एक्टर होने के साथ डायरेक्शन में भी कमाल दिखा रहे Prithviraj Sukumaran, बोले- 'मैं सख्त निर्देशक हूं'
हिंदी के साथ दक्षिण भारतीय फिल्मों में संतुलन साध कर चल रहे अभिनेता पृथ्वीराज सुकुमारन। साल 2019 में प्रदर्शित हुई मलयालम फिल्म ‘लूसिफर’ से उन्होंने निर्देशन की दुनिया में कदम रखा था। अब इसकी सीक्वल ’एल 2 एंपुरान’ अगले महीने सिनेमाघरों में प्रदर्शित होगी। हाल ही में अभिनेता इस फिल्म में के बारे में जागरण से खास बात की थी।

एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। पृथ्वीराज सुकुमारन आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। अभिनेता ने अपने करियर में कई शानदार फिल्मों में काम किय है जो आज भी ऑडियंस के बीच लोकप्रीय हैं। एक सफल अभिनेता होने के साथ वो एक बेहतरीन निर्देशक भी हैं जो। हाल ही में अभिनेता ने जागरण संवाददाता स्मिता श्रीवास्तव के साथ बातचीत में बतौर निर्देशक अपनी फिल्म लूसिफर के बारे में बात की। उन्होंने बताया कि इस फिल्म को बनाने के पीछे क्या वजह रही और इसे कैसे पूरा किया गया।
निर्देशन में आने का सपना था या संयोग से आना हुआ?
करियर के एक मुकाम पर मेरी योजना फिल्म निर्देशन करने की थी। ‘लूसिफर’ का निर्देशन करना एक्सीडेंटल था। हुआ यूं कि मैं और मेरे लेखक मुरली, जो कि प्रख्यात कलाकार भी हैं, हम दोनों साल 2016 में एक फिल्म में साथ काम कर रहे थे। वह मोहनलाल के साथ काम करना चाहते थे। उनके पास फिल्म का आइडिया था। उन्होंने कहा कि कोई निर्देशक खोजो। मोहनलाल सर को भी रोल पसंद आया।
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तब मैंने निर्देशक बनने का फैसला किया। जब ‘लूसिफर’ बन गई तो मेरा इरादा सिर्फ एक ही फिल्म निर्देशित करने का था। यह फिल्म बनाने की प्रक्रिया में मुझे काफी आनंद आया। फिल्म सफल भी रही। मैंने ‘एल 2: एंपुरान’ को अपनी दूसरी फिल्म बनाना तय किया था। उसी दौरान महामारी फैली। सब कुछ बंद हो गया था। हम सब घर पर थे तब ‘ब्रो डैडी’ का आइडिया आया। किसी ने उम्मीद नहीं की थी कि बतौर निर्देशक मैं यह फिल्म बना सकता हूं। अब ‘लूसिफर’ की अगली किश्त आ रही है।
‘एल 2: एंपुरान’ को पैन इंडिया स्तर पर प्रदर्शित कर रहे हैं?
साल 2019 में जब ‘लूसिफर’ आई तो हम उसे पूरे देश में अलग-अलग भाषाओं में प्रदर्शित नहीं कर पाए थे। ‘एल 2: एंपुरान’ को लेकर हम आश्वस्त थे कि इसे अलग-अलग भाषाओं में देशभर में प्रदर्शित करना है। अगर किसी ने ‘लूसिफर’ नहीं देखी है तो भी इसके अगले भाग को समझने में कोई समस्या नहीं आएगी। ‘एल 2 : एंपुरान’ को हमने भव्य स्तर पर बनाया है। हम शुरुआत से ही स्पष्ट थे कि इसका हिंदी वर्जन आना है। इस फिल्म की करीब 30 प्रतिशत शूटिंग हिंदी में ही की गई है। मलयालम, तमिल और तेलुगु सभी भाषाओं में भी हिंदी भाषा में शूट किए गए हिस्से को वैसे ही रखा गया है। इसमें मेरा किरदार तो पूरी तरह से हिंदी ही बोलता है।
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‘लूसिफर’ तो आनलाइन उपलब्ध भी है?
