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    मजाक ने हर तरफ उड़वाई हंसी, Samay Raina के शो पर हुए विवाद के बाद लोगों के लिए बड़ा सबक

    इस वक्त हर तरफ समय रैना के शो को लेकर बातें हो रही हैं। अभिव्यक्ति के नाम पर आजादी कैसे उच्छृंखल अराजकता में परिवर्तित हो सकती है इंडियाज गाट लैटेंट से उपजा विवाद इसका बड़ा उदाहरण है। यह तेजी से लोकप्रिय होते इंटरनेट मनोरंजन प्लेटफार्म पर सक्रिय अथवा इस पर जगह बनाते कलाकारों के लिए तीखा सबक है कि सीमा कहां पर समाप्त होती है।

    By Anu Singh Edited By: Anu Singh Updated: Tue, 25 Feb 2025 07:46 PM (IST)
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    विवादों में घिरा था इंडिया गॉट लेटेंट शो (Photo Credit- X)

    एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। India Got Latent Controversy: इंटरनेट मीडिया से शुरु हुआ इंडियाज गाट लैटेंट विवाद अब एक बड़ी बहस में बदल गया है, यहां तक कि उच्चतम न्यायालय को भी इस पर संज्ञान लेना पड़ा। वास्तव में आज इंटरनेट मीडिया के युग में, जहां हर ट्वीट, जोक या पोस्ट किसी बवंडर का रूप ले सकता है, रणवीर अल्लाहबादिया (बीयर बाइसेप्स फेम) की घटना हमें यह जांचने पर मजबूर करती है कि आधुनिक ‘हास्य’ का क्या मतलब है?

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    क्या अब व्यंग्य-विनोद का मतलब सिर्फ लोगों को चौंकाना और उनसे प्रतिक्रिया लेना रह गया है? मूल रूप से हुआ यह था कि एक यूट्यूब बेस्ड कामेडी शो, जिसे समय रैना होस्ट करते हैं, के एक एपिसोड में रणवीर की टिप्पणी अंततः एक गंदे मजाक में बदल गई और बड़े विवाद का रूप ले लिया। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वसरमा ने इस मामले की सार्वजनिक आलोचना की। रणवीर ने गलती मानी और सार्वजनिक रूप से माफी मांगी, लेकिन तब तक नुकसान हो चुका था।

    संवेदनशीलता का संकट

    जब व्यंग्य का मकसद सिर्फ चौंकाना हो तो परिणाम अनर्थकारी होते हैं। यह विवाद एक भद्दे मजाक से कहीं ज्यादा है। यह एक बड़ी सांस्कृतिक समस्या का प्रतीक है, जो आधुनिक कामेडी में नजर आती है। आजकल कामेडी में संवेदनशीलता तथा नैतिकता की कमी देखने को मिलती है और इसने एक खतरनाक पैटर्न बना दिया है। हास्य-व्यंग्य पेश कर रहे लोग अब चौंकाने के लिए और बिना किसी उद्देश्य के किसी शाक वैल्यू पर निर्भर होते हैं। हास्य-व्यंग्य, जो कभी समाज की आलोचना करने का एक जरिया हुआ करता था, अब केवल ध्यान आकर्षित करने का साधन बन गया है। इस पैटर्न को तीन बिंदुओं से समझा जा सकता है।

    'यह सिर्फ एक मजाक था'

    यह बेवकूफाना बहाना इस विवाद का सबसे निराशाजनक पहलू है। कई हास्य कलाकार ‘यह सिर्फ एक मजाक था’ कहकर अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश करते हैं। अब जब इंटरनेट मीडिया की पहुंच इतनी ज्यादा है, तो मजाक व्यक्तिगत विचार नहीं रह जाते, बल्कि सार्वजनिक बयान बन जाते हैं। रणवीर की टिप्पणी केवल सीमा नहीं लांघ रही थी, बल्कि इस तथ्य का परिचायक थी कि वह समाज के संदर्भ और संवेदनाओं से बिल्कुल अनजान थे।

