Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    गाजी का आतंक, रुखसाना की आपबीती.. जलियांवाला बाग नरसंहार का दर्द: क्यों सच्‍ची कहानियों का दीवाना है बॉलीवुड?

    अमृतसर के जलियांवाला बाग नरसंहार पर आधारित फिल्म केसरी 2 आज रिलीज हुई है। छावा द डिप्‍लोमैट के बाद आगामी दिनों में फुले और ग्राउंड जीरो सहित सत्य घटनाओं पर आधारित कई फिल्में आएंगी। बॉलीवुड में सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्मों का चलन बढ़ रहा है। । इन फिल्‍मों के प्रति लगातार बढ़ते रुझान की पड़ताल के दौरान क्‍या कहते हैं निर्माता रितेश सिद्धवानी और निर्देशक संदीप केवलानी सिनेमाई?

    By Smita Srivastava Edited By: Deepti Mishra Updated: Fri, 18 Apr 2025 01:03 PM (IST)
    Hero Image
    सच्ची कहानियों पर बनी फिल्‍मों के प्रति लगातार बढ़ते रुझान की पड़ताल।

    स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई डेस्क। पंजाब में अमृतसर के जलियांवाला बाग में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे हजारों भारतीयों को अंग्रेजों ने मौत के घाट उतार दिया था। इसी नरसंहार पर न्याय की मांग करती फिल्म केसरी चैप्टर 2 आज रिलीज हुई है। आगामी दिनों में फुले और ग्राउंड जीरो सहित सत्य घटनाओं पर आधारित कई फिल्में आएंगी। इन फिल्‍मों के प्रति लगातार बढ़ते रुझान की पड़ताल यहां पढ़ें..

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    फिल्म केसरी 2: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ जलियांवाला बाग के एक दृश्य में वकील सी शंकरन (अक्षय कुमार) ब्रिगेडियर जनरल रेजीनाल्ड डायर से पूछते हैं- आपने जलियांवाला बाग में भीड़ को हटाने के लिए वार्निंग कैसे दी? आपने टीयर गैस फेंकी वहां?

    वह कहते हैं- नहीं। यह वही डायर है, जिसने 13 अप्रैल, 1919 को बैसाखी के दिन अंग्रेज फौज की एक टुकड़ी से रॉलेट एक्ट का शांति से विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाई थीं।

    रेजीनाल्ड डायर ने इस बर्बर गोलीकांड को उस समय के पंजाब के गवर्नर जनरल माइकल ओ डायर के कहने पर अंजाम दिया था। यह फिल्म शंकरन द्वारा डायर के खिलाफ ब्रिटिश अदालत में लड़े गए मुकदमे पर आधारित है।

    इसके एक सप्ताह बाद आ रही फिल्म ग्राउंड जीरो भी सत्य घटना पर आधारित है।

    कौन-से ऑपरेशन पर आधारित है फिल्‍म ग्राउंड जीरो?

    यह फिल्म बीएसएफ कमांडेंट नरेंद्र नाथ धर दुबे पर आधारित है, जिन्होंने आतंकी गाजी बाबा को मार गिराने वाले ऑपरेशन का नेतृत्व किया था। यह मिशन बीएसएफ के पिछले 50 वर्षों में सबसे बेहतरीन ऑपरेशन के तौर पर दर्ज है। गाजी बाबा जैश-ए-मोहम्मद का कमांडर और हरकत-उल-अंसार आतंकी संगठन का डिप्टी कमांडर था।

    उसे 13 दिसंबर, 2001 को भारतीय संसद पर हुए हमले का मास्टरमाइंड माना जाता है। इससे पहले इस साल आई इमरजेंसी, स्काई फोर्स, छावा, द डिप्लोमैट भी सच्ची घटनाओं पर बनी फिल्में रही हैं। आगामी दिनों में वास्तविक घटनाओं पर फिल्म फुले, द डेल्ही फाइल्स, इक्कीस जैसी कई फिल्में प्रदर्शित होने की कतार में हैं।

    कहानी में क्‍या जरूरी है?

    इस संबंध में ग्राउंड जीरो के निर्माता रितेश सिद्धवानी कहते हैं कि कहानी जब रियल घटना या वास्तविक व्यक्ति से प्रभावित होती है तो यह आपको उससे जुड़ाव का मौका देती है। हम बीएसएफ की कहानी बताने जा रहे हैं, जो पहले हिंदी सिनेमा में नहीं हुआ।

    सत्‍य घटनाओं पर आधारित फिल्‍मों में क्‍या होना चाहिए?

