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    फिल्ममेकर्स की मदद...ट्रकवाले के पहने कपड़े...दरियादिली से जीता दिल, जाते-जाते जिंदगी का पाठ पढ़ा गए धर्मेंद्र

    Updated: Thu, 27 Nov 2025 07:34 PM (IST)

    Dharmendra Death: अभिनेता धर्मेंद्र भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी यादें अनगिनत हैं, जिन्हें बॉलीवुड से लेकर आमजन तक, हर किसी ने समेट कर रखा हुआ है। धर्मेंद्र को जमीन से जुड़ा हुआ कलाकार कहा जात था, वो जितने अच्छे हीरो थे, असल जिंदगी में भी वो बिल्कुल ऐसे ही थे। 

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    दरियादिली की मिसाल धर्मेंद्र

    स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। दिलकश मुस्कान और मोहक व्यक्तित्व के धनी अभिनेता धर्मेंद्र (Dharmendra) सिर्फ पर्दे के हीरो नहीं, बल्कि जमीन से जुड़े हुए इंसान भी थे। उनकी सादगी और विनम्रता उतनी ही गहरी थी, जितनी उनकी आंखों की चमक। वे जितने सौम्य दिखते थे, उतनी ही सौम्यता उनके दिल में भी उतरती थी। उनकी दरियादिली के किस्से आज भी फिल्मी दुनिया में उसी गर्मजोशी के साथ याद किए जाते हैं।

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    जब फिल्ममेकर की धर्मेंद्र ने की मदद

    धर्मेंद्र की तीन फिल्में, आई मिलन की बेला, आए दिन बहार के और आया सावन झूम के निर्माता प्रख्यात फिल्ममेकर जे. ओमप्रकाश थे। इन तीनों फिल्मों ने सिल्वर जुबली मनाई थी। बाद में धर्मेंद्र ने ओमप्रकाश के निर्देशन में फिल्म आस-पास में भी काम किया था। उस समय ओमप्रकाश मुंबई के जूहू, विले पार्ले डेवलपमेंट स्कीम में एक बंगला खरीदने की योजना बना रहे थे। आज उस इलाके में जितेंद्र, अनिल कपूर, अजय देवगन जैसे कई सितारे रहते हैं।

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    धर्मेंद्र को पता चला कि ओमप्रकाश को पैसे की थोड़ी कमी हो रही है। उस समय आया सावन झूम के फिल्म की फीस की एक किस्त धर्मेंद्र को मिलनी बाकी थी। उन्होंने वह किस्त लेने से इंकार कर दिया और ओमप्रकाश से कहा कि पहले वे घर खरीद लें। अपना बकाया पैसा उन्होंने बाद में देने को कहा। यह उनकी दरियादिली का एक बड़ा उदाहरण है।

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    ट्रकवाले के कपड़े पहनकर की शूटिंग 

    उनकी उदारता का एक और मशहूर किस्सा उनकी फिल्म दो चोर (1972) से जुड़ा है। फिल्म के निर्देशक बी. पद्मनाभम चाहते थे कि एक खास सीक्वेंस सुबह-सुबह गोवा के बीच पर फिल्माया जाए, जिसमें धर्मेंद्र और तनुजा पुलिस से भाग रहे हों। उन्‍हें ट्रक ड्राइवर और क्लीनर के रूप में छिपना था।

    दो चोर

    सारी तैयारी हो चुकी थी, लेकिन कुछ गड़बड़ी के चलते धर्मेंद्र का कास्ट्यूम होटल में रह गया। होटल और लोकेशन के बीच की दूरी इतनी अधिक थी कि समय पर कास्ट्यूम लाना संभव नहीं था। यदि शूट सुबह नहीं होता तो पूरी यूनिट को एक दिन और रुकना पड़ता, जिससे निर्माता पर भारी खर्च आता।

    जब धर्मेंद्र को यह बात बताई गई, तो वे बिना नाराज हुए तुरंत समाधान की तलाश में लग गए। उन्होंने आसपास नजर दौड़ाई और पास खड़े एक ट्रक ड्राइवर के पास जाकर उससे उसका कुर्ता और पगड़ी मांग ली। कुर्ता साधारण और गंदा था, उनके स्तर का नहीं था, फिर भी उन्होंने बिना झिझक उसे पहनकर शूट किया। उनके इस व्यवहार ने साबित कर दिया कि वे कितने सरल और जमीन से जुड़े इंसान थे।

    मदद के लिए हमेशा तैयार रहते थे धर्मेंद्र

    निर्माता पहलाज निहलानी भी धर्मेंद्र की संवेदनशीलता का एक किस्सा साझा करते हैं। उन्होंने धर्मेंद्र के साथ आग ही आग फिल्म बनाई थी। एक बार अचानक इंडस्ट्री में हड़ताल हो गई। उस समय वे बेंगलुरु में शूट कर रहे थे। फोन आया कि शूटिंग बंद कर दें, लेकिन धर्मेंद्र ने कहा कि हम शूटिंग करेंगे। फिर मुंबई में हड़ताल खत्म होने पर धर्मेंद्र ने सबसे पहले मेरी फिल्म की शूटिंग की।

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    ये महज वो उदाहरण हैं, जो ये बताते हैं कि धर्मेंद्र के जीवन का उद्देश्य कितना साफ रहा है। वह पर्दे के अभिनेता होने के साथ साथ असल जिंदगी के भी हीरो रहे और उन्होंने यही सीख सबको दी कि जितना हो दिल साफ रखो और लोगों की मदद करो। हिंदी सिनेमा धर्मेंद्र के योगदान के लिए हमेशा आभारी रहेगा। 

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