'मैं पागल हो जाऊंगा,' Guru Dutt के जीवन की वो काली रात... तन्हाई से टूट गए थे फनकार
दिग्गज अभिनेता और निर्देशक रहे गुरु दत्त (Guru Dutt) किसी अलग पहचान के मोहताज नहीं थे। आज 9 जुलाई को उनकी 100वीं बर्थ एनिवर्सरी पर उनसे जुड़ा एक ऐसा किस्सा बताने जा रहे हैं जो गुरु के जीवन की आखिरी काली रात से जुड़ा है जिसके बाद उन्होंने उगता सूरज नहीं देखा।

एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। 9 जुलाई यानी आज गुरु दत्त की 100वीं जयंती मनाई जा रही है। इस खास मौके पर आज हम आपको उनके जीवन की उस काली रात के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके बाद सिनेमा जगत ने एक दिग्गज फनकार को खो दिया था।
लेखक यासिर उस्मान की किताब गुरु दत्त: एक अधूरी कहानी में बॉलीवुड के इस लीजेंड के उस किस्से का जिक्र किया गया है, जब वह अपने हाथ में व्हिस्की की बोतल लेकर कमरे गए और फिर भी वापस नहीं आए। आइए इस लेख में विस्तार से जानते हैं।
9 अक्टूबर की वो रात...
9 अक्टूबर 1964। मुंबई के पेडर रोड का एक घर। रात में लेखक अबरार अल्वी फिल्म 'बहारें फिर भी आएंगी' के आखिरी सीन पर काम कर रहे थे। उन्होंने सीन गुरु दत्त को सुनाया। गुरु ने ध्यान से सुना लेकिन चुप रहे। अबरार ने पूछा- आपको पसंद आया?' जवाब देर से आया, 'तुम जानते हो अबरार, मुझे डर है कि किसी दिन मैं पागल हो जाऊंगा। तन्हाई सचमुच बेरहम हो सकती है।'
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फोटो क्रेडिट- एक्स
इसके बाद वो उठे और रात करीब 12:30 बजे पड़ोसी के घर से राज कपूर को फोन किया। उन्होंने पूछा कि क्या वे अभी आकर मिल सकते हैं। राज कपूर को हैरानी हुई। उन्होंने कहा कि अभी बहुत रात हो गई है, कल शाम को मिलने का वादा किया। गुरु दत्त उन्हें अपनी पसंदीदा फिल्म 'कागज़ के फूल' दिखाना चाहते थे, उस पर बात करना चाहते थे। वो फिल्म जो बॉक्स ऑफिस पर असफल रही थी, लेकिन उनकी आत्मा से कभी अलग नहीं हुई।
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गुरु अपने टैक्स सलाहकार मिस्टर गोले के साथ अपने फ्लैट लौटे। अबरार अभी भी बहारें फिर भी आएंगी के कुछ सीन्स में लगे थे। तीनों डिनर पर बैठे, लेकिन गुरु ने कहा कि वे थके हुए हैं और आराम करना चाहते हैं। वे उठे, अपने कमरे में गए और दरवाजा बंद कर लिया।
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करीब तीन बजे रात को वे बाहर आए। अस्सिटेंट रतन को जगाया और अबरार के बारे में पूछा। रतन ने बताया कि वे डिनर के बाद चले गए थे। उसने पूछा कि क्या उनके लिए ड्रिंक बनाए। गुरु ने कहा- नहीं, सिर्फ बोतल दे दो। रतन ने उन्हें व्हिस्की की बोतल दी और वे चुपचाप अपने कमरे में लौट गए। इस बार भी दरवाजा अंदर से बंद हो गया।
गुरु दत्त उस कमरे से फिर कभी जिंदा नहीं निकले
अगली सुबह, 10 अक्टूबर को उनका शरीर कमरे में मिला। बिस्तर पर लेटे हुए, आंखें अधखुली, दाहिना हाथ फैला हुआ, दाहिना पैर थोड़ा मुड़ा हुआ, जैसे वे उठना चाह रहे हों। पास में एक अधूरी किताब रखी थी। गिलास में कुछ रंगीन तरल था- न सादा पानी, न पूरी शराब।
देव आनंद फिल्म जगत से वहां पहुंचने वाले पहले व्यक्ति थे। वे चुपचाप जाकर उनकी मां के पास बैठ गए। गीता दत्त पहुंची तो सदमे से बेहोश हो गई। बेटी नीना ने चिलाना शुरू कर दिया था। मौन गीता को सांत्वना देते हुए देव आनंद रो पड़े।
जॉनी वॉकर और वहीदा रहमान एक फिल्म की शूटिंग के लिए मद्रास में थे। जॉनी जैसे ही होटल के अपने कमरे में घुसे। टेलीफोन बजा। बंबई से ट्रंक कॉल था। उधर से आवाज आई- जॉनी... गुरु चला गया। वो फोन पकड़े-पकड़े रोने लगे। उनका दोस्त अब नहीं रहा था।
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