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    क्या है Clapperboard? इसके बिना अधूरी है फिल्मों की शूटिंग से लेकर एडिटिंग, पढ़ें छोटे से टूल की खासियत

    Updated: Sun, 05 Oct 2025 02:45 PM (IST)

    Clapperboard जब हम कोई फिल्म देखते हैं तो उस फिल्म में स्क्रीन पर दिखाई देने वाले एक्टर और एक्ट्रेस को ही मुख्य किरदारों के रूप में पहचानते हैं। लेकिन पर्दे के पीछे कई और चीजें होती हैं जो फिल्में बनाने में अपना महत्वपूर्ण रोल अदा करती हैं उनमें से एक है क्लैपरबोर्ड। आखिर इसका फिल्ममेकिंग में इस्तेमाल क्यों होता है आइए जानते हैं।

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    फिल्ममेकिंग में क्यों यूज होता है क्लैपरबोर्ड

    एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। अक्सर आपने नोटिस किया गया होगा कि फिल्में शूट करने के दौरान एक ब्लैक एंड व्हाईट बोर्ड फिल्ममेकर्स के साथ होता है। जब कोई सीन शूट हो जाता है तो क्लैपरबोर्ड को क्लैप किया जाता है जिससे ताली बजाने वाली आवाज निकलती है। लेकिन क्या आपको पता है पर्दे के पीछे यूज होने वाले इस जरूरी टूल का क्या काम होता है अगर नहीं तो आज जान जाएंगे।

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    फिल्ममेकिंग में क्यों यूज होता है क्लैपरबोर्ड

    दरअसल फिल्मों में अक्सर किसी सीन को शूट करने वाला कैमरा अलग रिकॉर्ड करता है और उस सीन में डाले जाने वाले साउंड की एक अलग माइक में रिकॉर्ड होती है। तो अब हर एक सीन की की कैमरा रिकॉर्डिंग और साउंड रिकॉर्डिंग की कई सारी रील बनेगी और जब ये एडिटर के पास जाएगी उसे कैसे पता चलेगा कि कौन से सीन में कौन सा साउंड डालना है। इसी कंफ्यूजन से बचने के लिए क्लैपरबोर्ड का इस्तेमाल किया जाता है।

    फोटो क्रेडिट- सोशल मीडिया

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    Clapperboard पर मेंशन होता है ये सबकुछ

    क्लैपरबोर्ड को कई नामों से जाना जाता है- क्लैपरबोर्ड, क्लैपबोर्ड, फिल्म क्लैपर, फिल्म स्लेट या मूवी स्लेट वह ब्लैक एंड व्हाइट बोर्ड है जो फिल्मों की शूटिंग में एक अहम भूमिका निभाता है। यह कैमरा रिकॉर्डिंग और साउंड रिकॉर्डिंग को सिंक्रोनाइजेशन का तरीका है। इस ब्लैक एंड व्हाईट बोर्ड पर सही निशान लगाना होता है ताकि वह स्क्रिप्ट सुपरवाइजर की रिपोर्ट से मेल खाए। इसमें रोल/रील नंबर,

    सीन नंबर, टेक नंबर को मेंशन किया जाता है जिसे एडिटर को पता चल जाता है कि कौन से सीन में कौन सी आवाज जोड़नी है। जब इसे क्लैप किया जाता है इसका मतलब है कि सीन और साउंड की रिकॉर्डिंग हो चुकी है और अब इसे सिंक्रेनाइज करना बाकी है।

    फोटो क्रेडिट- सोशल मीडिया

    ऐसा माना जाता है कि क्लैपरबोर्ड का आविष्कार ऑस्ट्रेलियाई फिल्ममेकर एफ डब्लयू थ्रिंग ने किया था। 1931 में यह अस्तित्व में आया तब से यह फिल्ममेकिंग का एक अहम हिस्सा बन गया है। किसी भी फिल्म की शूटिंग इसके बिना नहीं होती है। एक क्लैपरबोर्ड पर रोल, सीन, टेक के अलावा फिल्म का नाम, डायरेक्टर और प्रोडक्शन कंपनी का नाम भी मेंशन होता है। यहां तक कि सीन किस वक्त शूट किया जा रहा है इसका रिकॉर्ड और सिनेमैटोग्राफर का नाम और कैमरा एंगल जैसी जरूरी डिटेल्स भी इसमें दर्ज होती हैं। अब डिजीटल क्लैपरबोर्ड भी आने लगे हैं जिनमें पहले से जानकारी डाल दी जाती है जो एलईडी डिस्प्ले पर शो होती है।

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