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    मैं कहीं भी जाने को तैयार हूं, बस रोल और डायरेक्टर अच्छे हों और और पैसे मिलें- अनिल कपूर

    करीब चार दशक से हिंदी सिनेमा में सक्रिय अनिल कपूर ने तमाम तरह के पात्रों को जीवंत किया है। फिल्मों के रीमेक आगामी प्रोजेक्ट सहित तमाम मुद्दों पर अनिल कपूर के साथी स्मता श्रीवास्तव की बातचीत के अंश...

    By Karishma LalwaniEdited By: Karishma LalwaniUpdated: Sun, 19 Feb 2023 02:49 PM (IST)
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    File Photo of Anil Kapoor. Photo Credit: Instagram

    स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। अपने समकालीन कलाकारों में सबसे फिट हैं अभिनेता अनिल कपूर और वह लगातार काम कर रहे हैं। आगामी दिनों में वह फिल्म 'फाइटर' और 'एनीमल' में नजर आएंगे। वह समय के भी काफी पाबंद हैं। इस संदर्भ में वह कहते हैं, 'समय पर पहुंचना बहुत जरूरी है। अगर बहुत ट्रैफिक हो या अन्य कोई बड़ी समस्या हो तब देरी हो सकती है। मेरा मानना है कि कहीं भी समय से 10 मिनट पहले पहुंचना ही अच्छा होता है। इससे सामने वाला व्यक्ति सतर्क हो जाता है। जल्दी पहुंचने से आप शांत रहते हैं।'

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    यह तो बस शुरुआत है

    इस बार 95वें आस्कर अवार्ड में फिल्म 'आरआरआर' के गीत 'नाटू नाटू' को नामांकन मिला है। वहीं भारतीय डाक्यूमेंट्री 'द एलिफेंट व्हिस्पर्स' को शार्ट डाक्यूमेंट्री श्रेणी में नामांकन मिला है। अनिल खुद भी 'स्लमडाग मिलियनेयर', 'मिशन इंपासिबल- घोस्ट प्रोटोकोल', '24' जैसे अंतरराष्ट्रीय प्रोजेक्ट का हिस्सा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय सिनेमा के बढ़ते वर्चस्व को लेकर अनिल कपूर कहते हैं, 'यह हम सभी भारतीयों के लिए गर्व का क्षण है। यह तो भारत के सुनहरे भविष्य, भारतीय कंटेंट की अभी शुरुआत है।'

    हर जगह दिखते हैं दो पहलू

    फिल्मों में विभिन्न पात्रों को जीवंत करने की चुनौतियों पर अनिल कपूर कहते हैं, 'कलाकार होना ही सबसे चुनौतीपूर्ण होता है। खास तौर पर उस कलाकार के लिए जिसने हमेशा सकारात्मक चरित्र किए हों और उसे ऐसा पात्र निभाने का अवसरिमले, जो स्याह हो तो यह काफी रोमांचक हो जाता है। बतौर कलाकार पात्र में विश्वास करना होता है। मुझे लगता है कि बहुत अच्छे व्यक्ति का पात्र निभाना कठिन होता है।

    बुरे इंसान का चरित्र निभाना तब भी आसान है। अब तो समाज में ही कितना बदलाव आ गया है। आपको हर चीज में स्याह पहलू दिखेगा चाहे वो व्यापार हो, समाज, काम, या इंटरनेट मीडिया। हां, अगर अच्छे व्यक्ति की भूमिका आप विश्वसनीयता से करते हैं तो वह प्रेरणा बन जाता है।'

    कहानी रखती है अहमियत

    अनिल कपूर हाल ही में प्रदर्शित ब्रिटिश सीरीज 'द नाइट मैनेजर' के हिंदी रीमेक में नजर आए हैं। डिजिटल प्लेटफार्म पर आने की वजह से अब मूल कंटेंट तक लोगों की पहुंच बढ़ गई हैं। ऐसे में रीमेक फल्मों के चलन को लेकर अनिल कपूर कहते हैं, 'पहले लोगों को पता नहीं चलता था, लेकिन आजकल डिजिटल प्लेटफार्म की वजह से लोगों को मौलिक कंटेंट के बारे में पता लग जाता है। अंतरराष्ट्रीय कंटेंट भी दर्शकों के लिए सुलभ है। रीमेक प्रस्तुति भी खास होती है। जैसे विख्यात अमेरिकन शो 'होमलैंड' इजरायली शो 'प्रिजनर्स आफ वार' से प्रेरित होकर बना है।

    मेरी फिल्म 'वो सात दिन', 'बेटा', 'विरासत', 'जुदाई' किताबों पर आधारित थीं। जो कहानियां अच्छी होती हैं, उन पर शो बनते हैं तो कभी फिल्में। हम बतौर कलाकार स्क्रिप्ट सुनते हैं, फिर देखते हैं कि उसके पीछे कौन निर्माता है, कौन निर्देशित कर रहा है। सब चीजें सही हो जाती हैं तो हम हां कर देते हैं। उसके बाद हमारे दर्शक होते हैं जो बताते हैं कि उन्हें हमारा काम कैसा लगा, वही इसके बारे में निर्णय लेते हैं।'

    रोल और निर्देशक अच्छे हों

    अनिल कपूर ने हाल में 'कांतारा' के निर्देशक ऋषभ शेट्टी के साथ काम करने की इच्छा जताई थी। क्या अब दक्षिण भारतीय कंटेंट की ओर उनका भी झुकाव हो रहा है? इस संदर्भ में अनिल हंसते हुए कहते हैं, 'मैं कहीं भी जाने को तैयार हूं, बस रोल अच्छा हो, निर्देशक अच्छा हो और थोड़े बहुत पैसे मिल जाएं!'

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