विदेशी आर्टिस्ट की तरह इंडियन को भी करें पसंद, Sachin-Jigar ने म्यूजिक कॉन्सर्ट को लेकर जाहिर की नाराजगी
आजकल हॉरर कॉमेडी का एक दौर सा चल गया है। स्त्री की सफलता के बाद बैक-टू-बैक कई कॉमेडी फिल्म्स रिलीज हुईं। आज बाद करेंगे दीवाली 2025 में रिलीज होने वाला थामा (Thama) की। इस फिल्म में आयुष्मान खुर्राना और रश्मिका मंदाना मुख्य भूमिकाओं में हैं। फिल्म में सचिन जिगर का म्यूजिक है इनसे हमने बात। आइए जानते हैं उनके विचार।
प्रियंका सिंह, मुंबई। आगामी दिनों में संगीतकार जोड़ी सचिन-जिगर (सचिन सांघवी और जिगर सरैया) का संगीत हॉरर कामेडी यूनिवर्स की फिल्म ‘थामा’ में सुनने को मिलेगा। वे मानते हैं कि भारत विदेशी आर्टिस्ट के कला प्रदर्शन के लिए बड़ा मार्केट बन चुका है। अपने गानों में नजर आने, देश में हो रहे विदेशी कांसर्ट में तेजी जैसे मुद्दों पर संगीत जोड़ी ने प्रियंका सिंह के साथ
यूनिवर्स वाली फिल्मों के गाने बनाने की क्या चुनौतियां होती हैं?
जिगर– जब हमने फिल्म ‘स्त्री’ के गाने बनाए थे, तब नहीं पता था कि उसका यूनिवर्स बनेगा। यूनिवर्स के लिए गाना बनाना, परिवार के लोगों को क्या खाना पसंद है, उसे धीरे-धीरे समझने जैसा है। यूनिवर्स परिवार है,अब हमें पता है कि इनके किरदारों और मेकर्स को क्या पसंद है।
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नए प्रयोग भी करते हैं?
सचिन– जब पहला पार्ट हिट हुआ, तो दूसरे पार्ट के फिल्म और संगीत दोनों पर सवाल होता है कि क्या हिट होगा या नहीं। हमने यूनिवर्स में एक भी गीत का रीमेक नहीं किया है। हम हमेशा स्क्रिप्ट को केंद्र में रखते हैं। हमारी शुरुआत रंगमंच से हुई है। आज भी हमारे पास बैंक में कोई गाने नहीं होते हैं। हम कहानी के अनुसार नया सोचते हैं।
अब गायक और संगीतकार अपने गानों में भी खुद नजर आना चाहते हैं। इसे कैसे देखते हैं?
जिगर– कुछ साल पहले जरूरी नहीं था। मुझे नहीं पता क्यों नहीं था, होना चाहिए था। गाना अच्छा हो या बुरा, वह मेरा है, क्योंकि गाना बनाना आसान नहीं होता है। उससे एक भावनात्मक जुड़ाव होता है, जो एक म्यूजिशियन ही समझ पाएगा। इसका कामर्शियल साइड भी है। हम आर्टिस्ट के पास कोई प्राविडेंट फंड (पीएफ) नहीं होता है। आज हमारा गाना चल रहा है, तो कमाई हो रही है। जब गाना नहीं चलेगा, तो कमाई जीरो हो जाएगी। अगर गाने में मेरा चेहरा है, तो उस गाने से मैं जिंदगीभर शोज कर सकता हूं। इसलिए आज के जमाने में चाहे संगीतकार हो, गीतकार हो या गायक, अपने गाने पर दावेदारी जरूरी है। भले ही भावनात्मक वैल्यू कोई न समझे, कामर्शियल वैल्यू समझनी जरूरी है।
सचिन– हमारे देश में हर गली में आपको गायक, म्यूजिशियन मिल जाएंगे। मेरे डैडी ने बचपन में बहुत अच्छी बात सिखाई थी कि मेहनत करो और ब्रांड बनो। उस काम से नाम जरूर जोड़े, जिसे पूरी शिद्दत से कर रहे हैं। हमें यह रहमान सर (ए.आर.रहमान) ने सिखाया है। वह शर्मीले हैं, लेकिन अपना ब्रांड बनाया है। लोग ब्रांड में ही निवेश करते हैं।
पिछले दिनों कई विदेशी आर्टिस्ट के कासंर्ट भारत में हुए। इस साल भी होंगे। इससे संगीत जगत में क्या बदलाव आएगा?
सचिन– लाइव इवेंट ने अचानक तेजी पकड़ी है, लेकिन इसकी शुरुआत कोचेला (कैलिफोर्निया में होने वाला म्यूजिक फेस्टिवल) से हुई। दिलजीत दोसांझ ने वहां परफार्म किया। हम भी विदेश में परफार्म करके वहां से पैसा कमाकर अपने देश लेकर आ रहे हैं। मैं इसे एक नई संस्कृति की शुरुआत मानूंगा, जैसे आप फिल्म देखने जाते हैं, वैसे ही अब म्यूजिक कांसर्ट देखना चुन रहे हैं। अपने प्रशसंकों की आंखों में देखकर उनके साथ गाने से बड़ी खुशी कोई नहीं। इसी तरह से लाइव एंटरटेनमेंट की इंडस्ट्री आगे बढ़ेगी। जहां लाइव इंवेंट्स होते हैं, वहां के लोगों को रोजगार भी मिलता है।
अब विदेशी आर्टिस्ट हमें बड़े मार्केट के तौर पर देख रहे हैं। अब हम चुन रहे हैं कि कौन सा संगीत या आर्टिस्ट पसंद है। जब कोल्डप्ले कांसर्ट हुआ था, उनके गाने कई लोगों को ढंग से पता भी नहीं होंगे, लेकिन उनकी टिकट लेना स्टेटस की बात हो जाती है। हालांकि जितनी उत्सुकता किसी विदेशी आर्टिस्ट को देखने को लेकर होती है, उतनी देश के आर्टिस्ट के लिए भी होनी चाहिए। हमारे देश में प्रतिभा की कमी कभी थी ही नहीं।
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