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    जागरण फिल्म फेस्टिवल में तमिल और असमिया फिल्म निर्देशकों से संवाद, अभिनेत्री खुशबू सुंदर ने साझा किए अनुभव

    Updated: Thu, 04 Sep 2025 09:57 PM (IST)

    जागरण फिल्म फेस्टिवल में खुशबू सुंदर ने सिनेमाई सफर और परिवार के महत्व पर बात की। उन्होंने कहा कि सफलता के बावजूद परिवार जड़ों से जोड़े रखता है। निर्देशकों ने क्षेत्रीय सिनेमा के योगदान को सराहा और फिल्म को समाज का आईना बताया। तकनीक के साथ सिनेमा की बदलती शैली और सामाजिक मुद्दों पर फिल्मों की भूमिका पर भी चर्चा हुई।

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    संवाद में अभिनेत्री खुशबू सुंदर, सिनेमाटोग्राफर रवि के चंद्रन, निर्देशक गिरीश कसरवल्ली और उत्पल बोधपुजारी। संजीव कुमार

    शशि ठाकुर, नई दिल्ली। जागरण फिल्म फेस्टिवल में भारतीय सिनेमा की विविधता पर जब परिचर्चा आरंभ हुई तो तमिल फिल्मों की सुपरस्टार खुशबू सुंदर ने अपनी सिनेमाई यात्रा के अनुभवों को साझा किया।

    खुशबू के अनुसार जब फिल्मों में बाल कलाकार के रूप में प्रस्ताव मिला तो उन्होंने सबसे पहले कहा कि अगर मुझे एक कप वनीला आइसक्रीम मिलेगी तो मैं शूटिंग करूंगी। यहां से उनकी फिल्म यात्रा आरंभ हुई और वह बाल कलाकार के रूप में और बाद में अभिनेत्री के तौर पर खासी सफल रही।

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    खुशबू के मुताबिक जीवन में अच्छे दोस्तों का होना बहुत जरूरी है जो आपको सफलता की राह पर मजबूती से खड़ा रखता है। उन्होंने एक और दिलचस्प किस्सा बताया कि जब वह बेहद लोकप्रिय हो गई तो शूटिंग से घर लौटने के बाद उनकी मां कहती थी, घर में कुछ बर्तन पड़े है, उन्हें मांज दें। खुशबू का मानना है कि परिवार सफलतम इंसान को भी जड़ों से जोड़े रख सकता है।

    तमिल फिल्मों के निर्देशक गिरीश, सिनेमेटोग्राफर रवि के. चंद्रन और असमिया फिल्म निर्देशक उत्पल बोर पुजारी ने कहा कि भारतीय सिनेमा केवल बालीवुड तक सीमित नहीं है बल्कि कन्नड़, तमिल, तेलुगु और मलयालम जैसे क्षेत्रीय सिनेमा ने भी देश ही नहीं बल्कि वैश्विक मंच पर अपनी गहरी छाप छोड़ी है।

    तमिल निर्देशक गिरीश ने कहा कि फिल्म केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं बल्कि समाज का आईना है। तकनीक को लेकर हर 20 साल में फिल्म की भाषा और व्याकरण बदल जाता है। डिजिटल तकनीक और ओटीटी प्लेटफार्म के दौर में फिल्ममेकिंग की परिभाषा नई हो गई है।

    फिल्मकार की दृष्टि, प्रकृति और कथा की गति अब एक नई शैली में सामने आ रही है। जैसे पिछली सदी के छठे दशक के दशक में हिंदी फिल्मों में जिस प्रकार के काल्पनिक कहानियों पर फिल्में बनती थी वो बाद में यर्थाथवादी हो गई।

    इस संबंध में उत्पल ने कहा कि विभिन्न भाषाओं के फिल्मकारों ने सामाजिक मुद्दों को बड़े पर्दे पर बड़े संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत किया। परिचर्चा को बढ़ाते हुए रवि के.चंद्रन ने कहा कि हिंदी सिनेमा ने हमेशा से भारतीय फिल्म उद्योग की धड़कन का काम किया है।

    राज कपूर और गुरुदत्त की क्लासिक फिल्मों से लेकर अमिताभ बच्चन के स्टारडम और आज की नई कहानियों तक बाॅलीवुड लगातार बदलते समय के साथ खुद को ढालता रहा है।

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