बॉलीवुड के गानों में शास्त्रीय संगीत की झलक, रीमेक से लेकर रैप जैसे म्यूजिक पर बोलीं फेमस सिंगर Shalmali Kholgade
बॉलीवुड की फिल्मों में कहानी के साथ उसके गाने भी अहम भूमिका निभाते हैं। हाल ही में परेशान... बलम पिचकारी... लत लग गई... बेबी को बेस पसंद है... जैसे हिट गानों में अपनी आवाज देने वाली सिंगर Shalmali Kholgade ने बताया कि किसी भी कलेवर का गाना हो उसके सुर को पकड़ने से ही भारतीय शास्त्रीय संगीत की सीथ मिलती है। आइए जानें भारतीय संगीत पर उनकी क्या राय है।
दीपेश पांडेय, मुंबई। भारतीय संगीत की दुनिया में इन दिनों रीमेक से लेकर रैप तक, पश्चिमी देशों के संगीत के साथ शास्त्रीय संगीत के मिश्रण व लोकगीतों को विभिन्न प्रकार से गाने के प्रयोग चल रहे हैं। हालांकि, इनके बीच गायिका शाल्मली खोलगड़े भारतीय शास्त्रीय संगीत की शिक्षा को महत्वपूर्ण मानती हैं। वह कहती हैं, ‘हम जिस तरह का संगीत सुनते हैं, उसका असर हमारे संगीत बनाने या गाने में आ ही जाता है।
बचपन से संगीत के माहौल में बड़ी हुईं सिंगर
दैनिका जागरण के साथ खास बातचीत में सिंगर बताती हैं कि उन्होंने बचपन से संगीत का माहौल देखा है। बचपन से ही आरती अंकलेकर टिकेकर, वडाली ब्रदर्स, कुमार गंधर्व समेत बहुत से भारतीय शास्त्रीय कलाकारों को सुना और अंग्रेजी बैंड भी सुने। मम्मी मुझे भारतीय शास्त्रीय संगीत सुनाती और सिखाती थीं।
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बचपन में भारतीय शास्त्रीय संगीत सीखना उतना रुचिकर नहीं था। हालांकि, आज मैं मां की शुक्रगुजार हूं। शास्त्रीय संगीत सीखने के कारण ही इस विधा की समझ बढ़ी है, जिंदगी में अनुशासन आ गया। मैंने भले ही बहुत ज्यादा भारतीय शास्त्रीय संगीत न गाया हो, लेकिन उसका उपयोग भली-भांति समझती हूं।
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भारतीय शास्त्रीय संगीत की अहमियत
हम बिना भारतीय शास्त्रीय संगीत के आगे नहीं बढ़ सकते हैं।’ शाल्मली ने हाल ही में शंकुराज कोंवर के साथ कोक स्टूडियो भारत के लिए असमिया लोक गीत होलो लोलो... गाया। वह कहती हैं, ‘जब इसका प्रस्ताव मिला तब मैंने कहा कि पहले गाना सुनाओ, तब तय होगा कि गा पाऊंगी या नहीं? इससे पहले मैंने किसी फिल्म या एल्बम के लिए असमिया भाषा में गाना नहीं गाया था। गाना सुनने के बाद मुझे इसमें अवसर दिखा।
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संगीत का जनवरों पर असर
ऐसी गमक स्वाभाविक तौर पर मेरे गायन में नहीं है। मैंने तय किया कि इसका अभ्यास करूंगी। होलो लोलो...गाने का अनुभव कमाल का था। इस प्रक्रिया में बहुत कुछ सीखने को मिला। इस गाने को असम का मोरन समुदाय हाथियों को शांत रखने के लिए गाता है। यह गाना रिकार्ड करने के बाद अब मेरा मन है कि असम जाकर उस समुदाय और इस लोकगीत को गाने की परंपरा को करीब से देखूं।’
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