Aankhon Ki Gustakhiyan Review: नेत्रहीन लड़के की प्रेम कहानी दिखाने में की गई ढेरों गुस्ताखियां, पढ़ें रिव्यू
Aankhon Ki Gustaakhiyan Movie Review संजय कपूर की बेटी शनाया कपूर ने देर से ही सही लेकिन एक्टिंग की दुनिया में कदम रख ही दिया है। उनकी फिल्म आंखों की गुस्ताखियां शुक्रवार को थिएटर में रिलीज हुई है। मूवी में उनके अपोजिट विक्रांत मैसी नजर आए। फिल्म का कांसेप्ट तो यूनिक है लेकिन फिर भी मेकर्स क्या गुस्ताखियां कर बैठे यहां पर पढ़ें रिव्यू

स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। आंखों की गुस्ताखियां शीर्षक आते ही सबसे पहले फिल्म हम दिल दे चुके सनम का गाना याद आता है जिसमें यह बोल प्रयुक्त हुए हैं। वहां पर आंखों की खूबसूरती के साथ त्रिकोणीय प्रेम कहानी को बेहतरीन तरीके से दर्शाया गया था। हालांकि सिनेमाघरों में रिलीज हुई यह फिल्म रस्किन बांड द्वारा लिखी लघु कहानी द आइज हैव इट से प्रेरित है।
कहानी का सार अच्छा है, लेकिन लघु कहानी को फीचर बनाने की कोशिश में कहानी बहुत खींच गई है। इस प्रेम कहानी में दुःख-सुख, शांति और व्यथा, मिलन और विच्छेद सब हैं, लेकिन उनका कोई भाव आपकी भावनाओं को स्पर्श नहीं करता है।
नेत्रहीन जहान करता हैं सबा संग आंखों की गुस्ताखियां
कहानी जहान (विक्रांत मेस्सी) और सबा (शनाया कपूर) की है। दोनों दिल्ली से देहरादून के लिए ट्रेन के फर्स्ट क्लास में सफर कर रहे होते हैं। सबा के पिता थिएटर आर्टिस्ट हैं, लेकिन उसे फिल्मों में हाथ आजमाना है। उसे एक नेत्रहीन लड़की का ऑडिशन देना है। इसकी तैयारी के लिए उसने गांधारी की तरह अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली है।
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उसके साथ उसकी मैनजर को भी आना होता है, लेकिन किन्ही कारणों से नहीं आती। आखिरकार हैरान परेशान सबा की मदद सहयात्री जहान करता है। वह गीतकार है साथ ही गाने भी गाता है। वह विशेष तौर पर गाने लिखने के लिए मूसरी आया है। सबा उसके साथ होटल में रहने आती है। वह इस बात से अनजान है कि जहान नेत्रहीन है। दोनों की नजदीकियां बढ़ती हैं।
वैलेंटाइन डे की रात को सबा अपनी पट्टी खोलने वाली होती है, लेकिन जहान वहां से चला जाता है। तीन साल कहानी आगे बढ़ती है। यूरोप में अपना प्ले परफॉर्म के लिए सबा आई हुई है। सबा की जिंदगी में थिएटर कलाकार अभिनव (जैन खान दुर्रानी) का प्रवेश हो चुका है। यहां पर सबा की मुलाकात जहान से होती है, जो अपनी पहचान बदल चुका है। अब दोनों की प्रेम कहानी क्या मोड़ लेगी कहानी इस संबंध में हैं।
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रोमांस दिखाने में मेकर्स से हुई गलतियां
मानसी बागला की लिखी कहानी शुरुआत में सबा और जहान के बीच नोकझोंक, एकदूसरे के करीब आना उम्मीद बांधती है। नेत्रहीनों को दया नहीं सम्मान देने का मुद्दा भी उठाया है, लेकिन यह कहानी विश्वसनीय नहीं बन पाई है। इस प्रेम को दर्शाने में ढेरों गुस्ताखियां भी हुई हैं। जैसे इतने दिनों तक जहान के साथ रहने के बावजूद सबा को एक बार भी यह अहसास क्यों नहीं होता कि जहान नेत्रहीन है? यह समझ से परे है। सीढ़ी से गिरने के बाद सबा और जहान का एक-दूसरे को यूं चुंबन देना और प्यार होना पचता नहीं है।
