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    Raj Kapoor के साथ कैसा था Ranbir Kapoor का रिश्ता? अभिनेता ने बताया दादा कि किन फिल्मों को करते हैं पसंद

    Updated: Sun, 08 Dec 2024 06:30 AM (IST)

    हिंदी सिनेमा के दिवंगत फिल्म निर्माता और अभिनेता राज कपूर का नाम सम्मान के साथ लिया जाता है। फिल्म इंडस्ट्री में उनके योगदान को आज के समय में भी याद किया जाता है। 14 दिसंबर को उनकी बर्थ एनिवर्सरी है। इससे पहले हमारे संवाददाता ने द ग्रेटेस्ट शोमैन के पोते रणबीर कपूर से बात की। अभिनेता रणबीर ने दादा के साथ अपने संबंधों के बारे में बताया।

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    राज कपूर की इन फिल्मों को पसंद करते हैं रणबीर कपूर (Photo Credit- IMDB, Jagran)

    जागरण न्यूज नेटवर्क, मुंबई। हिंदी सिनेमा के सबसे बड़े फिल्ममेकर राज कपूर को उनके काम के लिए आज भी याद किया जाता है। 14 दिसंबर को द ग्रेटेस्ट शोमैन के नाम से मशहूर राज कपूर की बर्थ एनिवर्सरी है। आज आपके साथ हमारे संवाददाता के इंटरव्यू के अंश शेयर कर रहे हैं, जो रणबीर कपूर का है। राज कपूर के सिनेमा पर उनके पोते और एक्टर रणबीर कपूर से बात फिल्मकार राहुल रवेल ने की।

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    राज कपूर के साथ अपने रिश्ते को कैसे याद करते हैं रणबीर?

    रणबीर कपूर ने इस सवाल का जवाब देते हुए बताया कि बचपन की यादें तो अलग ही हैं। जब उनकी मृत्यु हुई तब मेरी उम्र महज छह वर्ष थी, पर उन दिनों की स्मृतियां आज भी उतनी ही जीवंत हैं। मुझे याद है बचपन में हम सभी भाई-बहन, करिश्मा, करीना, रिद्धिमा उनके पास जाया करते थे। वो हमें पंक्ति में खड़ा करते थे। हमें सलाम करना होता था और उन्हें ‘आवारा हूं’ गाकर सुनाना होता था। उसके बाद वह बड़े प्यार से गालों पर हमसे किस

    लेते और खूब स्नेह लुटाते हुए हम सभी को कैरेमल कैंडीज दिया करते थे। किसी भी आम दादा-पोते की तरह हमारा रिश्ता था। जब मां डांटती थीं तो दादा जी से शिकायत करता था और वह मुझे लाड करते हुए उनके ऊपर गुस्सा करते थे।

    मृत्यु क्या होती है, मुझे उसका एहसास नहीं था, पर याद करता हूं कि जब उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा तब हम देवनार काटेज में थे। हम बच्चे टैरेस पर खेल रहे थे। नीचे गार्डन पर जब मेरी नजर गई तो उन्हें देखने वालों की इतनी भीड़ उमड़ पड़ी थी। उसी समय मुझ ये एहसास हो गया था कि मेरे दादा जी का व्यक्तित्व कुछ खास था।

    Photo Credit- Jagran

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    अभिनेता के तौर पर राज कपूर को कैसे देखते हैं?

    एक फिल्मकार के तौर पर उन्होंने अपने जीवनकाल के दौरान अलग-अलग विषयों को फिल्मों के जरिए उठाया। उनकी शुरुआती फिल्म ‘आवारा’ ने समाज में अमीर-गरीब और जाति भेदभाव के मुद्धे को उठाया। इसमें दिखाया गया कि फिल्म के नायक पर समाज की सोच का किस तरह से प्रभाव पड़ता है। वहीं, ‘श्री 420’ वंचित वर्ग के एक युवा की कहानी थी, जिसकी आंखों में कुछ बनने का सपना होता है और फिल्म में लालच और लोभ का भी चित्रण था।

    बाद के वर्षों में उन्होंने अपनी फिल्मों में भारतीय नैतिक मूल्यों को सशक्त रूप में दर्शाया। समाज की सच्चाई को मुखरता से दिखाया, पर उसके साथ ही उनकी फिल्में कमर्शियल व मनोरंजक भी थीं। उन्होंने महिला केंद्रित फिल्में भी बनाईं। ‘प्रेम रोग’ में वह विधवा विवाह की बात करते हैं, तो वहीं ‘राम तेरी गंगा मैली’ की नायिका के चरित्र की पवित्रता का साम्य उन्होंने गंगा की निर्मलता से किया। गंगोत्री से जब गंगा की धारा नीचे की ओर आती है, तो लोग अपने कृत्यों से उसे प्रदूषित करते हैं।