जब ‘लूसिफर’ आई तो शुरुआत में हमने सभी भाषाओं में इसके स्ट्रीमिंग अधिकार बेच दिए थे। फिर एक बड़े स्टूडियो ने इस फिल्म का हिंदी रीमेक बनाने के लिए हमसे संपर्क किया। दुर्भाग्य से उस समय मैंने बतौर कलाकार फिल्म ‘द गोट लाइफ’ आरंभ कर दी थी। मैंने स्टूडियो से कहा कि मैं इस प्रोजेक्ट को सुपरवाइज करूंगा, लेकिन निर्देशन नहीं कर पाऊंगा क्योंकि मैं दूसरी फिल्म में काम कर रहा हूं। तब स्टूडियो ने इसमें रुचि नहीं दिखाई। इस प्रक्रिया में ‘लूसिफर’ के हिंदी वर्जन के डिजिटल राइट हमने रोक लिए थे। हम नहीं चाहते थे कि फिल्म का रीमेक बना रहे हैं तो इसका हिंदी डब बाहर आए। जब फिल्म बनाने का आइडिया स्थगित हुआ तो इसके हिंदी अधिकार भी बेच दिए गए।
कहीं न कहीं रीमेक फिल्मों का चार्म अब कम हो रहा है?
बिल्कुल। अब बहुत सारे प्लेटफार्म हैं जहां मूल फिल्मों को आसानी से देख सकते हैं। आपके पास बहुत सारे विकल्प हैं। अब कंटेंट कहीं भी बने, उसे दुनिया में कहीं भी देखा जा सकता है। यही वजह है कि रीमेक फिल्में अब कम लोकप्रिय हो रही हैं। एक चीज जो चलेगी वो यह कि आप उस कहानी को अडाप्ट करिए। अगर कोई बेहतरीन फिल्म बनी है तो आप उसे अपने तरीके से बना सकते हैं।
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मोहनलाल- 'बहुत निर्दयी निर्देशक हैं'
(ठहाका मारते हैं) मुझे पता है कि यह बात उन्होंने मजाक में कही होगी। मैं अपनी फिल्में दिमाग में बहुत स्पष्ट रखता हूं। मैं कलाकार हूं तो मुझे पता है कि फलां पात्र स्क्रीन पर कैसे नजर आएगा। मुझे नहीं पता यह कितना अच्छा या बुरा है, लेकिन मैं चाहता हूं कि कलाकार उस प्रक्रिया में आए, जो मैंने बनाई है। कई बार कलाकार मुझे सरप्राइज भी करते हैं। ज्यादातर मोहनलाल मुझे अचंभित करते हैं। फिल्म में बहुत सारे शाट्स हैं, जहां कट बोलने के बाद मैं सोचता था कि यह तो मैंने करने को कहा भी नहीं था, लेकिन यह शानदार था।
‘लूसिफर’ को ट्रायोलाजी के तौर पर बनाने की तैयारी
साल 2016 में जब हम स्टोरी पर काम कर रहे थे तो आइडिया था कि यह कहानी तीन पार्ट में बन सकती है। पर उस समय यह चलन इतना लोकप्रिय नहीं था तो हमने भी चुप्पी साध रखी थी। अगर पहली ही फिल्म नहीं चली तो कैसे कह सकते हैं कि अगला भाग आएगा। हमने इंतजार किया। ‘लूसिफर’ की कहानी अपने आप में भी मुकम्मल रही। पार्ट 2 इस तरह से है कि आप जान सकेंगे कि इसका अगला पार्ट भी आएगा।
आपके लिए सबसे सख्त निर्देशक कौन रहे हैं?
मुझे कोई निर्देशक ऐसा नहीं लगा। हां, जब मैं शूट करता हूं तो थोड़ा सख्त हो जाता हूं। मैं ज्यादातर वास्तविक लोकेशन पर शूट करता हूं। मेरे एक्शन सीन या स्टंट वास्तविक होते हैं। मैं ग्राफिक्स बहुत कम इस्तेमाल करता हूं। तो इस मामले में मुझे सख्त कह सकते हैं।
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