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    अनंत तपस्या के समान हैं संगीत - श्रवण कुमार

    चार फिल्मफेयर और चार स्क्रीन अवॉर्ड सहित 150 पुरस्कार जीत चुके संगीतकार श्रवण संगीत की सुर-लहरी बिखेर चुके हैं 160 फिल्मों में। इन दिनों वह काम कर रहे हैं ‘साजन-2’ पर

    By Monika SharmaEdited By: Updated: Sun, 13 Sep 2015 12:45 PM (IST)

    चार फिल्मफेयर और चार स्क्रीन अवॉर्ड सहित 150 पुरस्कार जीत चुके संगीतकार श्रवण संगीत की सुर-लहरी बिखेर चुके हैं 160 फिल्मों में। इन दिनों वह काम कर रहे हैं ‘साजन-2’ पर...

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    अपने शुरुआती दौर के बारे में कुछ बताएं?
    मेरा पूरा नाम श्रवण कुमार चतुर्भुज राठौर है। मैं मूलत: सिरोही, राजस्थान का हूं। मैं चार भाइयों में सबसे बड़ा हूं। मेरा तीसरे भाई रूप कुमार राठौर प्रसिद्ध गजल गायक हैं, जबकि चौथे विनोद कुमार राठौर प्लेबैक सिंगर हैं।

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    संगीतकार बनने का विचार मन में कैसे आया?
    मेरे पिता चतुर्भुज राठौर ध्रुपद-धमार के क्लासिकल सिंगर थे। संगीत की शिक्षा के लिए संस्थानों का दरवाजा नहीं खटखटाना पड़ा। पिता के सानिध्य में रहकर रियाज किया। आज जो भी हूं, उन्हीं की बदौलत हूं।

    संगीतकार बनने की शुरुआत कहां से हुई?
    संगीतकार के रूप में 1975 में रिलीज पहली फिल्म ‘दंगल’ थी। भोजपुरी भाषा की यह पहली रंगीन फिल्म थी, जिसने गोल्डन जुबली मनाई। फिल्म के गाने ‘काशी हिले, पटना हिले, कलकत्ता हिलेला, फूट गैले किस्मतिया’ गाना काफी हिट हुआ था। इस फिल्म से ही संगीतकार के रूप में नदीम-श्रवण की जोड़ी हिट हुई और पहचान मिली।

    आगे किन तैयारियों में जुटे हैं?
    इन दिनों ‘साजन पार्ट 2’ की तैयारियों में जुटा हूं, जिसे मैं खुद प्रोड्यूस करूंगा।

    आपकी नजरों में किन प्लेबैक सिंगर ने हिंदी सिनेमा को ऊंचाइयों तक पहुंचाया?
    रफी साहब, लता मंगेशकर, आशा भोंसले, किशोर कुमार के गाए गीतों को भूल पाना नामुमकिन है। इन लोगों ने अपनी गायकी से भारतीय हिंदी सिनेमा एवं संगीत को ऊंचाइयों तक पहुंचाया।

    आपके बच्चे भी संगीत की विरासत संभाल रहे हैं...
    मेरे बेटों संजीव और दर्शन राठौर की जोड़ी ने ‘मन’, ‘एनएच 10’, ‘सुपर नानी’ सहित 30 फिल्मों में संगीत दिया है।

    नई पीढ़ी के गायकों व संगीतकारों को आप क्या संदेश देना चाहेंगे?
    गीत-संगीत में गजब की शक्ति होती है। इससे दिल को सुकून मिलता है। हिंदी गीत-संगीत के क्षेत्र में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। शास्त्रीय संगीत भारतीय संगीत की आत्मा है। पाश्चात्य संगीत तो फास्ट फूड की तरह है, जो ज्यादा टिकाऊ नहीं हो सकता। गीत-संगीत एक तपस्या के समान है। कई साल लगातार बिना रुके, बिना थके यदि आप परिश्रम करते हैं, तब जाकर आपको उसका फल मिलता है।

    राजीव कुमार झा

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