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Death Anniversary: हिंदी सिनेमा के 'काउ ब्वाय' रहे हैं फ़िरोज़ ख़ान, दुर्लभ तस्वीरों संग जानिये सफ़र

फ़िरोज़ ख़ान ने आखिरी बार ‘वेलकम’ में काम किया। ‘वेलकम’ में भी उनका वही बिंदास स्टाइल नज़र आया जिसके लिए वह जाने जाते हैं।

By Hirendra JEdited By: Published: Fri, 27 Apr 2018 10:13 AM (IST)Updated: Sat, 27 Apr 2019 10:23 AM (IST)
Death Anniversary: हिंदी सिनेमा के 'काउ ब्वाय' रहे हैं फ़िरोज़ ख़ान, दुर्लभ तस्वीरों संग जानिये सफ़र
Death Anniversary: हिंदी सिनेमा के 'काउ ब्वाय' रहे हैं फ़िरोज़ ख़ान, दुर्लभ तस्वीरों संग जानिये सफ़र

मुंबई। फ़िरोज़ ख़ान Firoz Khan और विनोद खन्ना पक्के दोस्त थे और यह संयोग ही है कि 27 अप्रैल 2017 को विनोद खन्ना तो 27 अप्रैल 2009 को फ़िरोज़ ख़ान ने इस दुनिया को अलविदा कहा था। फ़िरोज़ ख़ान ने अपने दोस्त विनोद खन्ना के साथ ‘दयावान’ और ‘कुर्बानी’ जैसी हिट फ़िल्में भी दी हैं।

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बहरहाल, फ़िरोज़ ख़ान की बात करें तो उनका नाम सुनते ही एक आकर्षक, छरहरे और जांबाज जवान का चेहरा रूपहले पर्दे पर चलता-फिरता दिखाई पड़ने लगता है। बूट, हैट, हाथ में रिवॉल्वर, गले में लॉकेट, कमीज के बटन खुले हुए, ऊपर से जैकेट और शब्दों को चबा-चबा कर संवाद बोलते फ़िरोज़ ख़ान को हिंदी फ़िल्मों का ‘काउ ब्वाय’ कहा जाता था। हालीवुड में क्लिंट ईस्टवुड की जो छवि थी, उसका देशी रूपांतरण थे फ़िरोज़ ख़ान।

अभिनेता फ़िरोज़ ख़ान ने बॉलीवुड में स्टाइलिश और बिंदास होने के जो पैमाने रखे उस तक आज भी कोई नहीं पहुंच पाया है। राजसी अंदाज में उन्होंने एक अर्से तक दर्शकों के दिलों पर राज किया है। फ़िरोज़ ख़ान का जन्म 25 सितंबर, 1939 को बेंगलूर में हुआ था। अफगानी पिता और ईरानी मां के बेटे फ़िरोज़ बेंगलूर से हीरो बनने का सपना लेकर मुंबई पहुंचे। उनके तीन भाई संजय ख़ान (अभिनेता-निर्माता), अकबर ख़ान और समीर ख़ान (कारोबारी) हैं। उनकी एक बहन हैं, जिनका नाम दिलशाद बीबी है।

बॉलीवुड में फ़िरोज़ ने अपने कैरियर की शुरूआत 1960 में बनी फ़िल्म 'दीदी' से की। शुरुआती कुछ फ़िल्मों में अभिनेता का किरदार निभाने के बाद उन्होंने कुछ समय के लिए खलनायकों की भी भूमिका अदा की खास तौर पर गांव के गुंडों की। वर्ष 1962 में उन्होंने अंग्रेजी भाषा की एक फ़िल्म ‘टार्जन गोज टू इंडिया’ में काम किया। इस फ़िल्म में उनकी नायिका सिमी ग्रेवाल थीं। 1965 में उनकी पहली हिट फ़िल्म ‘ऊंचे लोग’ आई जिसने उन्हें सफलता का स्वाद चखाया। अभिनय के लिहाज से फ़िरोज़ ख़ान के लिए 70 का दशक ख़ास रहा। फ़िल्म ‘आदमी और इंसान’ (1970) में अभिनय के लिए उन्हें फ़िल्म फेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक कलाकार का पुरस्कार मिला।

70 के दशक में उन्होंने ‘आदमी और इंसान’, ‘मेला’, ‘धर्मात्मा’ जैसी बेहतरीन फ़िल्में दीं। इसी दशक में उन्होंने निर्माता-निर्देशक के रूप में अपना सफर शुरू किया। उनके इस सफर की शुरुआत ‘धर्मात्मा’ से हुई। वर्ष 1980 की ‘कुर्बानी’ से उन्होंने एक सफल निर्माता-निर्देशक के रूप में सभी को अपना कूव्वत का लोहा मनवाया। ‘कुर्बानी’ उनके कैरियर की सबसे सफल फ़िल्म रही। इसमें उनके साथ विनोद खन्ना भी प्रमुख भूमिका में थे। ‘कुर्बानी’ ने हिंदी सिनेमा को एक नया रूप दिया। ‘कुर्बानी’ ने ही हिंदी सिनेमा में अभिनेत्रियों को भी हॉट एंड बोल्ड होने का अवसर दिया। फिल्म में फ़िरोज़ और जीनत अमान की बिंदास जोड़ी को दर्शकों ने खूब पसंद किया। 70 से 80 के दशक के बीच उनके निर्देशन में बनी फ़िल्में ‘धर्मात्मा’, ‘कुर्बानी’, ‘जांबाज’ और ‘दयावान’ बॉक्स ऑफिस पर हिट हुई।

वर्ष 1975 में बनी ‘धर्मात्मा’ पहली भारतीय फ़िल्म जिसकी शूटिंग अफगानिस्तान में की गई। यह एक निर्माता निर्देशक के रूप में उनकी पहली हिट फ़िल्म भी थी। यह फ़िल्म हॉलीवुड की फ़िल्म ‘गॉडफादर’ पर आधारित थी। 1998 में फ़िल्म ‘प्रेम अगन’ से उन्होंने अपने बेटे को फ़िल्मों में लॉन्च किया लेकिन, उनके बेटे फरदीन ख़ान उनकी तरह शोहरत बटोरने में विफल रहे। 2003 में उन्होंने अपने बेटे और स्पो‌र्ट्स प्यार के लिए फ़िल्म ‘जानशी’ बनाई पर फ़िल्म में अभिनय करने के बाद भी वह अपने बेटे को हिट नहीं करवा सके।

फ़िरोज़ ख़ान ने आखिरी बार ‘वेलकम’ में काम किया। ‘वेलकम’ में भी उनका वही बिंदास स्टाइल नज़र आया जिसके लिए वह जाने जाते हैं। साल 2010 में उन्हें मरणोपरांत फ़िल्म फेयर लाइफ टाइम अचीवमेंट का खिताब दिया गया था। फ़िरोज़ ख़ान कैंसर से पीड़ित थे और मुंबई में उनका लंबे समय तक इलाज चला। 27 अप्रैल, 2009 को उन्होंने बेंगलूर स्थित अपने फार्म हाउस में अंतिम सांस ली।


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