    चौंकाने वाला हास्य

    वास्तविक समस्या संस्कृति की उपेक्षा है। सच्चाई यह है कि हास्य में अब संवेदनशीलता और जिम्मेदारी की अधिक आवश्यकता है, जबकि इंडियाज गाट लैटेंट जैसे कई इंटरनेट मनोरंजन शो अब चौंकाने वाले हास्य (शाक कामेडी) पर बहुत अधिक निर्भर हो गए हैं। अब हास्य का मतलब यह नहीं है कि समाज की कमजोरियों और भेदभाव को चुनौती दी जाए। कामेडियन अब बिना किसी गहरे विचार के सिर्फ हंसी लाने के लिए चौंकाने वाले मजाक करते हैं, जिनमें कोई वास्तविक उद्देश्य या संदेश नहीं होता है।

    सांस्कृतिक संवेदनाओं की उपेक्षा

    जो सबसे चिंताजनक बात है, वह यह कि डिजिटल दौर के ऐसे प्रस्तोताओं ने सांस्कृतिक संवेदनाओं को नजरअंदाज किया है। हास्य का असली रूप उसी समय की प्रतिक्रिया होता है, जिसमें वह उपस्थित है। रणवीर का मजाक इस बात का स्पष्ट उदाहरण है कि कैसे वह समाज में हास्य के स्थान और सांस्कृतिक संवेदना को समझने में विफल रहे।

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    सबके लिए सबक

    हास्य-व्यंग्य जब रचनात्मक तरीके से किया जाता है, तो वह विचारों को चुनौती देता है, मान्यताओं को तोड़ता है, और समाज में सकारात्मक परिवर्तन की दिशा में काम करता है। जब वही बिना किसी सोच के किया जाता है, तो वह केवल हानि का कारण बनता है। विडंबना यह है कि यह भी कहा जा रहा है कि युवा यही चाहते हैं। अगर यह सच है तो भारत की युवा आबादी में इस समय इतनी नाराजगी क्यों है? यह विवाद तेजी से लोकप्रिय होते इंटरनेट मनोरंजन प्लेटफार्म पर सक्रिय अथवा इस पर जगह बनाते कलाकारों के लिए तीखा सबक भी है कि उनकी सीमा कहां पर समाप्त होती है।

    पहला सबकः हास्य-व्यंग्य का उद्देश्य विचारों को चुनौती देना होना चाहिए, न कि दूसरों को हानि पहुंचाना। यदि आपका मजाक किसी स्वस्थ चर्चा का हिस्सा नहीं बनता, तो वह केवल नुकसान पहुंचाता है।

    दूसरा सबकः सच्चा व्यंग्य केवल चौंकाने वाला नहीं बल्कि समझदारी से भरा और उद्देश्यपूर्ण होना चाहिए। यह समझने की आवश्यकता है कि इसको फूहड़ नहीं अपितु प्रेरित करने और बदलाव लाने वाला होना चाहिए।

    तीसरा सबकः जिस प्रकार सामाजिक जागरूकता बढ़ रही है, हास्य-व्यंग्य को भी अपनी दिशा बदलनी होगी। जो चीज पश्चिमी परिवेश में ठीक लग सकती है, वह यहां हमेशा सही नहीं हो सकती। जो लोग इस बदलाव को नहीं समझते, वे बहिष्कृत होकर पीछे छूट जाएंगे।

    यह समय है कि कामेडियन्स और कंटेंट क्रिएटर्स समाज में अपनी भूमिका समझें। अगर यह विवाद कुछ सिखाता है, तो वह यह है कि हास्य-व्यंग्य को अब और अधिक जिम्मेदारी से किया जाना चाहिए, तब यह व्यर्थ के अनर्थ के बजाय समाज के मुद्दों पर रचनात्मक तरीके से प्रकाश डालने का जरिया बन सकता है!

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