मजबूरी में Raj Kapoor संग काम करने को राजी हुए थे 'आवारा हूं' बनाने वाले शैलेंद्र, 500 रुपये में लिखे दो गाने
इसे भाग्य का खेल ही कहेंगे कि अपनी जन्मतिथि पर एक दोस्त दूसरे जिगरी दोस्त के जीवन की प्रार्थना कर रहा था मगर उनका साथ छूट ही गया। राज कपूर की जन्मतिथि (14 दिसंबर) उनके जिगरी यार और गीतकार शैलेंद्र (Shailendra) की पुण्यतिथि भी है। चलिए आपको सिनेमा के गहरे दोस्त राज कपूर और शैलेंद्र से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा बताते हैं।
जागरण न्यूज नेटवर्क, मुंबई। जीवन की सच्चाई पर्दे की सच्चाई से कहीं अधिक कड़वी होती है। राज कपूर (Raj Kapoor) ने अपने सिनेमाई जीवन में कई किरदारों को जिया, दर्शकों का मन मोहा और शोमैन का खिताब पाया। हंसी-खुशी, प्रेम-विरह, दुख-दर्द के रोमांचक क्लाइमेक्स फिल्माए। लेकिन अपनी 41वीं जन्मतिथि पर राज कपूर ने जीवन का जो क्लाइमेक्स देखा,उसका नजारा उनकी फिल्मों के दृश्य से काफी ज्यादा क्रूर था।
अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि राज कपूर को शैलेंद्र (Shailendra) से बधाइयां लेनी थीं लेकिन उल्टा उन्हें उनके लिए प्रार्थना करनी पड़ी। वह भी काम न आई, आखिर में राज कपूर को शैलेंद्र को अंतिम सलाम कहने के लिए विवश होना पड़ा।
500 रुपये में काम करने के लिए हुए थे तैयार
बताते चलें कि सन् 1946 में इप्टा के कवि सम्मेलन में शैलेंद्र का गीत सुनकर राज कपूर ने उन्हें फिल्म में लिखने के लिए प्रस्ताव दिया था। शैलेंद्र ने प्रस्ताव ठुकरा दिया। राज कपूर ने कहा, 'अच्छी बात है, कभी इच्छा हो तो मेरे पास आइएगा।' कुछ समय बाद शैलेंद्र आर्थिक तंगी में फंसे तो राज कपूर से मिलकर कहा, 'मुझे पांच सौ रुपये की जरूरत है। जो मुनासिब समझें काम करवा लीजिएगा।' राज कपूर ने शैलेंद्र की समस्या दूर कर दी।
रेलवे में वेल्डर थे शैलेंद्र
शैलेंद्र ने फिल्म ‘बरसात’ के लिए दो गीत लिखे। राज कपूर को शैलेंद्र का गीत इतना पसंद आया कि टाइटल सॉन्ग बनाया। शैलेंद्र रेलवे में वेल्डर थे। राज कपूर शैलेंद्र से मिलने चले जाते थे। शैलेंद्र फिल्म के लिए गीत लिखने को तैयार नहीं हो रहे थे। शैलेंद्र की जिद का भी राज कपूर ने कभी बुरा नहीं माना। राज कपूर आवारा बनाने की तैयारी में जुटे थे। उन्होंने शैलेंद्र से कहा, कहानी सुनने में क्या हर्ज है ? दोनों ख्वाजा अहमद अब्बास के यहां गए। ख्वाजा अहमद अब्बास ने कहानी का नैरेशन शुरू किया।
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एक मिनट में बना दिया था गाना
शैलेंद्र और राज कपूर ढाई घंटे तक कहानी सुनते रहे। कहानी खत्म हुई तो राज कपूर ने शैलेद्र की ओर देखते हुए पूछा, ‘कैसी लगी ?’ शैलेंद्र ने कहा, ‘अच्छी है।’ राज कपूर ने जोर देकर पूछा, ‘आपको इस कहानी में क्या नजर आया ?’ शैलेंद्र ने कहा, ‘गर्दिश में था, पर आसमान का तारा था, आवारा था।’ शैलेंद्र की बात सुनते ख्वाजा अहमद अब्बास बोले, ‘इस आदमी ने तो कहानी को बोल दे दिए।’ फिर शैलेंद्र को गले लगा लिया। राज कपूर ने फिर शैलेंद्र को समझाना शुरू किया।