जहान के जाने के बाद उसकी खोज न कर पाना भी अजीबोगरीब है जबकि वह गीतकार और गायक है। स्मार्ट फोन रखने वाली लड़की होटल में सीसीटीवी कैमरा देखने की जहमत नहीं उठाती। बेहद आत्मविश्वासी और अभिनेत्री बनने को आतुर सबा बिना देखे दिल दे बैठती है यह समझना भी आसान नहीं।
इंटरवल के बाद मेकर्स के हाथ से फिसली कहानी
इसी तरह विक्रांत के पात्र को दिखाते समय लेखक और निर्देशक संतोष सिंह ने काफी सिनेमाई लिबर्टी ली है। होटल से निकलते समय विक्रांत बिना छड़ी के आम इंसान की तरह जा रहा है। उसकी जिंदगी में कोई समस्या कभी नहीं दिखी। सबा छड़ी लेकर डांस कर रही, लेकिन उसकी वजह से अनजान हैं। इंटरवल के बाद तो कहानी पूरी तरह फिसलती है। मानसी बागला, संतोष सिंह और निरंजन अययर द्वारा लिखा स्क्रीन प्ले और डायलॉग अपनी लय खोते दिखते हैं।
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अलगाव के तीन साल बाद कहानी यूरोप आती है। वहां पर जहान और सबा का पहले एकदूसरे को न पहचानना, फिर करीब आना और दबी भावनाओं का जगना जैसे पूर्वानुमानित प्रसंग कहानी को दिलचस्प बनाने में असफल रहते हैं। कहानी अगर यूरोप के बजाए देश के किसी हिस्से में सेट होती तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता। सबसे बड़ी कमजोरी शनाया और विक्रांत की केमिस्ट्री दिलचस्प न बन पाना भी है। संवाद भी प्रभावी नहीं बन पाए हैं।
डेब्यू फिल्म में शनाया ने किया कैसा काम?
अभिनेता संजय कपूर और महीप कपूर की बेटी शनाया कपूर ने काफी इंतजार के बाद फिल्म आंखों की गुस्ताखियां से अभिनय में पदार्पण किया है। पहले शनाया को करण जौहर लांच करने वाले थे, लेकिन फिल्म डिब्बाबंद हो गई। इस फिल्म में उनकी मेहनत परदे पर साफ झलकती है। उन्होंने सबा के चुलबुलेपन, गंभीरता और दबे अहसासों को पूरी शिद्दत से जिया है। हालांकि भावनात्मक दृश्यों पर उन्हें मेहनत करनी होगी। विक्रांत मेस्सी उन कलाकारों में हैं जिस सांचे में ढालो ढल जाएंगे।
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हालांकि उनका शानदार अभिनय भी कमजोर स्क्रीन प्ले का संबल नहीं बन पाता है। सानंद वर्मा चिर परिचित अंदाज में हैं। वह कुछ हल्के फुल्के पल लेकर आते हैं। जैन खान दुर्रानी के पात्र को उबरने का मौका नहीं मिला है। नूर आंटी की भूमिका में भारती शर्मा कुछ खास नहीं जोड़ती।
फिल्म के गीतकार और संगीतकार विशाल मिश्रा है। उनका गाना पहली बार इश्क हुआ है...कर्णप्रिय है। सिनेमेटोग्राफर तनवीर मीर ने नयमाभिरामी लोकेशन को कैमरे में कैद किया है। एडीटर उन्नीकृष्णन पीपी दो घंटे बीच मिनट की अवधि की फिल्म को चुस्त संपादन से कम कर सकते थे। इस कहानी का आइडिया दिलचस्प है, नयनाभिरामी लोकेश, बेहतरीन कलाकार, सब है बस उसे समुचित तरीके से परदे पर उतार नहीं पाए हैं।
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