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    'मनोरंजन की तय हो कसौटी', Ranveer Allahbadia के विवादित बयान के बाद सख्त नियमों की जरूरत

    By Anu Singh Edited By: Anu Singh
    Updated: Mon, 03 Mar 2025 04:13 PM (IST)

    India Got Latent Controversy युवा मनोरंजन के नाम पर इंटरनेट प्लेटफार्म्स पर बढ़ती उच्छृंखलता सामाजिक ताने-बाने और लैंगिक संवेदनशीलता के लिए संकट बन रह ...और पढ़ें

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    विवादों में घिरा था इंडिया गॉट लेटेंट शो (Photo Credit- X)

    एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और रचनात्मक स्वाधीनता के नाम पर किसी भी हद तक जाने की चेष्टा का परिणाम है बीते कुछ दिनों से लगातार चर्चा में आ रहे रणवीर इलाहाबादिया। माता-पिता को लेकर अभद्र टिप्पणी के बाद यूं तो उन्होंने तुरंत माफी भी मांग ली, मगर इसके साथ यह बहस भी छेड़ दी कि इस प्रकार यूट्यूबर और इंटरनेट मीडिया की तेजी से प्रसिद्धि पा रही हस्तियां व ओटीटी चैनल किस प्रकार अपने अधिकारों का इस्तेमाल करने के नाम पर अपनी जिम्मेदारी से बच रहे हैं। इस तरह के मामले उस गंभीर रोग की तरह हैं, जो बहुत लंबे समय से मानव सभ्यता रूपी शरीर को अंदर ही अंदर खोखला करते आ रहे हैं।

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    दो वर्षों से यौन विकृत सामग्री के निर्माताओं के खिलाफ राष्ट्र को एकजुट करने के मिशन का नेतृत्व करते हुए मैंने पाया कि ओटीटी प्लेटफार्म, इंटरनेट मीडिया और आडियो-विजुअल प्लेटफार्म पर अश्लील-आपत्तिजनक सामग्री भारत के सांस्कृतिक ताने-बाने को गंभीर नुकसान पहुंचा रही है। आज ऐसी सामग्री इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म सहित तमाम ओटीटी प्लेटफार्म के जरिए बच्चों और युवाओं के स्मार्टफोन पर पहुंच रही है। वे 24 घंटे ऐसे कंटेंट से घिरे हुए हैं। लोग भारत द्वारा उच्च डेटा उपयोग सूची में शीर्ष पर होने को लेकर गर्व करते हैं, लेकिन सवाल यह है कि लोग देख क्या रहे हैं? यह अकारण नहीं है कि भारत दुनिया में अश्लील सामग्री के सबसे बड़े उपभोक्ताओं में से एक बन चुका है।

    भयानक हो रही स्थितियां

    हमारे अध्ययन से पता चलता है कि देश में आए दिन सामने आ रहे दुष्कर्म के अधिकांश मामलों के पीछे इस तरह की सामग्री सबसे बड़ा कारण है। पोर्न वेबसाइट्स जैसे कुछ कम नहीं थी, अब इसमें नया खतरा ओटीटी और अन्य प्लेटफार्मों पर अनाचार-आधारित फिल्में हैं। जब मैं कहता हूं कि अधिकांश मामलों में अडल्ट कंटेंट मुख्य रूप से दुष्कर्मियों को उत्प्रेरित करती है तो मेरी इस बात पर दिल्ली की प्रमुख दुष्कर्म विरोधी कार्यकर्ता योगिता भयाना और सूरत की दुष्कर्म विरोधी कार्यकर्ता व वकील प्रतिभा देसाई भी सहमति रखती हैं, जिन्होंने दुष्कर्म से पीड़ित कई बच्चों का पुनर्वास किया है।

