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    'अगर कीचड़ में गिरना होगा तो मैं...', खुद से बड़ा काम को मानती हैं 'मकड़ी' एक्ट्रेस Shweta Basu Prasad

    गंभीर विषयों पर सहज चर्चा करने के लिए फिल्मकार चुनते हैं कामेडी का माध्यम। ऐसी ही वेब सीरीज ‘उप्स अब क्या?’ में काम करने वाली अभिनेत्री श्वेता बासु प्रसाद का मानना है कि कंटेंट किस तरह सामने आएगा यह फिल्मकार के इरादों पर निर्भर करता है। इसके साथ ही मकड़ी एक्ट्रेस श्वेता बासु ने ये भी बताया कि वह फिल्मों में बोल्ड रोल करने के लिए तैयार हैं या नहीं

    By Tanya Arora Edited By: Tanya Arora Updated: Tue, 25 Feb 2025 09:58 PM (IST)
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    ऊप्स अब क्या एक्ट्रेस श्वेता बासु से बातचीत/ फोटो- Instagram

    प्रियंका सिंह, मुंबई। कई फिल्मकार मानते है कि कॉमेडी जॉनर में गंभीर विषयों पर बात करना ज्यादा आसान होता है। जियो हॉटस्टार की कॉमेडी वेब सीरीज ‘उप्स अब क्या?’ में अभिनेत्री श्वेता बासु प्रसाद भी कुछ अहम मुद्दों पर बात करती हैं कि कैसे अस्पताल में हुई एक गलती उनके पात्र पर भारी पड़ जाती है।

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    कंटेंट पूरी तरह से बनाने वाले पर निर्भर करता है

    श्वेता कहती हैं कि विषय गंभीर हो या फिर कोई और, उसे कैसे कहा जाता है, यह फिल्मकार के इरादों पर निर्भर करता है। अब जैसे हाल ही में मैंने ईरानी फिल्म ‘द सीड आफ द सेक्रेड फिग’ देखी है। ड्रामा फिल्म है, लेकिन प्रभाव छोड़ती है। ‘मिस्टर बीन’ शो देखें, तो उसमें रोजमर्रा के जरूरी मुद्दों और मानव व्यवहार को बड़े ही कामिक अंदाज में दिखाया गया है।

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    कुछ कॉमेडी फिल्में ऐसी भी बनी हैं, जिन्हें देखकर लगता है कि फलां मजाक कैसे कर दिया। कंटेंट पूरी तरह से इसे बनाने वालों के इरादों पर निर्भर करता है। जॉनर से उसका कोई नाता नहीं होता है। हां, बतौर कलाकार हमारी जिम्मेदारी जरूर बनती है कि जब कहानी के केंद्र में एक गंभीर मुद्दा हो, तो उसे कैसे संभलकर दिखाएं। इस सीरीज में ऐसा नहीं है कि हम कॉमेडी कर रहे हैं। हम बस एक परिस्थिति को जी रहे हैं, जो गंभीर है। अक्सर ऐसा होता है, जब महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर बात होती है, तो उसमें पुरुषों को विलेन दिखा दिया जाता है। इसमें ऐसा नहीं है।

    Photo Credit- Instagram 

    बोल्ड सीन पर ये है श्वेता बासु प्रसाद की राय

    कई अभिनेत्रियां हैं, जो बोल्ड सीन करने से कतराती हैं। क्या श्वेता ने ऐसे कोई दायरे खुद के लिए बनाए हैं? इस पर वह कहती हैं कि मेरे ऐसे कोई दायरे नहीं हैं। अगर कहानी ने मुझे राजी कर लिया, तो मैं करूंगी। मेरी कला मुझसे बड़ी है और हमेशा ऐसा ही रहेगा। अगर कहानी में लिखा है कि कीचड़ में गिरना है, तो मैं गिरूंगी, घर जाकर नहा लूंगी, कोई बात नहीं। अगर कहानी की जरुरत है कि रोमांटिक सीन करना है, तो करूंगी। कोई युद्ध का सीन है, जिसमें लड़ना है, घुड़सवारी करनी है, उसमें गिरना है, तो गिरूंगी। मैंने खुद इस काम को चुना है।

    अगर मुझे लगेगा कि कहानी समझ नहीं आ रही है या जो मुझे कहा जा रहा है, उससे कहानी का कोई लेना-देना नहीं है, तो मैं नहीं करूंगी। ना कहने में मुझे कोई एतराज नहीं है। मुझे अपने काम से इतना प्यार है कि मैंने इसके लिए कोई दायरे नहीं बनाए हैं।

    Photo Credit- Instagram

    मैं पैपराजी और खुद को प्रमोट करने का रास्ता नहीं अपनाती

    श्वेता प्रमोशन को लेकर नए पैंतरों में ज्यादा यकीन नहीं करती हैं। पैपराजियों के कैमरों में कैद होना या फिर पीआर करवाने को लेकर वह कहती हैं कि यह काफी सबजेक्टिव (व्यक्तिपरक) है। आपको पीआर करवाना है या नहीं, यह आपके इरादों पर निर्भर करता है। कई ऐसे कलाकार हैं, जो एक्टर इसलिए बनना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें स्टार बनना है। प्रसिद्ध होना ही कई लोगों की प्रेरणा होती है। वह जिम या एयरपोर्ट के बाहर नजर आना चाहते हैं, हर रोज इंटरनेट मीडिया पर तस्वीरें डालते हैं, अगर यह तरीका उनके लिए काम कर रहा है, तो बिल्कुल सही है।

    उसका सम्मान करना चाहिए, लेकिन बतौर कलाकार मैं यह रास्ता नहीं अपनाती हूं।

    Photo Credit- Instagram

    मेरी तरफ से मेरा काम मेरे लिए बात करे, वह ज्यादा जरूरी है। कोई क्यों मेरे जीवन में यह जानना चाहेगा कि मैं क्या कर रही हूं। मैं किसी को क्यों बताऊं कि आज मैं केक खा रही हूं या पराठा खा रही हूं। जब कोई प्रोजेक्ट आता है, तो उस दौरान काफी बातें हम कर ही लेते हैं। अपने काम को प्रमोट करना आवश्यक है। मेरे लिए हमेशा से यही रहा है कि अगर मेरा काम मुझसे बड़ा दिख रहा है, तो मैं खुश हूं। अगर मैं अपने काम से बड़ी दिख रही हूं, तो मुझे ऐसा नहीं बनना है। अब श्वेता निर्देशन में भी उतर चुकी हैं। उन्होंने शॉर्ट फिल्म ‘रीटेक’ का निर्देशन करने के साथ ही इसकी कहानी, पटकथा और संवाद भी खुद लिखे हैं।

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