JFF 2025: आइसक्रीम की शर्त पर एक्ट्रेस ने साइन की पहली फिल्म, शूटिंग से घर आने के बाद मां मंजवाती थीं बर्तन
जानी-मानी साउथ एक्ट्रेस खुशबू सुंदर (Khushbu Sundar) ने जागरण फिल्म फेस्टिवल (Jagran Film Festival) के मंच पर अपने करियर के बारे में खुलकर बात की। बाल कलाकार के तौर पर अपना करियर शुरू करने वालीं खुशबू और उनके साथ मौजूद बाकी कलाकारों ने कहा कि भारतीय सिनेमा सिर्फ बॉलीवुड तक सीमित नहीं है।

शशि ठाकुर, जागरण नई दिल्ली। जागरण फिल्म फेस्टिवल में भारतीय सिनेमा की विविधता पर जब परिचर्चा आरंभ हुई तो तमिल फिल्मों की सुपरस्टार खुशबू सुंदर (Khushbu Sundar) ने अपनी सिनेमाई यात्रा के अनुभवों को साझा किया। खुशबू के अनुसार जब फिल्मों में बाल कलाकार के रूप में प्रस्ताव मिला तो उन्होंने सबसे पहले कहा कि अगर मुझे एक कप वनीला आइसक्रीम मिलेगी तो मैं शूटिंग करूंगी।
शूटिंग से आने के बाद बर्तन मांजती थी एक्ट्रेस
यहां से उनकी फिल्म यात्रा आरंभ हुई और वह बाल कलाकार के रूप में और बाद में अभिनेत्री के तौर पर खासी सफल रहीं। खुशबू के मुताबिक जीवन में अच्छे दोस्तों का होना बहुत जरूरी है, जो आपको सफलता की राह पर मजबूती से खड़े रखते हैं। उन्होंने एक दिलचस्प किस्सा बताया कि जब वह बेहद लोकप्रिय हो गईं तो शूटिंग से घर लौटने के बाद उनकी मां कहती थीं, घर में कुछ बर्तन पड़े है, उन्हें मांज दें।
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Khushbu Sundar- Photo Credit (Instagram)
बॉलीवुड तक सीमित ने भारतीय सिनेमा
खुशबू का मानना है कि परिवार सफलतम इंसान को भी जड़ों से जोड़े रख सकता है। उनके साथ पैनल में शामिल तमिल फिल्मों के निर्देशक गिरीश, सिनेमेटोग्राफर रवि के. चंद्रन और असमिया फिल्म निर्देशक उत्पल बोर पुजारी ने इस बात पर जोर दिया कि भारतीय सिनेमा केवल बालीवुड तक सीमित नहीं है बल्कि कन्नड़, तमिल, तेलुगु और मलयालम जैसे क्षेत्रीय सिनेमाओं ने भी देश ही नहीं बल्कि वैश्विक मंच पर अपनी गहरी छाप छोड़ी है।
20 साल में बदला भारतीय सिनेमा
गिरीश ने कहा कि तकनीक को लेकर हर 20 साल में फिल्म की भाषा और व्याकरण बदल जाता है। इस संबंध में उत्पल ने कहा कि विभिन्न भाषाओं के फिल्मकारों ने सामाजिक मुद्दों को बड़े पर्दे पर बड़े संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत किया। परिचर्चा को बढ़ाते हुए रवि के.चंद्रन ने कहा कि हिंदी सिनेमा ने हमेशा से भारतीय फिल्म उद्योग की धड़कन का काम किया है।
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