Priya Mani को सेट पर नहीं मिलती थी वैनिटी वैन, सेट पर कपड़े बदलने में हुई दिक्कत; बोलीं- 'सबको प्राइवेसी चाहिए'
आगामी वेब सीरीज द फैमिली मैन सीजन 3 (The Family Man Season 3) में नजर आने वालीं प्रियामणि (Priya Mani) ने दैनिक जागरण के साथ बातचीत में करियर के शुरुआती संघर्षों, 8 घंटे शिफ्ट डिबेट और द फैमिली मैन के बारे में बात की है।

करियर के शुरुआती संघर्षों पर बोलीं प्रियामणि। फोटो क्रेडिट- इंस्टाग्राम
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। दक्षिण भारतीय सिनेमा के साथ ही 'मैदान', आर्टिकल 370' जैसी हिंदी फिल्मों का हिस्सा रहीं प्रियामणि (Priyamani) को वेब सीरीज 'द फैमिली मैन' से काफी लोकप्रियता मिली। इसके जल्द प्रदर्शित होने वाले सीजन 'द फैमिली मैन 3' (The Family Man 3) में वह फिर नजर आएंगी। उन्होंने दैनिक जागरण से खास बातचीत की है।
अपनी फिल्मोग्राफी में 'द फैमिली मैन' को कहां पर रखेंगी ?
शीर्ष पांच में। (दिल पर हाथ रखते हुए) हालांकि जो प्रदर्शित होने वाला होता है, वो मेरे लिए हमेशा पहले नंबर पर होता है। मेरे करियर के लिए 'द फैमिली मैन' बहुत अहम है। इसने मेरे करियर को आकार दिया, जिसके बारे में मैंने सोचा नहीं था। सब जगह से इतना प्यार और तारीफ मिले। मैं खुश हूं कि राज सर और डीके सर (निर्देशक राज निदिमोरू और कृष्णा डीके) ने इसमें सुचि की भूमिका के लिए मेरे बारे में सोचा।
राज और डीके के साथ काम का क्या अनुभव रहा ?
दोनों के साथ काम करने में बहुत सहज रहती हूं। राज और डीके जोड़ी की तरह काम करते हैं। उनका नजरिया काफी हद तक समान होता है। शूट के दौरान एक एक्टर पर फोकस करता है तो दूसरा शाट पर। मैं तो यही कहूंगी कि नजर न लगे इस जोड़ी को।

आप 22 साल से फिल्म इंडस्ट्री में हैं। लोकप्रियता ने आपको क्या सिखाया?
जितना जमीन से जुड़े रह सको, रहो। मैं हमेशा यही मानती आई हूं कि यह कभी मत भूलो कि आपने कहां से शुरू किया था। माता-पिता, पति और मेरे करीबी मुझे जमीन से जोड़कर रखते हैं। हां, इस बात से सहमति रखती हूं कि जाने या अनजाने जब कोई फिल्म बड़ी हिट होती है तो वह एटिट्यूड आ जाता है कि मेरी फिल्म हिट हो चुकी है। तब माता-पिता ने कहा कि तुम यह मत भूलना कि कहां से आई हो तुमको बहुत आगे जाना है वह सीख बहुत काम आई।
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शादी के बाद भूमिकाओं को चुनने का नजरिया कुछ बदला ?
थोड़ा बहुत बदलाव तो है अपने चयन के अलावा पति का नजरिया भी देखती हूं। वह इस इंडस्ट्री से ताल्लुक रखते थे। उन्हें पता होता है कि ऑडियंस को क्या पसंद आएगा, क्या नहीं। उनका नजरिया मेरे लिए अहम है।
क्या क्षेत्रीय सिनेमा में हिंदी की तुलना में अभिनेत्रियों को ज्यादा सशक्त भूमिकाएं मिल रही हैं?
यहां पर भी उतनी ही सशक्त भूमिकाएं मिल रही हैं, जितनी वहां। मैं खुश हूं। क्षेत्रीय सिनेमा में करीब 10 साल से... (थोड़ा ठहरते हुए) शायद समयसीमा में गलत हूं मगर अभिनेत्रियों को सशक्त भूमिकाएं मिल रही हैं। लेखक उनके लिए रोल लिख रहे हैं। वह फिल्मों को अपने कंधों पर लेकर चल रही हैं।
शिफ्ट को लेकर फिर बहस छिड़ी है कि काम के घंटे आठ हो आपका क्या मानना है?
देखिए मैं कहूंगी कि यह विषय पर निर्भर करता है। कई बार ऐसी परिस्थिति होती है कि जैसे आपके को-स्टार कहीं और भी काम कर रहे होते हैं और उन्हें कहीं और जाना है तो एडजस्टमेंट करना ही होगा। कई बार लगता है कि जिन निर्माताओं को करना होगा, वो शायद करेंगे जिन्हें नहीं करना होगा, वो नहीं करेंगे।

करियर की शुरुआत में और अब की सुविधाओं में कैसा बदलाव पाती है?
सुविधाओं में बहुत बदलाव हुए हैं। मैंने तमिल सिनेमा में शुरुआत की थी, वहां पांचवीं फिल्म तक मुझे वैनिटी वैन नहीं मिली। हां, हीरो को भी नहीं मिली। तेलुगु और कन्नड़ सिनेमा में मिली, लेकिन तब जब मैं एक मुकाम पर पहुंच गई। जब हमें वॉशरूम जाना होता था तो किसी के घर पर जाते थे या होटल जाकर वापस आना होता था।
उसमें भी आधे से एक घंटा लग जाता था। मैंने भी एडजस्ट किया है। मम्मी मेरे साथ सेट पर होती थी तो कपड़े वगैरह डालकर मैंने कपड़े बदले हैं। अब जो बदलाव देख रही हूं वो बेहतरी के लिए हैं। उनकी जरूरत थी आप यह उम्मीद नहीं कर सकते कि जैसा था वैसा ही रहे। हर किसी को अपनी प्राइवेसी चाहिए।

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