'तेरे चेहरे से नजर नहीं हटती', तीन-चार शिफ्टों में काम करते थे Shashi Kapoor, ऐसे कमाया नाम
Shashi Kapoor सादी सी मुस्कान और अलहदा अंदाज से लाखों दिलों पर जादू चलाया था शशि कपूर ने। पहले अंतरराष्ट्रीय स्टार बने शशि कपूर की हिंदी सिनेमा में शुरुआत बहुत अच्छी नहीं थी मगर फिर जब सफलता के फूल खिले तो कोई रोक नहीं पाया। आइए आपको दिवंगत अभिनेता के फिल्मी सफर से जुड़े अनसुने किस्से सुनाएं जिनके बारे में आप शायद ही जानते होंगे।

अनंत विजय, मुंबई। शशि कपूर भारतीय फिल्म जगत के ऐसे नायक हैं जिनके बारे में फिल्म जगत से जुड़े लोगों की राय अलग-अलग थी। शशि कपूर के बड़े भाई राज कपूर, श्याम बेनेगल और गोविंद निहलानी से लेकर विदेशी निर्देशकों की राय अलग थी। पहले तो शशि को फिल्मों के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा। संघर्ष पर आगे चर्चा करेंगे पहले सफलता के दौर की बात।
शशि कपूर की फीस अफोर्ड नहीं कर सकते थे राज कपूर
जब शशि के पास खूब सारी फिल्में थीं। वो दिन-रात, तीन-तीन शिफ्टों में एक साथ चार-पांच फिल्में कर रहे थे। फिल्में भी यश चोपड़ा और मनमोहन देसाई, प्रकाश मेहरा जैसे निर्देशकों के साथ। लगभग यही समय था जब राज कपूर ने फिल्म ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ बनाने की सोची। उन्होंने तय किया कि इस फिल्म में शशि कपूर को लिया जाए। शशि कपूर ने एक इंटरव्यू में बताया था कि एक दिन राज जी उनके पास पहुंचे और बोले- ‘मैं एक फिल्म करने जा रहा हूं। आपको उस फिल्म में लेना चाहता हूं। पता नहीं आप कितने पैसे लेते हैं? मैं दे भी पाऊंगा कि नहीं। आप बहुत व्यस्त एक्टर हो गए हो। क्या पता आपके पास डेट्स हैं भी या नहीं।’
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ऐसे ऑफर हुई थी सत्यम शिवम सुंदरम
इतना सुनते ही शशि कपूर इमोशनल हो गए। उन्होंने झट से राज कपूर के पांव छूए और कहा आप जैसा कहेंगे, वैसा कर लूंगा। आपको अपनी डायरी भिजवा देता हूं, जो और जितनी डेट्स चाहिए, वो ले लीजिएगा। शशि कपूर ने राज कपूर को अन्य प्रोड्यूसर्स पर वरीयता दी। इस कारण कई प्रोड्यूसर्स नाराज भी हुए। शशि की व्यस्तता देखकर राज साहब से रहा नहीं गया। एक दिन जब शशि ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ के सेट पर पहुंचे तो राज कपूर ने कहा, ‘शशि साहब, अब आप टैक्सी एक्टर बन गए हो।’ शशि को समझ नहीं आया।
वो चुपचाप खड़े रहे। राज कपूर हंसे और बोले, ‘आपकी हालत टैक्सी जैसी हो गई है। जो भी प्रोड्यूसर आपको काम दे दे, आप उसके पास चले जाते हो। टैक्सी की तरह ये नहीं देखते कि कहां जाना है, बस ये देखते हो कि मीटर डाउन है कि नहीं।’ शशि कपूर झेंपकर मेकअप रूम की ओर चले गए। राज कपूर साहब शशि कपूर को अपने बेटे की तरह मानते थे, उनका ध्यान रखते थे।
थिएटर की नौकरी से पाला परिवार का पेट
शशि कपूर के सफल होने के पहले की कहानी बेहद दारुण है। आज नेपोटिज्म की बात होती है। उन दिनों पृथ्वीराज कपूर के बेटे और राज कपूर के भाई को फिल्म में काम मांगने के लिए दर-दर भटकना पड़ता था। 20 वर्ष की उम्र में शशि की शादी हो गई और एक साल बाद पुत्र पैदा हो गया। पृथ्वी थिएटर की नौकरी से परिवार पालना मुश्किल हो रहा था। उनकी पत्नी जेनिफर को 200 रुपये और उनको भी 200 रुपये मिलते थे। किसी तरह से घर चलता था, लेकिन वो खुश थे। सब चल रहा था कि पृथ्वी थिएटर बंद हो गया। शशि की नौकरी खत्म। अब संकट बड़ा था।
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जब यश चोपड़ा से हुई अचानक मुलाकात
ये वही दौर था जब शशि का फिल्मों की ओर झुकाव हुआ अन्यथा वो तो थिएटर में ही खुश थे। शशि रोज सुबह फिल्मिस्तान के गेट पर बैठ जाते थे ताकि निर्देशक की उन पर नजर पड़े और काम मिले। इसी बेंच पर उनकी मुलाकात धर्मेंद्र और मनोज कुमार से हुई थी। वो दोनों भी फिल्मों में काम करने के लिए संघर्षरत थे। मनोज कुमार को तो रोल मिल गया, लेकिन इन दोनों को नहीं। शशि को पता था कि राज कपूर को केदार शर्मा ने ब्रेक दिया था और वो पृथ्वीराज कपूर के दोस्त थे। वो उनके पास पहुंचे, लेकिन रोल नहीं मिला। अचानक इनकी भेंट यश चोपड़ा से हुई। उन्होंने शशि को लेकर एक फिल्म बनाई ‘धर्मपुत्र’, जो असफल रही। इसके बाद शशि कपूर को बिमल राय जैसे निर्देशक मिले, लेकिन सफलता नहीं मिली।
लगातार पांच फिल्मों की असफलता ने प्रोड्यूसर्स को इनसे दूर कर दिया। वो शशि को दिए एडवांस पैसे तक वापस मांगने लगे। असफलता का यह दौर पांच साल तक चला। 1965 में नंदा के साथ उनकी फिल्म ‘जब जब फूल खिले’ सुपरहिट हुई। फिर तो उनके घर पर निर्माताओं की लाइन लगने लगी। शशि और जेनिफर ने जो झेला था, उसका गहरा असर उनके मन पर था। ‘जब जब फूल खिले’ की सफलता के बाद एक निर्माता ने उनको अपनी अगली फिल्म के लिए साइनिंग अमाउंट के तौर पर 5000 रुपये नकद दिए।
फिल्म की फीस नहीं लगाते थे हाथ
जेनिफर ने डरते हुए शशि से कहा कि इस पैसे को छह महीने तक हाथ नहीं लगाएंगे। अगर अगली फिल्म पिट गई तो फिर वो पैसा वापस मांगने आ जाएंगे। दोनों ने यही किया। हालांकि उसके बाद शशि कपूर ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। एक के बाद एक हिट फिल्में। ‘प्यार का मौसम’, ‘हसीना मान जाएगी’, ‘नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे’, ‘प्यार किए जा’ जैसी फिल्में खूब लोकप्रिय हुईं। सूची लंबी है, लेकिन ये समझना होगा कि हर सफलता के पीछे संघर्ष की लंबी दास्तान होती है, क्योंकि सफलता का शार्टकट नहीं होता।
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