क्यों बढ़ रहा है मलयालम सिनेमा का क्रेज? पुष्पा 2 के विलेन से लेकर मोहनलाल तक कैसे बदली हीरो की छवि
समय के साथ-साथ सिनेमा का स्वरूप भी बदलता गया है लेकिन साउथ सिनेमा बॉलीवुड से इस मामले में दो-कदम आगे रहा है। इसका अंदाजा आप मलयालम फिल्मों में हीरो के किरदार और दमदार अभिनय के जरिए लगा सकते हैं। आइए जानते हैं वो कौन से मलयालम सिनेमा के सुपरस्टार हैं जिन्होंने समय के साथ फिल्म में अभिनेता के रोल के मिथक को पूरी तरह बदल दिया है।

एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। मलयालम सिनेमा में नायकों की छवि समय के साथ बदल गई है। पहले जहां फिल्म के हीरो पावरफुल और 6 पैक ऐब्स वाले दिखते थे, वहीं अब समय के साथ वे आम जनता जैसे नजर आते हैं, जिनमें कमियां और भावनाएं होती हैं। मलयालम सिनेमा की इस नई लहर ने दर्शकों को सिनेमा के और ज्यादा करीब लाने का काम किया है। नए जमाने के हीरो से ऑडियंस बेहतर तरीके से कनेक्ट कर पाती है। आइए जानते हैं इस बदलाव की कहानी।
1970-80 के दशक के सुपरमैन हीरोज
पुराने समय में से शुरू करें, खासकर 1970 और 80 के दशक में तो, मलयालम फिल्मों के नायक ताकतवर और मर्दाना छवि वाले होते थे। जयराम जैसे अभिनेता इस दौर के सुपरस्टार थे, जो अपनी ताकत और बहादुरी से दर्शकों का दिल जीत लिया करते थे। उनकी फिल्में, जैसे नरसिम्हम और वलीएट्टन, एक्शन और साहसी कारनामों से भरी होती थीं। ये नायक हमेशा सही और अजेय दिखते थे, जो दर्शकों के लिए आदर्श थे।
2010 में आया था बड़ा बदलाव
2010 के दशक में मलयालम सिनेमा में ‘न्यू जेनरेशन’ आंदोलन शुरू हुआ। इस समय कहानियां और किरदार बदलने लगे। अब हीरो आम इंसान जैसे दिखने लगे थे, जिनमें कमियां होती थीं और जो भावनात्मक गहराई से भरपूर होते थे। ये किरदार अब जटिल और वास्तविक थे, जो दर्शकों से सीधा जुड़ाव बनाते थे। इस बदलाव ने मलयालम सिनेमा को नई दिशा दी।
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फिल्म के हीरो का नया रूप
आज के मलयालम सिनेमा में बड़े सितारे भी नकारात्मक किरदार निभाने से नहीं हिचकते। उदाहरण के लिए, पृथ्वीराज सुकुमारन ने कुरुति में खलनायक की भूमिका निभाई, जिसे दर्शकों ने खूब पसंद किया। यह दिखाता है कि मलयालम सिनेमा में नायकों की परिभाषा बदल रही है। अब दर्शक ऐसे किरदारों को पसंद करते हैं जो उनकी जिंदगी से मिलते-जुलते हों।
दर्शकों का मिला जबरदस्त प्यार
मलयालम दर्शक इस बदलाव को खूब पसंद कर रहे हैं। पहले की तरह सुपरहीरो की कहानियां अब कम देखने को मिलती हैं। इसके बजाय, दर्शक उन किरदारों से जुड़ रहे हैं जो उनकी भावनाओं को दर्शाते हैं। आवेशम और मंजुम्मेल बॉयज जैसी फिल्में इस बदलाव का सबूत हैं, जो वास्तविकता और भावनाओं पर केंद्रित हैं।
मलयालम सिनेमा का यह नया दौर न केवल कहानी कहने के तरीके को बदल रहा है, बल्कि दर्शकों के दिलों में भी गहरी छाप छोड़ रहा है।
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