    रोकना होगा यह मलिन प्रवाह

    सवाल यह है कि हम बड़ी उम्मीद और गर्व से वर्ष 2047 तक एक महान राष्ट्र या विकसित भारत बनने की बात करते हैं, लेकिन कहीं ऐसा न हो कि हम एक महाशक्ति के रूप में उभरते हुए सांस्कृतिक रूप से कंगाल राष्ट्र बन जाएं! हम अयोध्या में भगवान श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा तो कर चुके हैं, मगर हमें श्रीराम की मर्यादा की भी स्थापना करनी है। विवेकानंद, श्री अरबिंद, भारत सेवाश्रम संघ के प्रणवानंद और दयानंद सरस्वती जैसे हमारे महान संतों ने भारत को विश्वगुरु बनने की कल्पना की थी।

    आज हमें उस स्वप्न के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करना चाहिए। इस खतरे के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए सामाजिक प्रयास आवश्यक हैं, लेकिन इससे भी अधिक आवश्यक यह है कि जिस नल से गंदगी का यह प्रवाह आ रहा है, उसे पूरी तरह बंद करने की प्रक्रिया तत्काल आरंभ की जाए। ऐसा काम केवल सरकार ही तकनीक का उपयोग करके और अडल्ट कंटेंटके निर्माताओं और वितरकों पर भारी जुर्माना लगाने वाले कानून बनाकर कर सकती है।

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    जानबूझकर न मूंदें आखें

    मध्य-पूर्वी देश और सिंगापुर की सरकारें वास्तव में इसे नियंत्रित करने में सक्षम रही हैं। वहां, भारत में जो प्रसारित किया जा रहा है, उसका केवल 20 प्रतिशत ही दिखाया जा रहा है। भारत सरकार ने कुछ ओटीटी प्लेटफार्मों और एप्स पर प्रतिबंध लगाने के अलावा इस तरह की सामग्री को नियंत्रित करने के लिए बहुत कम काम किया है। इससे भी बुरी बात यह है कि दिल्ली पुलिस तो आल्टबालाजी, नेटफ्लिक्स और एक्स (पूर्व में ट्विटर) के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने तक से इन्कार कर दिया है।

    महिलाओं का अशिष्ट चित्रण (निषेध) अधिनियम में संशोधन की तत्काल आवश्यकता है, जिसमें वर्तमान में सजा न्यूनतम है। इसमें सजा को बढ़ाकर बिना किसी जमानत के तीन साल सहित 10 साल की सजा दी जानी चाहिए। तीन साल के लिए कोई जमानत न मिलने का प्रविधान आतंकवादियों पर लागू है, लेकिन इसे ‘सांस्कृतिक आतंकवादियों’ पर भी उतनी ही गंभीरता से लागू किया जाना चाहिए।

    संस्कृति हो सर्वोपरि

    कुछ लोग ऐसे कठोर प्रविधानों पर सवाल उठा सकते हैं, लेकिन भारत को एक महान राष्ट्र बनने के लिए इस दुष्प्रवृत्ति वाली मानसिकता को हराना ही होगा। 10 वर्षों में भारत ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गतिशील नेतृत्व में सभी संभावित मोर्चों पर अद्वितीय प्रगति देखी है। वर्तमान सरकार सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से जुड़ी है। नीति नियंताओं को यह विस्मृत नहीं करना चाहिए कि डा. केशव बलिराम हेडगेवार, गुरु गोलवलकर और वीर विनायक दामोदर सावरकर जैसे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रखर प्रवक्ताओं की इस संदर्भ में चेतना क्या थी।

    यह पथ कैसा हो, इसके लिए इतिहास से एक उदाहरण पर्याप्त है। छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए बहुत कुछ किया था, लेकिन आज उन्हें सबसे प्रमुखता से भारत की संस्कृति और चरित्र के रक्षक के रूप में याद किया जाता है! भारत महान राष्ट्र बनने की राह पर है, लेकिन विकृत सामग्री का राक्षस इसके सामने खड़ा है। इसे नष्ट करें ताकि भारत विश्व का प्रथम विकृत सामग्री मुक्त राष्ट्र बने।

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