    वास्तविक घटनाओं पर बनी फिल्मों में सिनेमाई लिबर्टी लेने की बात होती है। उस वजह से यह प्रामाणिक दस्तावेज के तौर पर इस्तेमाल नहीं होती।

    इस बाबत फिल्म स्काई फोर्स के निर्देशन और रनवे 34 के लेखक संदीप केवलानी कहते हैं, ‘सिनेमाई स्वतंत्रता हर फिल्मकार को लेनी ही पड़ती है, क्योंकि हम जो फिल्म बना रहे हैं जनता के मनोरंजन के लिए बना रहे हैं। हम इसे बोलते ही एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री हैं तो इसका पहला फर्ज ही होता है जनता का एंटरटेनमेंट करना।

    वह आगे बताते हैं कि लिबर्टी लेनी पड़ती है। आप जिस प्रकार से कहानी सोचते हैं वैसे परोस दी तो डाक्यूमेंट्री ड्रामा बन जाएगी तो सिनेमाई लिबर्टी भी उतनी ही ली जाती है कि कहानी के मूल तत्व को न छेड़ें।

    सफलता का अहम बिंदु

    इन फिल्मों की बॉक्स ऑफिस सफलता को लेकर आगे संदीप कहते हैं,

    ऐसी बहुत सारी फिल्में आई हैं, जो सच्ची घटनाओं पर बनीं हैं, पर वे सफल नहीं हुई हैं। ऐसा नहीं है कि कोई फार्मूला है कि आप सच्ची घटना पर फिल्म बना लो और वह चल जाएगी। बीते दिनों कितनी ऐसी फिल्में आई हैं, लेकिन सिनेमाघरों में सब चली नहीं हैं। मैं यह भी कहना चाहूंगा अगर कहानी को बेहतर तरीके से बनाया गया है साथ में कंप्लीट एंटरटेनमेंट का पैकेज है तो फिल्म दर्शकों को अवश्य पसंद आएगी।

    जारी रहेगा क्रम

    रियल कहानी को पर्दे पर देखना बहुत आसान लगता है, लेकिन उसके पीछे काफी मेहनत और विचार विमर्श होता है। शिवम कहते हैं कि आपको वास्तविक कहानी ढूंढ़नी होगी। यह लेखक और निर्देशक की प्रतिभा है कि वह कहानी को कैसे कहेंगे नहीं तो डाक्यूमेंट्री फुटेज बनकर रह जाएगा।

    शिवम के मुताबिक, मुझे वास्तविक कहानियां आकर्षित करती हैं। आगे भी मैं वैसी कहानी बना रहा हूं जैसे युद्धग्रस्त यूक्रेन में किस प्रकार भारतीय मेडिकल छात्र फंस गए थे, उन्हें वहां से कैसे सुरक्षित स्वदेश वापस लाया गया था।

    कहानी के केंद्रीय पात्र वे हैं, जो उन्हें बचाते हैं। छह सौ छात्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले चार-छह छात्र हैं, उनकी पर्सनालिटी कहानी को सपोर्ट करेगी। वह खोजना होगा। एक और फिल्म पर काम चल रहा है।

    यह कश्मीरी लड़की रुखसाना केसर की कहानी है, जिसके घर में तीन आतंकवादी घुस आए थे। उसने तीनों को मार गिराया था। वर्तमान में वह जम्मू-कश्मीर पुलिस में कार्यरत हैं। सत्य घटनाओं पर आधारित कहानियों को कहने में भी एक रोमांच होता है।

    यह भी पढ़ें- Don't Miss! ये अभिनेता Kesari Chapter 2 देख हुआ दंग, बताया- कैसी है जलियांवाला बाग की अनकही कहानी?

    माफी की मांग करती है केसरी 2

    सिनेमा को सॉफ्ट पॉवर माना जाता है। बीते दिनों छावा में औरंगजेब के चित्रण पर काफी बवाल हुआ। वहीं केसरी 2 को लेकर निर्माता करण जौहर का कहना है कि यह एक ऐसी फिल्म है, जो नरसंहार के लिए ब्रिटिश साम्राज्य से माफी की मांग करती है।

    वह कहते हैं कि जनरल डायर ने माना था कि जब तक गोलियां खत्म नहीं हुईं, लोगों को निशाना बनाती रहीं थीं। जलियांवाला बाग हत्याकांड पर रिपोर्टों में इसे खूनी बैसाखी कहा गया था। उस दिन जो हुआ वह नरसंहार था।

    इस हत्याकांड के लिए अभी तक कोई माफी नहीं मांगी गई है। हम सभी ब्रिटिश राज के बारे में जानते हैं, लेकिन एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में यह हमारा अधिकार है कि वे हमसे माफी मांगें। यह फिल्म बस इसी की मांग करती है।

    यह भी पढ़ें- Jaat Worldwide Collection Day 8: दुनियाभर में बुलेट ट्रेन बना 'जाट', पहला रिकॉर्ड बनाने से इतनी दूर फिल्म

    बीते दिनों प्रदर्शित शिवम नायर निर्देशित फिल्म 'द डिप्लोमैट' भारतीय महिला के पाकिस्तान में गलत हाथों में फंसने की कहानी थी। वास्तविक कहानियों के प्रति फिल्मकारों के रुझान को लेकर शिवम कहते हैं कि फिल्म बनाने के लिए हमें नवीन कहानी चाहिए होती है।

    हम लोग बहुत सारी वास्तविक घटनाओं के बारे में सुनते हैं, लेकिन सब पर फिल्म नहीं बन सकती है। जब कोई कहानी किसी लेखक और निर्देशित को आकर्षित करती है तभी उसे बनाने का फैसला करता है।

    यह भी पढ़ें- Kesari 2 X Review: 'बंद मुट्ठी एक कड़ा', गुस्से से लाल कर देगी अक्षय कुमार की फिल्म? जनता का ये फैसला