'सिनेमा में समानता आना अभी बाकी है..', Chhori 2 की दासी मां ने सैफ का जिक्र करते हुए क्यों कहा- हम भाग्यशाली हैं?
अभिनेत्री सोहा अली खान ने करीब दो दशक पहले फिल्म ‘दिल मांगे मोर’ से हिंदी सिनेमा में कदम रखा था। उसके बाद उन्होंने रोमांस कॉमेडी और थ्रिलर जॉनर में कई फिल्में कीं लेकिन उन्हें कभी खल (निगेटिव) भूमिका निभाने का अवसर नहीं मिला। यह मौका उन्हें मिला हालिया प्रदर्शित फिल्म ‘छोरी 2’ में दासी मां की भूमिका में। सोहा अली खान ने महिला प्रधान फिल्मों पर क्या कहां यहां पढ़ें..
दीपेश पांडेय, मुंबई। हर कलाकार अपना ड्रीम रोल जरूर तय करता है। जहां सबकी इच्छा होती है मुख्य भूमिका निभाने की, वहीं सोहा अली खान की चाहत थी कुछ हटकर करने की। अभिनेत्री सोहा अली खान ने करीब दो दशक पहले फिल्म ‘दिल मांगे मोर’ से हिंदी सिनेमा में कदम रखा था।
उसके बाद उन्होंने रोमांस, कॉमेडी और थ्रिलर जॉनर में कई फिल्में कीं, लेकिन उन्हें कभी खल (निगेटिव) भूमिका निभाने का अवसर नहीं मिला। यह मौका उन्हें मिला हालिया प्रदर्शित फिल्म ‘छोरी 2’ में दासी मां की भूमिका में।
देर आए दुरुस्त आए
हालांकि, सोहा इस फिल्म को करने से पहले भी डरी हुई थीं कि पता नहीं अच्छी हॉरर फिल्म बन पाएगी या नहीं।
सोहा अली खान कहती हैं,
मेरे अंदर फिल्म को लेकर डर पैदा हुआ था, फिर मैंने उसे नियंत्रित भी किया। फिर मैंने आगे बढ़कर एक ही दिन में इस फिल्म के लिए हां भी बोल दिया था। मुझे पता था कि स्वयं को बतौर कलाकार साबित करने के लिए यह एक बहुत ही खास मौका है। बतौर कलाकार हम चाहते हैं कि लोग हमारी परफार्मेंस पर ध्यान दें, हमारी प्रशंसा करें।
निगेटिव भूमिका निभाना भी मेरे लिए काफी दिलचस्प बात थी। मैं यह मौका नहीं गंवाना चाहती थी। (हंसते हुए) वैसे इससे पहले निगेटिव तो मैं बहुत बार बन चुकी हूं, लेकिन कैमरे के पीछे (निजी जिंदगी में)। जिसके बारे में लोगों को कम ही पता है। इस बार तो सभी को दिखाई दे रहा है कि जब मुझे खाना समय पर नहीं मिलता है तो क्या होता है।
पता नहीं क्यों, इससे पहले किसी ने मुझे निगेटिव भूमिका के लिए नहीं पूछा। बस ये कहूंगी कि मौका देर से आया पर दुरुस्त आया। निगेटिव भूमिकाओं में बहुत सारी रचनात्मक स्वतंत्रता व प्रयोग के मौके होते हैं। जब हमें हीरो या हीरोइन वाली अच्छी भूमिकाएं निभानी होती हैं, तो कुछ सीमाएं हो जाती हैं, निगेटिव भूमिकाओं में ऐसा नहीं होता।
अभी बाकी है लड़ाई
वर्तमान दौर में हिंदी सिनेमा में पुरुष प्रधान फिल्मों की तुलना में बन रही महिला प्रधान फिल्मों पर सोहा कहती हैं कि बदलाव आ चुका है। 10 साल पहले शायद मैं खुद को 40 साल के पार हो रही इस उम्र में इतनी अच्छी भूमिका निभाते हुए नहीं देखती।
अब हम देख सकते हैं कि 40 साल की उम्र के पार भी अभिनेत्रियां काफी महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभा रही हैं। वो मेरे लिए सबसे ज्यादा मायने रखता है। मैंने भले ही पांच साल काम नहीं किया, लेकिन आज जब काम करना चाहती हूं तो मेरे लिए भी अच्छे मौके आ रहे हैं।
हालांकि, अभी भी इतनी समानता नहीं आई है कि हम महिला प्रधान फिल्में कहने वाला लेबल हटा सकें। हम ऐसा कहते रहते हैं क्योंकि अभी भी हमें अपनी लड़ाई आगे बढ़ाते रहने की जरूरत है।
अभी भी हमें सेट पर पुरुषों की संख्या के बराबर होना है, विशेषकर कैमरे के पीछे वाली दुनिया में। महिलाओं के लिए लिखी गई कहानियां आज पुरुषों के नजरिए से दिखाई जा रही हैं। कुल-मिलाकर हम सही दिशा में जा रहे हैं।
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भाग्यशाली हैं हम
16 जनवरी को भाई और अभिनेता सैफ अली खान पर हुए हमलों के बाद परिवार के माहौल पर सोहा कहती हैं,
इस पर जो कुछ कहना था, भाई ने पहले ही सब कह दिया है। उनका नजरिया सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण था, क्योंकि हादसा तो उनके साथ ही हुआ था।
मैं बस इतना कहना चाहती हूं कि हम सभी बहुत खुश हैं और भाग्यशाली महसूस कर रहे हैं। जो हुआ वो काफी बुरा हुआ, लेकिन उससे बुरा भी हो सकता था, जो नहीं हुआ। हम इसको लेकर बस ऊपर वाले के आभारी हैं।
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