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    मां को अपनी जन्नत मानते हैं Shah Rukh Khan, क्यों हर आदमी देखता है उनमें अपनी सूरत?

    By सुबीर सरनEdited By: Tanya Arora
    Updated: Sat, 01 Nov 2025 01:15 PM (IST)

    दिल्ली की धूप जब पत्थरों पर उतरती है, तो शहर की दीवारों से एक लड़के की हंसी अब भी टकराती है। वही लड़का-मोहल्ले की गलियों से उठा, मंचों से गुजरा, और समंदर किनारे एक महल - ‘मन्नत’ - में अपने सपनों का देश बसाया। नाम है - शाहरुख खान। चलिए उनकी 60वें जन्मदिन के मौके पर उनकी जिंदगी पर डालते हैं एक नजर: 

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    शाह रुख खान मना रहे हैं 60वां जन्मदिन/ फोटो- X Account

    जागरण न्यूजनेटवर्क। वह जिसने अपने पहले अभिनय-अध्याय की शुरुआत मॉडर्न स्कूल वसंत विहार की रंगमंचीय चौखट से की। तब दिल्ली की हवा में दूर-दूर तक कैमरों की खनक नहीं थी, न सेल्फी का शोर, न शोहरत का झोंका। सिर्फ मंच था, संवाद था, और एक बेचैन आत्मा थी जो कहती थी- “अगर मैं कर सकता हूं, तो तुम भी कर सकते हो।”

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    शाहरुख, एक ऐसा नाम जो किसी एक धर्म, किसी एक शहर, किसी एक सपने तक सीमित नहीं रहा। पिता - स्वतंत्रता सेनानी, मां - ममता की नदी और बेटा - एक ऐसा कलाकार जिसने भारत को आईने में नहीं, आसमान में देखा।

    राज कपूर का वो सपना हैं शाह रुख खान?

    राज कपूर ने कभी गाया था- “मेरा जूता है जापानी, ये पतलून इंग्लिस्तानी, सर पे लाल टोपी रूसी…” और कहीं भीतर उस गीत में छिपी थी एक पंक्ति जो आने वाले युग की नब्ज बननी थी- “फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी।” कह सकते हैं - राज कपूर ने जिस हिन्दुस्तानी का सपना देखा, वो शाहरुख बन कर जन्मा।

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    वो जो औसत कद का है, पर ऊंचाईयों को छूता है। जो आम शक्ल-सूरत वाला है, पर चेहरे पर करिश्मे की किरणें खेलती हैं। जो मुस्लिम है, पर हिंदू घर में ब्याह करता है। जो दिलवाला है, पर दिमाग से भी दिग्गज है।

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    गौरी - उसकी प्रेयसी, उसकी प्रार्थना। दिल्ली की चिब्बर लड़की, जिसने अपने खान के साथ प्रेम का सबसे सुंदर प्रतीक रचा। जहां भारत की दीवारें अक्सर धर्म में बंट जाती हैं, वहां उन्होंने एक घर बनाया - जहां आरती भी गूंजती है, और अजान भी। तीन बच्चे - तीन सितारे, और एक विवाह जो समय की आंधियों में भी मुस्कुराता रहा।

    हर कदम पर किंग ने किया भारत का नाम रोशन

    शाहरुख वो दर्पण हैं, जिसमें भारत अपनी सूरत भी देखता है, और अपनी संभावनाएं भी। वो लड़का जो फौजी से चला, दिलवाले दुल्हनिया तक आया, और पठान-जवान से हमें याद दिलाता रहा - देशभक्ति केवल तिरंगा फहराना नहीं, बल्कि अपने काम से, अपने कर्म से, अपनी काबिलियत से भारत का नाम उज्जवल करना है।

