Guru Dutt को ब्लॉकबस्टर देने वाला ये डायरेक्टर एक फ्लॉप फिल्म के चलते हो गया था कंगाल, बेचना पड़ा बंगला-फर्नीचर
हिंदी सिनेमा में चुनिंदा डायरेक्टर ही ऐसे रहे जिन्होंने अपनी फिल्मों से अमिट छाप छोड़ी। एक ऐसे ही निर्देशक 40 50 और 60 के दशक में भी थे जिन्होंने एक से बढ़कर एक क्लासिक मूवीज बनाई। मगर एक फ्लॉप होने के बाद वह इस कदर कर्ज में डूबे कि घर तक बेचना पड़ गया।

एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। भारतीय सिनेमा के इतिहास में ऐसे कई अनकहे किस्से दबे हैं, जो बताते हैं कि फिल्मी दुनिया की चकाचौंध के पीछे कितना जोखिम छिपा है। एक फिल्म को बनाने में सिर्फ कलाकारों का योगदान नहीं होता है, कैमरे के पीछे डायरेक्टर-प्रोड्यूसर सब कुछ दांव पर लगाकर किसी फिल्म का निर्माण या निर्देशन करते हैं। कब एक दांव उल्टा पड़े और सक्सेस अर्श से फर्श पर पहुंचा दे, कोई नहीं जानता है। हिंदी सिनेमा के एक दिग्गज निर्देशक के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था।
सिनेमा को कई ब्लॉकबस्टर फिल्मों से नवाजने वाले एक डायरेक्टर की जिंदगी में ऐसा मोड़ आया कि पाली हिल के महंगे बंगले में रहने वाले इस डायरेक्टर को अपना फर्नीचर तक भी बेचना पड़ गया था। यह निर्देशक थे एम सादिक (M Sadiq)। गुरु दत्त को उनकी ब्लॉकबस्टर फिल्म 'चौदहवीं का चांद' (Chaudhvin Ka Chand) देने वाले एम सादिक को कभी अपना बंगला और फर्नीचर तक बेचना पड़ गया था।
फ्लॉप फिल्म के चलते डूब गए थे पैसे
हाल ही में, महेश भट्ट ने अपनी बेटी पूजा भट्ट के साथ बातचीत में एम सादिक के उस बुरे फेज को याद किया है। उन्होंने बताया, "हम यूनियन पार्क में रह रहे थे, जो इमरान (हाशमी) और उनकी दादी का घर था। ठीक सामने एम सादिक का घर था, जो दो मंजिला बंगला था। एक सुबह पाली हिल के इस शांत इलाके काफी चहल-पहल थी। वहां कौन-कौन रहता था, इसकी जानकारी थी। एम सादिक एक कुर्सी पर बहुत उदास होकर बैठे थे और उनके घर का सारा फर्नीचर बगीचे में ले जाया जा रहा था। उसे नीलाम करने के लिए ले जाया जा रहा था और उनका घर इसलिए बेचा जा रहा था क्योंकि उन्होंने एक फिल्म बनाई थी जिसमें उन्हें बहुत सारा पैसा गंवाना पड़ा था। उन पर बाजार का कर्ज था और उनकी संपत्ति जब्त कर ली गई थी।"
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मां ने महेश भट्ट को लगाई थी फटकार
महेश भट्ट ने आगे बताया कि कैसे उनकी मां ने उस वक्त एम सादिक को घूरते हुए देखने के लिए फटकार लगाई थी। उन्होंने कहा, "उन्होंने मेरे सिर पर जोर से थप्पड़ मारा। उन्होंने कहा, 'क्या तमाशा देख रहा है'। उनका बेटा महमूद खेलने आया था। मेरी मां ने मुझे उनके साथ खेलने को कहा, क्योंकि अपने पिता को इस तरह अपमानित होते देखना अच्छा नहीं लगता। मुझे याद है कि मैं महमूद और इमरान के पिता के साथ खेलने गया था। उन्हें लगता था कि बच्चों को कुछ नहीं पता, लेकिन उन्हें पता था।"
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लाख मुसीबतों के बाद भी एम सादिक हिले नहीं थे। उन्होंने फिर से सिनेमा में अपने पैर जमाने की कोशिश की और 'चौदहवीं का चांद' डायरेक्ट किया। इसने उन्हें फिर से खोया हुआ सम्मान और शोहरत दिलाई। साल 1970 में एम सादिक पाकिस्तान में शिफ्ट हो गए और उनकी आखिरी फिल्म बहारो फूल बरसाओ कंप्लीट होने से पहले ही साल 1971 में उनका निधन हो गया था।
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