32 साल की उम्र में Mrs बनने के लिए क्यों तैयार हुई Sanya Malhotra, कहा- इस सोच को बदलने की है जरूरत
दंगल फिल्म से पॉपुलर हुई एक्ट्रेस सान्या मल्होत्रा (Sanya Malhotra) किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। इन दिनों वह अपनी मूवी मिसेज को लेकर चर्चा में बनी हुई हैं। इसमें दिखाया गया है कि शादी के बाद कैसे एक लड़की की जिंदगी में बड़ा बदलाव आता है। सान्या ने फिल्म के बारे में बात करते हुए खुलासा किया है कि वह इसके लिए क्यों तैयार हुई।

स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। मलयालम फिल्म द ग्रेट इंडियन किचन की रीमेक है सान्या मल्होत्रा (Sanya Malhotra) की फिल्म मिसेज। शादी के बाद पति और परिवार का खयाल रखना लड़कियों की प्राथमिकता बन जाता है। ये करने की कसमकस में कई बार नवविवाहिता के सपने दबकर रह जाते हैं। इसी विषय को उठाती है सान्या मल्होत्रा की फिल्म मिसेज।
मूल मलयालम फिल्म देखने के बाद मन में क्या विचार आया?
सान्या कहती हैं, 'बहुत सारे सवाल और ऐसी बातें दिमाग में आईं, जिन पर कभी ध्यान ही नहीं गया था। मैंने मां और आसपास के माहौल को करीब से देखा है। सोचा नहीं था कि ऐसी भी कोई कहानी बन सकती है।
घरेलू जिम्मेदारियों को निभाने के लिए कई बार तारीफ नहीं मिलती पैसे भी नहीं मिलते। लोग आसानी से कह देते हैं कि घर हूं पर रहते हो क्या ही काम करते हो। हमारी संस्कृति बदल रही है। युवतियां करियर में आगे बढ़ रही हैं, फिर भी कुछ लोग सोचते है कि घर संभालना सिर्फ महिलाओं का काम है। मुझे लगता है कि घर का काम सबको आना चाहिए। ये जरूरी है।
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खाने से नहीं जोड़कर देखना चाहिए महिला का प्यार
सान्या कहती हैं कि पितृसत्तात्मक समाज द्वारा स्त्री और पुरुष की भूमिकाएं परिभाषित कर दी गई हैं, जबकि ऐसा कुछ होता नहीं है। आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हुई तो समझ आया कि पापा पर बाहर के कामों का कितना दबाव होता था। जब दिल्ली से मुंबई आकर मैंने अकेले रहना शुरू किया, तब सुबह पांच बजे उठकर ब्रेकफास्ट, लंच तैयार करती थी। फिर शूट पर जाती थी। जब मैं दिल्ली जाती थी तो माम को ग्लानि होती थी कि तुम्हारे लिए कुछ अच्छा नहीं बनाया। उन्हें यह साबित करने के लिए किचन में जाकर कुछ पकाने की जरूरत नहीं है कि वह मुझे प्यार करती हैं।
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कई लोग इसे जिम्मेदारी मानते हैं तो यह उनका सोच है, लेकिन इसके लिए दबाव बनाना गलत है। जैसे मेरा पात्र रिचा अपने ससुराल वालों को प्रभावित करने में लगी है अपनी कुकिंग से फिर उसे एहसास होता है कि उसके सपने दब रहे हैं। जबरन काम करवाया जा रहा है। उसे नौकरी नहीं करने दे रहे। मुझे लगता है कि ये सही नहीं है।
ड्रीम्स और डयूटी में किसी एक को चुनना हो तो क्या आसान होगा?
सान्या कहती हैं कि दोनों। ऐसा कहीं नहीं लिखा कि आप अपने सपने पूरे कर रहे हैं तो ड्यूटी को भूल जाएं। असल जिंदगी में किन बातों का दबाव होने पर लगता है कि पसंद का काम नहीं हो पा रहा? सान्या कहती हैं कि जिस तरह से मेरी जिंदगी चल रही है, मैं खुश हूं। मैं अपनी बॉस हूं। अपना कारोबार चला रही हूं। बाकी सात-आठ माह से मैंने काम के कारण छुट्टी नहीं ली है। इसलिए आराम की जरूरत लगती है ताकि फुरसत में कुछ नया सीखने को मिल सके।
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