    न्यूयॉर्क की सड़कों पर जब मैं था, तो देखा कि लोग भारत को नक्शे पर नहीं, शाहरुख की मुस्कान में ढूंढते थे। वे कहते, “ओह, यू आर फ्रॉम बॉलिवुड! आर यू लाइक शाहरुख खान?” और मैं भीतर से मुस्कुरा उठता- क्योंकि उस एक नाम में मेरा देश सिमट आता था। साठ साल की उम्र में जब उन्होंने अपना पहला राष्ट्रीय पुरस्कार जीता, जब उन्होंने मेट गाला के लाल कालीन पर सब्यसाची की ज्वेलरी के साथ भारत की गरिमा को गले लगाया, तो लगा-यह सिर्फ अभिनेता का नहीं, एक युग का सम्मान है।

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    उसका हर संवाद किसी कविता की तरह उतरता है- कभी “कभी-कभी लगता है अपुन ही भगवान है,” तो कभी “जिन्दगी में दो चीजें मत खोना - अपने सपने और अपनी मुस्कान।” वो जानता है कि शब्द तब तक जिंदा नहीं होते जब तक वे किसी के दिल में घर न बना लें।

    सपनों पर भरोसा है शाह रुख खान का 'मन्नत'

    शाहरुख, सितारा नहीं, वो प्रतीक है- उस भारत का जो विविधता में एकता ढूंढता है। जहां मुस्कान किसी मजहब की मोहताज नहीं, जहां मेहनत किसी खानदान की बपौती नहीं। वो सिखाता है कि ‘मन्नत’ केवल समंदर-किनारे का घर नहीं, वो हर उस दिल का नाम है जो सपनों पर भरोसा करता है। आज जब भीड़ उसकी बालकनी के नीचे ‘शाहरुख-शाहरुख’ पुकारती है, तो लगता है यह सिर्फ किसी नायक का नहीं, हम सबके आत्मविश्वास का उत्सव है। क्योंकि उसने जो कर दिखाया, वो हमारी अपनी सम्भावना है। शाहरुख उस लहर का नाम है जो किनारा नहीं ढूंढती, बल्कि दिशा दिखाती है। उस मुस्कान का नाम जो हमें याद दिलाती है- हम चाहे जहां जाएं, फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी।

    परिवार को संजोकर रखने की सीख देते हैं शाह रुख खान

    यही उसकी सबसे बड़ी अदाकारी है कि वो स्क्रीन से उतरकर हर हिन्दुस्तानी के दिल में रहने लगा है। वह केवल एक अभिनेता नहीं, वो भारत का सबसे सुन्दर रूपक है - मिट्टी का, मोहब्बत का, और मंजिल का। उस रूपक में एक और परत है - मां की आराधना। शाहरुख अपनी मां के पुजारी हैं। उन्होंने मां को केवल जन्म देने वाली नहीं, बल्कि जीवन का अर्थ बनाने वाली देवी माना। वो ‘मां भारती’ को भी उसी श्रद्धा से नमन करते हैं - जहां आस्था और आधुनिकता एक साथ सिर झुकाते हैं।

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    अपनी पत्नी गौरी के लिए उनका प्रेम उतना ही दृढ़ और दीर्घ है - एक साथी के रूप में, एक प्रेरणा के रूप में। अपनी बेटी सुहाना के लिए उनका स्नेह उतना ही सजीव है - जैसे पिता नहीं, एक कवि अपनी कविता से प्रेम करता हो। ऐसे पुरुष ही भारत मां के सच्चे पुत्र हैं -जो नारी में शक्ति भी देखते हैं, संवेदना भी। जो परिवार में श्रद्धा भी संजोते हैं और समाज में समभाव भी और मैं, जिसने अपना अधिकांश जीवन न्यूयॉर्क में बिताया, जब भी शाहरुख को देखता हूं, तो भारत की धड़कन सुनता हूं। वो हर दशक में हमें यह याद दिलाते रहे कि भारत मां तब गर्वित होती है जब उसके बेटे बुद्धिमान हों, मेहनती, आकर्षक, उदार, विनम्र, करुणामय और वैश्विक नागरिक हों। शाहरुख इन सबका संगम हैं - वो भारत का प्रतिबिंब हैं, उसका उत्सव हैं, उसकी आत्मा हैं।

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