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    4 साल की उम्र में मां से हुए दूर, टूटा क्रिकेटर बनने का ख्वाब... किसी फिल्म से कम नहीं Salim Khan की कहानी

    By Iqbal RizviEdited By: Rinki Tiwari
    Updated: Sun, 23 Nov 2025 06:30 AM (IST)

    हिंदी सिनेमा की गाथा में सफलता की कहानी का एक अध्याय सलीम खान (Salim Khan) की गली से भी गुजरता है। कई सफल पटकथाओं से लेकर फिल्म के पोस्टर पर लेखक का नाम लिखवाने तक में नामवर रहे सलीम खान की 90वीं जन्मतिथि (24 नवंबर) पर उनके जीवन के कई पहलुओं पर डालते हैं एक नजर...

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    सलीम खान की कहानी नहीं है किसी फिल्म से कम। फोटो क्रेडिट- इंस्टाग्राम

    इकबाल रिजवी, उत्तर प्रदेश। हिंदी फिल्मों की दुनिया में सलीम-जावेद की जोड़ी ने जो मुकाम हासिल किया, वह इतिहास बन चुका है, लेकिन सलीम खान की पहचान सिर्फ एक सफल पटकथा लेखक तक सीमित नहीं है। वे ऐसे इंसान हैं जिनके भीतर संवेदनशीलता, वफादारी, जिम्मेदारी और मानवीय मूल्यों की गहरी छाप दिखाई देती है।

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    छोटी उम्र में सिर से उठा मां-बाप का साया

    24 नवंबर 1935 को इंदौर में जन्मे सलीम खान की जिंदगी का सफर बड़ा उतार-चढ़ाव वाला रहा। डीआइजी पुलिस के बेटे सलीम खान चार साल की उम्र से ही मां से दूर कर दिए गए क्योंकि उनकी मां को टीबी की बीमारी थी। वे नहीं चाहती थीं कि सलीम को यह बीमारी लगे। नन्हे सलीम दिन में अक्सर उस कमरे को दूर से देखते रहते, जिसमें उनकी मां का पलंग बिछा था। मां की गोद से दूरी का दुख उन्हें जिंदगी भर रहा।

    क्रिकेटर बनना चाहते थे सलीम खान

    जब सलीम सात साल के थे, तब उनकी मां ने दुनिया छोड़ दी। कुछ समय बाद पिता का साया भी उठ गया, लेकिन बड़े भाई का संरक्षण मिला। उनमें क्रिकेट का शौक जुनून की तरह पनपा। लक्ष्य था देश की क्रिकेट टीम में जगह बनाना। उन दिनों इंदौर में क्रिकेट की नर्सरी थी क्रिश्चियन कॉलेज। सलीम वहां प्रवेश पाने में सफल रहे, लेकिन दो साल बाद उन्हें एहसास हो गया कि वे भरपूर मेहनत के बाद भी राज्य स्तरीय क्रिकेट से आगे नहीं बढ़ पाएंगे। उन्होंने क्रिकेट छोड़ दिया।

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    Salman KHan

    एक्टर बनने से पहले उड़ाया हवाई जहाज

    फिर पायलट बनने की तमन्ना जागी तो फ्लाइंग क्लब के सदस्य बन गए। दक्ष पाइलट बनने के बाद उन्हें लगा कि अब इससे आगे क्या करें? तभी उन्हें फिल्मों में आने का मौका मिला, लेकिन कुछ फिल्मों में पर्दे पर अपने जलवे दिखा कर एक बार फिर सलीम खान को लगा कि वे अभिनय के लिए बने ही नहीं हैं। 

    ऐसे शुरू हुआ बॉलीवुड में सफर

    मुंबई आने के बाद से सलीम खान को लगने लगा था कि उनका झुकाव लेखन की ओर है। शुरुआत में अकेले ही फिल्मों की कहानियां लिखीं। कुछ सफलतओं के बाद उन्होंने जावेद अख्तर के साथ मिलकर ‘जंजीर’, ‘यादों की बारात’, ‘शोले’, ‘दीवार’ जैसी कालजयी पटकथाएं लिखीं। तब सिर्फ उन्हें ही नहीं और लोगों को भी लगा कि हां वे इस काम को सबसे बेहतर तरीके से कर सकते हैं, लेकिन इस अभूतपूर्व सफलता के पीछे का इंसान कभी बदलता नहीं दिखा।

    महेश भट्ट की फिल्म से की थी वापसी

    जावेद से जोड़ी टूटने के बाद भी सलीम खान उस रिश्ते को लेकर हमेशा बहुत संयमित रहे, कभी उनकी आवाज में कटुता नहीं दिखी। एक बार फिर सलीम खान ने संघर्ष किया और अकेले ही फिल्मी कहानियां लिखनी शुरू कीं। महेश भट्ट की बहुचर्चित फिल्म ‘नाम’ से उन्होंने खुद को फिर स्थापित किया। सलीम खान अपने दोस्तों के प्रति बेहद वफादार माने जाते हैं। वे रिश्तों में विश्वास रखते हैं और जब भी किसी को जरूरत हुई, उन्होंने चुपचाप मदद का हाथ बढ़ाया। 

    दिल के अमीर हैं सलीम खान

    फिल्म इंडस्ट्री के कई लोग बताते हैं कि सलीम साहब का घर हमेशा खुला रहता है- चाहे वह नया लेखक हो, संघर्षरत कलाकार या पुराना साथी। वे मानते हैं कि इंसान की पहचान उसके बर्ताव से होती है, न कि उसके दर्जे या प्रसिद्धि से। उनमें सहजता ऐसी है कि घर में कारों का काफिला होते हुए भी उन्हें अक्सर ऑटो रिक्शा की यात्रा करते देखा जा सकता है।

    सलीम खान का एक और पहलू उनका सामाजिक सोच है। उन्होंने अपनी सफलता को कभी अहंकार में नहीं बदला, बल्कि उसे जिम्मेदारी के रूप में देखा। बांद्रा में अपने घर के सामने वाली सड़क किनारे उन्होंने सौ से अधिक पेड़ लगाए और बरसों उनकी देखरेख भी की। लंबे समय से वे अपने फार्म हाउस पर कई वृद्ध आदिवासी महिलाओं को सहारा देते रहे हैं।

    Salim Khan

    आज जब हम सलीम खान को याद करते हैं, तो वे सिर्फ हिंदी सिनेमा के स्वर्ण युग के लेखक नहीं, बल्कि एक ऐसे इंसान
    नजर आते हैं जिसने यह साबित किया कि बड़ा होना सिर्फ कामयाबी से नहीं, बल्कि चरित्र और संवेदना से होता है।