JFF: गुलजार की फिल्म Aandhi के दौरान हुआ था विवाद, सिनेमाघरों में पहुंचने में लग गए कई साल
13 फरवरी 1975 को प्रदर्शित हुई फिल्म ‘आंधी’ को लेकर इतने कयास लगे और इतनी सियासी आंधियां चलीं कि फिल्म बैन तो की गई मगर चर्चा में भी खूब रही। संजीव कुमार और सुचित्रा सेन की बेमिसाल अदाकारी और गुलजार के निर्देशन से सजी इस फिल्म से जुड़े कई किस्से हाल ही में अनंत विजय ने शेयर किए हैं। आइए जानते हैं उनके बारे में
एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। इंदिरा गांधी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर जब फिल्म या पुस्तक आती है जिसमें सच या सच के करीब जाने की कोशिश की जाती है तो उसको लेकर खूब हो-हल्ला मचता रहा है। इंदिरा गांधी पर मथाई की पुस्तक से लेकर गुलजार के निर्देशन में बनी फिल्म ‘आंधी’ और हाल ही में कंगना रनौत की फिल्म ‘इमरजेंसी’ को लेकर विवाद हुआ। पंजाब में कंगना की फिल्म प्रदर्शित नहीं हो पाई। आज से 50 वर्ष पूर्व जब ‘आंधी’ प्रदर्शित हुई थी तो प्रचारित किया गया था कि ये फिल्म इंदिरा गांधी और उनके पति फिरोज के रिश्तों पर आधारित है।
भारत की एक दमदार महिला राजनेता की कहानी
फिल्म के प्रदर्शन के पहले दक्षिण भारत के अखबारों में इसका एक विज्ञापन प्रकाशित हुआ था। विज्ञापन में फिल्म की नायिका सुचित्रा सेन की फिल्म की भूमिका से ली गई एक तस्वीर प्रकाशित हुई थी। तस्वीर के नीचे लिखा था कि अपने प्रधानमंत्री को स्क्रीन पर देखें, लेकिन उत्तर भारत और दिल्ली के समाचार पत्रों में इस फिल्म का जो विज्ञापन प्रकाशित हुआ, उसमें लिखा था स्वाधीन भारत की एक दमदार महिला राजनेता की कहानी। फिल्म की प्रचार सामग्री और उसके फिल्मांकन को लेकर ये बात स्पष्ट थी कि फिल्म इंदिरा गांधी पर ही केंद्रित है। हालांकि फिल्म के निर्देशक गुलजार इससे इन्कार कर रहे थे। उन्होंने स्वाधीन भारत की एक दमदार नेत्री तारकेश्वरी सिन्हा का नाम लेकर कहा था कि फिल्म उनके जीवन से प्रेरित है।
फिल्म से जुड़े लोग लाख इस बात की सफाई देते रहे कि ये फिल्म इंदिरा गांधी पर केंद्रित नहीं है, लेकिन इंदिरा गांधी के जीवन और इस फिल्म की नायिका आरती के जीवन में कई समानताएं लक्षित की जा सकती हैं। फिरोज गांधी से इंदिरा गांधी का अलगाव हुआ और वो अपनी पिता की मर्जी से राजनीति में आईं। सुचित्रा सेन के गेटअप से इंदिरा गांधी की झलक मिलती थी। एक छोटा सा अंतर ये रखा गया था कि इंदिरा गांधी के दो पुत्र थे जबकि फिल्म की नायिका को एक लड़की थी।
कश्मीर के मार्तंड मंदिर में फिल्माए गाने
गुलजार ने अपने निर्देशन में नायक और नायिका के बीच के प्रेम दृश्यों को मर्यादित ढंग से फिल्मी पर्दे पर उकेरा। रोमांटिक दृश्यों में संजीव कुमार और सुचित्रा सेन ने अपने अभिनय से रिश्ते को जीवंत कर दिया है। फिल्म का एक गीत है, ‘तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं’ में दोनों के मन की तड़प, मिलने की आकांक्षा, लेकिन परिस्थितियां विपरीत। कश्मीर के अनंतनाग इलाके के मार्तंड मंदिर के खंडहरों के बीच फिल्माए इस गीत की लोकेशन, गाने के दौरान नायक-नायिका की पोजिशनिंग कहानी को मजबूती प्रदान करती है।
संजीव कुमार का अभिनय इतना बेहतरीन है कि उसको देखकर ही पात्र की पीड़ा का अनुमान लगाया जा सकता है। बांग्ला भाषा की फिल्मों की जानी-मानी अभिनेत्री सुचित्रा सेन ने इस फिल्म में एक बेहद महत्वाकांक्षी महिला के चरित्र को बखूबी निभाया था। इस फिल्म के गाने, संवाद, संवादों का फिल्मांकन और फिर कई मूक दृश्यों में भावनाओं की अभिव्यक्ति इस फिल्म को क्लासिक बनाती है, लेकिन राजनीति ने इस फिल्म को मारने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।
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फिल्म ‘आंधी’ के प्रदर्शित होने पर ये बातें इंदिरा गांधी तक पहुंचने लगीं कि इसमें उनको गलत तरीके से दिखाया गया है। कई लोगों ने जब इंदिरा गांधी के कान भरे तो उन्होंने दो लोगों को फिल्म देखकर बताने के लिए कहा कि क्या वो फिल्म सिनेमाहाल में प्रदर्शन के लिए ठीक है। दोनों ने फिल्म देखी और उसमें ऐसा कुछ भी नहीं पाया कि फिल्म को प्रतिबंधित किया जाए। उस समय के सूचना एवं प्रसारण मंत्री इंद्र कुमार गुजराल को भी फिल्म में कुछ गलत नहीं लगा था। बताया जाता है कि एक दृश्य में सुचित्रा सेन को सिगरेट पीते दिखाने की बात जब इंदिरा गांधी तक पहुंची तो उन्होंने तय कर लिया कि फिल्म को रोक दिया जाए। कुछ ही सप्ताह पहले प्रदर्शित की गई फिल्म प्रतिबंधित!
कई साल के इंतजार के बाद थिएटर पहुंची फिल्म
फिल्म की रील को जब्त करने का आदेश। कहा तो यहां तक जाता है कि दिल्ली पुलिस का एक दस्ता मुंबई (तब बांबे) पहुंचा था और तारदेव के एक स्टूडियो पर पुलिस ने छापेमारी कर रील के कई बक्से जब्त किए थे। उन बक्सों को लेकर दिल्ली पुलिस ट्रेन से रवाना हुई। रास्ते में उन बक्सों में आग लगने की बातें हिंदी फिल्मों से जुड़े लोग बताते हैं। सच्चाई चाहे जो हो, लेकिन इतना तय है कि एक खूबसूरत फिल्म विवाद व एक महिला की जिद की भेंट चढ़ गई। फिल्म को फिर से सिनेमाहाल तक पहुंचने में ढाई साल का इंतजार करना पड़ा। जब इंदिरा गांधी लोकसभा चुनाव में पराजित हुईं तो मोरारजी देसाई की सरकार ने इसे दूरदर्शन पर प्रसारित करवाया।
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