Raj Kapoor with Shailendra- Instagram
संगीत की दुनिया में छा गए थे शैलेंद्र
काफी मान-मनौव्वल से शैलेंद्र का दिल पसीज गया और वो गीत लिखने के लिए राजी हो गए। राज कपूर ने शैलेंद्र को कहानी का पूरा प्लॉट समझाया और शैलेंद्र ने गीतों की माला तैयार की। ‘आवारा हूं या गर्दिश में हूं, आसमान का तारा हूं’ गीत को अभूतपूर्व सफलता मिली। फिल्म हिट हुई। इसके बाद शैलेंद्र भी हिंदी सिनेमा से जुड़ गए।
संगीत के बाद चुना अभिनय
राज कपूर शैलेंद्र की काफी इज्जत करते थे। आरके स्टूडियो स्थित राज कपूर के कॉटेज में शैलेंद्र के बैठने के लिए जगह सुरक्षित थी। वहां शैलेंद्र के अलावा कोई नहीं बैठता था। शैलेंद्र ने ‘तीसरी कसम’ फिल्म बनाने का फैसला किया तो राज कपूर ने उन्हें फिल्म बनाने से मना किया। वो जानते थे कि शैलेंद्र व्यवसायी नहीं हैं, वे विशुद्ध कवि मन के कलाकार हैं। फिर भी शैलेंद्र ने जब ‘तीसरी कसम’ फिल्म के मुख्य किरदार हीरामन की भूमिका निभाने को कहा तो उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया और केवल 1 रुपया पारिश्रमिक मांगा। यह थी राज कपूर और शैलेंद्र के रिश्ते की ऊंचाई।
नाराजगी भी नहीं तोड़ पाई दोस्ती
‘तीसरी कसम’ की शूटिंग के दरम्यान राज कपूर की लेट-लतीफियां मशहूर रहीं। शैलेंद्र की परेशानी बढ़ी। क्लाइमेक्स सीन को लेकर वैचारिक जंग भी हुई। ‘तीसरी कसम’ की असफलता से जब शैलेंद्र टूटे तो राज कपूर उनके साथ खड़े रहे। 1966 के दिसंबर माह में राज कपूर शैलेंद्र से मिलने उनके घर गए थे। राज कपूर ने शैलेंद्र से ‘जीना यहां मरना यहां, इसके सिवा जाना कहां।’ गीत लिखने की गुजारिश भी की थी। शैलेंद्र ने कहा, ‘बस यार 14 दिसंबर की पार्टी के बाद गीत लिखकर दे दूंगा।’
Shailendra and Raj Kapoor- Instagram
राज कपूर को देना चाहते थे बर्थडे गिफ्ट
14 दिसंबर अर्थात राज कपूर का जन्मदिन। शैलेंद्र इस मौके पर राज कपूर को विशेष उपहार भेंट करने के लिए रचनाकर्म में भी जुटे थे। इसकी जानकारी सिर्फ उनकी पत्नी शकुंतला शैलेंद्र को थी। 13 दिसंबर को शैलेंद्र आरके स्टूडियो भी गए थे। राजकपूर के कॉटेज में अपनी कुर्सी पर ही बैठे थे। वहां जश्न की तैयारी चल रही थी। राज कपूर से मिलकर शैलेंद्र घर लौटे। अचानक उनकी तबीयत खराब हो गई। उन्हें नॉर्थ कोर्ट नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया।
दोस्त के निधन से टूट गए थे राज कपूर
किसी तरह रात गुजरी। दूसरे दिन राज कपूर की पत्नी शैलेंद्र को देखने अस्पताल पहुंचीं। शैलेंद्र की तबीयत बिगड़ने की खबर राज कपूर को मिली तो उन्होंने शंकर जयकिशन को अस्पताल भेजा। आरके स्टूडियो के सैकड़ों कर्मचारी रात को होने वाली पार्टी की तैयारी छोड़, राज कपूर के साथ खड़े होकर प्रार्थना में जुट गए। न दवा काम आई न दुआ। अंततः शैलेंद्र ने दुनिया को अलविदा कह दिया। राज कपूर ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए लिखा था, ‘एक मरता है एक जन्मता है। कैसी विडंबना है ?’
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