती है। उसे लगता है कि यह चुगली जमींदार की बेटी जानकी (राशा थडानी) ने की है। गुस्से में होली आने पर वह उसे रंग देता है। फिर कोड़े खाने के डर से बीहड़ भगाता है। वहां बागी विक्रम सिंह (अजय देवगन) के गिरोह में शामिल हो जाता है। उसका विक्रम के घोड़े आजाद पर दिल आ जाता है। गांववासियों को अफ्रीका भेजने से बचाने की कोशिश में मुठभेड़ में विक्रम मारा जाता है।
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घोड़ा गोविंद के पास आ जाता है लेकिन वो उसे अपने ऊपर बैठने नहीं देता। गांव में उसके लौटने और आजाद साथ होने की जानकारी फैलती है। घोड़ा सरकार को लौटाने के बजाए वह गांव में घुड़दौड़ प्रतियोगिता में हिस्सा लेने का फैसला करता है। इस बीच उसकी जानकी के साथ दोस्ती हो चुकी होती है। जमींदार शर्त रखता है कि अगर गोविंद हार गया तो गांव के सभी लोगों को अफ्रीका जाना होगा। घुड़सवारी की दौड़ का प्रसंग लगान फिल्म की याद दिलाता है जिसमें क्रिकेट मैच जीतने पर किसानों को लगान से मुक्ति मिलेगी।
राशा और अमन देवगन में एकदम नई ताजगी
बहरहाल, रितेश शाह, सुरेश नायर और अभिषेक कपूर की लिखी कहानी में कोई नयापन नहीं है। जमींदार के जुल्मों, प्रताड़ना से तंग आकर विक्रम का डाकू बनना कोई नया प्रसंग नहीं है। वह गांववासियों के लिए अंग्रेजों से लोहा ले रहा है लेकिन गांव से उसका संबंध नजर नहीं आता। उसके मारे जाने पर कोई शोक संतृप्त नजर नहीं आता। उसका गिरोह सिर्फ पैसों के लिए कैसे धोखा कर गया उसकी वजहें कहीं भी स्पष्ट नहीं है।
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विक्रम की बागी बनने की बैकस्टोरी को दमदार बनाने की जरूरत थी। मध्यांतर के बाद गोविंद और आजाद के बीच दोस्ती कराने का प्रसंग लंबा खिंच गया है। बेहतर होता है कि वह प्रतियोगिता के प्रसंग को रोचक बनाते उसमें थोड़ा तनाव और कौतूहल जगाते। वह बहुत तेजी से जल्दबाजी में निपटाया गया लगता है। फिल्म के कुछ दृश्य शानदार है। इनमें आजाद का घोड़ी बिजली के साथ का प्रेम प्रसंग। गोविंद और जानकी के प्रेम प्रसंग में भी ताजगी है।
राशा थडानी और अमन देवगन ने किया शानदार अभिनय
इस फिल्म से अभिनेता अजय देवगन के भांजे अमन देवगन ने अभिनय में पदार्पण किया है। गोविंद की भूमिका में वह खुद को साबित करते हैं। वह गोविंद के लखड़पन, आजाद के प्रति दीवानगी, उसके साथ दोस्ती जैसे दृश्यों में लुभाते हैं। उन्हें देखकर लगता नहीं कि यह उनकी पहली फिल्म है। वहीं अभिनेत्री रवीना टंडन की बेटी राशा थडानी की भी यह पहली फिल्म है। उनका अंग्रेजी बोलना, गोविंद के साथ तकरार और दोस्ती का सफर रोचक है। उनका आइटम सांग पहले ही सुर्खियां बटोर चुका है। वह पात्र के अनुरूप मासूम और चंचल लगी हैं।
अजय देवगन वास्तव में कैमियो भूमिका में हैं। वह बागी की भूमिका में जंचते हैं। उन्हें आजाद के साथ बेहतरीन दृश्य मिले हैं। उनकी पूर्व प्रेमिका की भूमिका में डायना पेंटी के हिस्से में कुछ खास नहीं आया है। यद्यपि मिले हुए दृश्यों में वह खूबसूरत जरूर लगी हैं। जमींदार की भूमिका में पीयूष मिश्रा गिने चुने दृश्यों में हैं। वह खास प्रभाव नहीं छोड़ते।
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जमींदार के जालिम बेटे की भूमिका में मोहित मलिक प्रभावित करते हैं। नानी नताशा रस्तोगी का पात्र जमींदारों के जुल्म से मुक्ति दिलाने को लेकर गोविंद को प्रोत्साहित करता है। उनकी आवाज काफी अच्छी है। फिल्म का गीत संगीत साधारण है। प्रोडक्शन टीम की सराहना बनती है उन्होंने उस दौर के माहौल को विश्वसनीय बनाया है। सिनेमाघर से निकलने पर आप आजाद घोड़े को नहीं भूल पाते हैं।
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