    इस तरह का एक बड़ा उदाहरण ‘मेरा नाम जोकर’ का है, जिसके बाद उनके ऊपर आर्थिक मुश्किलों का पहाड़ टूट पड़ा था। घर गिरवी रखना पड़ा, पर उसके बाद भी उनमें नए कलाकारों को लेकर ‘टीनेज लव स्टोरी’ बनाने का साहस था। 50 वर्ष की आयु में उन्होंने ‘बॉबी’ जैसी हिट फिल्म दी। इससे यह साबित हो जाता है कि समय के साथ चलना उन्हें आता था। उन्होंने स्वयं को किसी दायरे में कैद नहीं किया था। वह अर्श पर थे, लेकिन आम लोगों से उनका जुड़ाव था। उन्हें पता था कि लोगों को किस तरह की कहानियां अच्छी लगेंगी।

    Photo Credit- IMDB

    उनकी कौन सी फिल्में आप सबसे ज्यादा पसंद करते हैं?

    मेरे जेहन में दो फिल्में आती हैं, पहली है ‘श्री 420’। उसकी कहानी मुझे बहुत पसंद है। एक इंसान जो वंचित वर्ग से आता है, पर उसकी आंखों में सपने हैं। धन और शोहरत मिलने के बाद बदली हुई परिस्थितियों में हम स्वयं को कैसे ढालते हैं, इस कहानी के साथ ही फिल्म का संगीत और अभिनय बिल्कुल शानदार है। दूसरी फिल्म है ‘जागते रहो’। ये फिल्म उन्होंने निर्देशित नहीं की थी, पर निर्माण व उसमें अभिनय किया था। जब मैं फिल्म स्कूल में था, हम विभिन्न संस्कृतियों व देशों की कहानियां देखते थे, उस समय मुझे लगा कि ये वह फिल्म है, जिसकी गिनती दुनिया के बेहतरीन सिनेमा में होनी चाहिए।

    क्या आप अभिनय के साथ निर्देशन में जाना चाहते हैं? 

    फिल्मी दुनिया के प्रतिष्ठित परिवार से होने की वजह से मेरे पास अभिनय के अवसर सहज रूप से आए जरूर, पर मैं उन्हें सहज तरीके से नहीं लेना चाहता था। मेरे मन में अपना सर्वश्रेष्ठ देने की ललक थी। जैसे-जैसे मैंने बेहतरीन निर्देशकों के साथ काम किया, मुझे एहसास हुआ कि यह बेहद मुश्किल काम है। एक्टिंग भी कठिन है, पर निर्देशन की तुलना में यह आसान है। दादा जी ने 24 वर्ष की आयु में ‘आग’ का निर्माण, निर्देशन, लेखन व उसमें अभिनय किया। मेरी आयु आज 42 वर्ष है, पर मेरे भीतर फिल्म निर्देशित करने का साहस नहीं है। मैंने ‘जग्गा जासूस’ फिल्म प्रोड्यूस की थी, पर वह नहीं चली। ये सच है कि मैं फिल्म निर्देशित करना चाहता हूं। जिसके लिए मुझे अच्छी कहानी का इंतजार है। मेरा मानना है कि किसी निर्देशक को फिल्म तभी बनानी चाहिए, जब उसके पास बताने के लिए कोई कहानी हो। सिर्फ निर्देशन की इच्छा पूरी करने के लिए फिल्म बनाने का औचित्य नहीं है।

    राज कपूर की विरासत को किस तरह आगे बढ़ाना चाहेंगे?

    मेरा मानना है कि उनको जो बात विशिष्ट बनाती थी, वह ये थी कि उन्होंने किसी मॉडल का अनुसरण नहीं किया। उन्होंने लगातार नई चीजों को बनाने का जोखिम उठाया। सीमाओं से उठकर काम करते गए। विविध पात्रों की विविधतापूर्ण कहानियां कहीं। अगर आप किसी विरासत को आगे बढ़ाना चाहते हैं तो आपको यह अपने स्वतंत्र दृष्टिकोण से करना चाहिए। जब मैंने काम करना शुरू किया तो मेरे पिता को फिल्मों का मेरा चयन ठीक नहीं लगता था। मैंने ‘बर्फी’, ‘वेक अप सिड’, ‘रॉकेट सिंह: सेल्समैन ऑफ द ईयर’ जैसी फिल्में की। उन्हें लगता था कि मुझे ऐसी कमर्शियल फिल्में करनी चाहिए, जो व्यापक रूप से दर्शकों को अपील करें पर मैंने उन कहानियों से जुड़ाव महसूस किया। सिनेमा के उत्कृष्ट फिल्मकार चाहे वे राज कपूर, बिमल राय, गुरु दत्त, शेखर कपूर या फिर आप हों, सभी के द्वारा निर्मित सिनेमा वो था जैसा उन्होंने जीवन को लेकर अनुभव किया था, उनका अपना दृष्टिकोण था। जिसे उन्होंने कहानियों में दर्शाया। हम उस सिनेमा से प्रेरित हो सकते हैं, पर अपनी जगह बनाने के लिए आपको स्वतंत्र दृष्टिकोण रखना पड़ेगा।

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