'आज रिलीज होती तो जला दिए जाते थिएटर्स', Thug Life से पहले मणि रत्नम की इस फिल्म पर मचा था बवाल
मणि रत्नम (Mani Ratnam) साउथ फिल्म इंडस्ट्री के मशहूर निर्देशक हैं। इन दिनों डायरेक्टर अपनी अपकमिंग रिलीज ठग लाइफ (Thug Life) को लेकर सुर्खियों में बने हुए हैं। फिल्म को लेकर काफी विवाद हो रहा है मगर ये पहली बार नहीं जब उनकी मूवी पर बवाल मचा हो। 1995 में उनकी एक फिल्म पर जमकर विवाद हुआ था। आइए जानते हैं उस फिल्म के बारे में।

एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। भारतीय सिनेमा के दिग्गज डायरेक्टर और प्रोड्यूसर मणि रत्नम आज, 2 जून 2025 को अपना 69वां जन्मदिन मना रहे हैं। मणि रत्नम ने अपनी अनोखी कहानियों और शानदार निर्देशन से सिनेमा जगत में ऐसी फिल्में दीं, जिनका जादू आज भी बरकरार है।
‘रोजा’, ‘दिल से’ और ‘बॉम्बे’ जैसी फिल्मों से उन्होंने हर जॉनर में अपनी छाप छोड़ी है। इन दिनों उनके अपकमिंग फिल्म ठग लाइफ को लेकर काफी कंट्रोवर्सी हो रही है। लेकिन क्या आप उनकी उस फिल्म के बारे में जानते हैं, जिसने भारी विवाद खड़ा किया, दो देशों में बैन हुई और उनके घर पर हमला तक हुआ?
दो देशों में बैन हुई ‘बॉम्बे’
हम बात कर रहे हैं 1995 में रिलीज हुई फिल्म ‘बॉम्बे’ की, जिसमें अरविंद स्वामी, मनीषा कोइराला, सोनाली बेंद्रे और प्रकाश राज जैसे सितारे थे। यह फिल्म बाबरी मस्जिद दंगों की पृष्ठभूमि पर बनी थी। इसकी कहानी, अभिनय और मणि रत्नम का निर्देशन आज भी दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देता है। उस समय भी फिल्म को खूब पसंद किया गया, लेकिन सिंगापुर और मलेशिया में इसे बैन कर दिया गया।
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मणि रत्नम पर हुआ था हमला?
‘बॉम्बे’ को दर्शकों और क्रिटिक्स से तारीफें मिलीं, लेकिन विवाद भी उतना ही बड़ा था। फिल्म की संवेदनशील कहानी के कारण मणि रत्नम के चेन्नई स्थित घर पर हमला हुआ, जिसमें वह घायल हो गए और उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। फिल्म के सिनेमैटोग्राफर राजीव मेनन ने एक इंटरव्यू में कहा, “अगर ‘बॉम्बे’ आज रिलीज होती, तो थिएटर्स में आग लग जाती। यह उस समय की हिम्मत थी कि ऐसी कहानी बनाई गई।”
क्या थी ‘बॉम्बे’ की कहानी?
‘बॉम्बे’ एक हिंदू पुरुष शेखर (अरविंद स्वामी) और मुस्लिम महिला शैला बानो (मनीषा कोइराला) की प्रेम कहानी है। उनके परिवार उनके रिश्ते को स्वीकार नहीं करते, जिसके बाद वे भागकर शादी कर लेते हैं। उनके दो जुड़वां बच्चे होते हैं, लेकिन बॉम्बे में दंगे शुरू हो जाते हैं। इस अशांति में शेखर और शैला के माता-पिता अपने मतभेद भुलाकर बच्चों और पोतों को बचाने के लिए एकजुट हो जाते हैं।
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