अलविदा पंकज उधास: 'चांदी जैसा रंग है तेरा, सोने जैसे बाल...', यूं ही चमकती रहे हमेशा तेरे हुनर की धूप
मशहूर गजल गायक पंकज उधास का 26 फरवरी 2024 को 72 साल की उम्र में निधन हो गया। उनके निधन की जानकारी बेटी नायाब ने एक स्टेटमेंट जारी करते हुए दी। ऐसा बताया गया कि पंकज उधास लंबी बीमारी से जूझ रहे रहे थे। सिंगर के निधन की खबर सुनकर हर कोई सदमे में है। आम लोगों से लेकर बॉलीवुड और राजनीतिक लोग भी शोक व्यक्त कर रहे हैं।

नवनीत शर्मा। कई पीढ़ियों में गजल के प्रति आकर्षण उत्पन्न करने में जिन लोगों का नाम हमेशा भारत का हर संगीत प्रेमी स्मरण रखेगा, उनमें एक नाम पंकज उधास का है। राजकोट के जमींदार परिवार की तीन संतानों में से एक पंकज उधास के रूप में एक ऐसा फनकार शरीर छोड़ गया है, जिसे अपनी आवाज की रेंज का पता था।
दिलरुबा जैसे साज के साथ किशोरावस्था को तरंगित करने वाले पंकज तबलावादन की बारीकियों से भी परिचित थे। लेकिन, उनकी पहचान बनी तो गायन से। गजलें हों या गीत... उनकी आवाज में जो स्त्रैण तत्व था, वह गीत या गजल को पूरे ममत्व से ओतप्रोत कर देता था।
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सुर तो सधे हुए थे ही, ईश्वर प्रदत्त कोमलता वाला गायन रुई के फाहे जैसा प्रभाव, सुनने वाले के घावों पर मरहम लगा देता था। उन्होंने हमेशा ऐसा गाया, जो निभाया जा सके।
उनकी अपनी कैसेट और फिल्मी गीत कई हैं। उनका गजलों का चयन शराब के आसपास अधिक रहा, जिसे सुनने वालों की भरपूर संख्या होती है, किंतु कुछ रचनाएं ऐसी हैं, जो सुनने वालों के मन पर अमिट छाप की तरह हैं।
कौन है, जो 'चांदी जैसा रंग है तेरा', सोने जैसे बाल' को सुनकर पहले जैसा रह जाता होगा। उदासी के रंगों से बनी एक तस्वीर है यह गजल जिसे हम, 'दीवारों से मिलकर रोना अच्छा लगता है, हम भी पागल हो जाएंगे, ऐसा लगता है' के रूप में जानते हैं। और सादगी भी तो कयामत की अदा तब हुई, जब उन्होंने एक फिल्म के लिए गाया, 'न कजरे की धार, न कोई किया ¨सगार फिर भी कितनी सुंदर हो।'
फिल्म 'नाम' का गीत कितने ही ऐसे लोगों की नब्ज को धड़का गया, जो अपनी मातृभूमि से विवशतावश या स्वेच्छा से दूर रहते हैं, 'बड़े दिनों के बाद, हम बेवतनों को याद वतन की मिट्टी आई है, चिट्ठी आई है, आई है चिट्ठी आई है।'
यह सब जानते हैं कि उनके दादा भावनगर रियासत के राजस्व मंत्री थे और गांव के पहले स्नातक थे। मंच पर या साक्षात्कारों में उनका संवाद बेहद सभ्य और सुसंस्कृत होता था। उनके घने बाल और विभिन्न प्रकार के कुर्ते भी विशिष्ट होते थे।
नई प्रतिभाओं के लिए उन्होंने 'आदाब अर्ज है' कार्यक्रम भी टीवी पर आरंभ किया था। उनके भाई मनहर उधास और निर्मल उधास भी प्रसिद्ध गायक रहे हैं। 17 मई,1951 को प्रदीप्त यह दीपक सोमवार को विदा ले गया, लेकिन उनकी आवाज हमेशा रहेगी... और हम कहते रहेंगे... यूं ही चमकती रहे हमेशा तेरे हुनर की धूप..।
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