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पुण्यतिथि पर याद आये विनोद खन्ना, जानिये उनसे जुड़ी कुछ ख़ास बातें

विनोद खन्ना अभिनेता होने के अलावा फ़िल्म निर्माता और सक्रिय राजनेता भी रहे हैं। वे भाजपा के सदस्य थे और कई चुनाव जीत चुके थे। वे मंत्री भी रहे।

By Hirendra JEdited By: Published: Fri, 27 Apr 2018 08:45 AM (IST)Updated: Sat, 27 Apr 2019 09:54 AM (IST)
पुण्यतिथि पर याद आये विनोद खन्ना, जानिये उनसे जुड़ी कुछ ख़ास बातें
पुण्यतिथि पर याद आये विनोद खन्ना, जानिये उनसे जुड़ी कुछ ख़ास बातें

मुंबई। आज विनोद खन्ना की पुण्यतिथि है! Vinod Khanna Death Anniversary 27 अप्रैल 2017 को ही उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा था। 70 वर्षीय खन्ना कैंसर से पीड़ित थे। गुरुदासपुर से लोकसभा के सांसद रहे अभिनेता विनोद खन्ना के बारे में आइये जानते हैं कुछ ख़ास बातें।

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विनोद खन्ना का जन्म 6 अक्टूबर 1946 पेशावर (पाकिस्तान) में हुआ। वहां उनके पिता का टेक्सटाइल, डाई और केमिकल का व्यवसाय था। विनोद खन्ना पांच भाई बहनों ( 2 भाई, 3 बहनें) में से एक हैं। आज़ादी के समय हुए देश के विभाजन के बाद उनका परिवार पाकिस्तान से मुंबई आकर बस गया। विनोद खन्ना के पिता नहीं चाहते थे कि उनका बेटा फ़िल्मों में जाए। लेकिन, बेटे की ज़िद पर उन्होंने दो साल का समय विनोद को दिया। उन्होंने इन दो वर्षों में कड़ी मेहनत की और बतौर अभिनेता खुद को स्थापित कर लिया!

विनोद खन्ना को सुनील दत्त ने 'मन का मीत' (1968) में विलेन के रूप में लॉन्च किया। हीरो के रूप में स्थापित होने के पहले विनोद ने 'आन मिलो सजना', 'पूरब और पश्चिम', 'सच्चा झूठा' जैसी फ़िल्मों में सहायक अभिनेता या खलनायक के रूप में काम किया। गुलजार द्वारा निर्देशित 'मेरे अपने' (1971) से विनोद खन्ना को काफी चर्चा मिली और एक तरह से उनका समय शुरू हो गया। मल्टीस्टारर फ़िल्मों से विनोद को कभी परहेज नहीं रहा और वे उस दौर के स्टार्स अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना, सुनील दत्त आदि के साथ लगातार फ़िल्में करते रहे। अमिताभ बच्चन और विनोद खन्ना की जोड़ी को दर्शकों ने काफी पसंद किया। 'हेराफेरी', 'खून पसीना', 'अमर अकबर एंथनी', 'मुकद्दर का सिकंदर' जैसी फ़िल्में ब्लॉकबस्टर साबित हुईं।

कामयाबी मिलने के बाद 1982 में विनोद खन्ना का फ़िल्मों से मोहभंग हो गया और वो अचानक अपने आध्यात्मिक गुरु रजनीश (ओशो) की शरण में चले गए और ग्लैमर की दुनिया को उन्होंने अलविदा कह दिया। विनोद के अचानक इस तरह से चले जाने के कारण उनकी पत्नी गीतांजली नाराज़ हुई और दोनों के बीच तलाक हो गया। विनोद और गीतांजली के दो बेटे अक्षय और राहुल खन्ना हैं।

1990 में विनोद ने कविता से शादी की। कविता और विनोद का एक बेटा साक्षी और बेटी श्रद्धा है। एक ब्रेक के बाद विनोद फिर अपने कुछ दोस्तों के कहने पर फ़िल्मों से जुड़े और 1987 में उन्होंने 'इंसाफ' फ़िल्म से वापसी की। चार-पांच साल तक नायक बनने के बाद विनोद अब तक धीरे-धीरे चरित्र भूमिकाओं की ओर मुड़ने लगे थे!

विनोद खन्ना अभिनेता होने के अलावा, फ़िल्म निर्माता और सक्रिय राजनेता भी रहे हैं। वे भारतीय जनता पार्टी के सदस्य थे और कई चुनाव जीत चुके थे। वे मंत्री भी रहे। 2015 में शाह रुख़ ख़ान की फ़िल्म दिलवाले’ में नज़र आने के बाद उन्होंने पिछले साल ही रिलीज़ हुई फ़िल्म 'एक थी रानी ऐसी भी' में भी अभिनय किया था। यह उनकी आखिरी फ़िल्म थी, जो राजमाता विजय राजे सिंधिया पर बनी थी जिसे गोवा की राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने लिखा था! 1999 में विनोद खन्ना को उनके इंडस्ट्री में योगदान के लिए फ़िल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से नवाज़ा गया था। साल 2018 में उन्हें दादा साहब फाल्के अवॉर्ड के लिए चुना गया। यह सिनेमा के क्षेत्र में दिया जाने वाला सबसे बड़ा अवॉर्ड है। विनोद खन्ना को यह सम्मान मरणोपरांत दिया गया।


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