खुद को 'सेल्फ मेड बताते थे Amrish Puri , घातक के इस सीन से नाराज फैंस ने किया था डैनी के घर के आगे बवाल
एक खलनायक के तौर पर इंडस्ट्री में अपनी पहचान बना चुके अमरीश पुरी आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है। 22 जून, 1932 को पंजाब के एक शहर में उनका जन्म हुआ। ...और पढ़ें
-1750518002991.webp)
अमरीश पुरी को बॉलीवुड का पॉपुलर विलेन माना जाता था (फोटो-इंस्टाग्राम)
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। कभी खतरनाक खलनायक तो कभी सख्त, लेकिन बेटी की खुशी में खुश होने वाले पिता... तमाम किरदार आए और हर किरदार में बड़ी खूबसूरती से ढलते गए अमरीश पुरी (Amrish Puri)। तीन दशक से ज्यादा लंबे करियर में उन्होंने विविध भूमिकाएं निभाईं। 22 जून, 1932 को पंजाब में जन्मे अमरीश पुरी की जन्मतिथि पर उनसे जुड़ी यादों को ताजा कर रहे हैं उनके पोते और अभिनेता वर्धन पुरी...
पोते को बर्थडे पर दिया था सरप्राइज
मेरे दादू मेरे पसंदीदा एक्टर तो हैं ही, उनके जैसा इंसान मैंने दुनिया में नहीं देखा। उनका अनुशासन और समय की पाबंदी बहुत प्रेरणादायक है। मुझे याद है कि कई बार वह रात में दो-ढाई बजे शूटिंग से घर आते थे, फिर भी सुबह साढ़े पांच बजे उठ जाते थे और कोई थकान जाहिर नहीं करते थे। काम को लेकर जबरदस्त जज्बा था। काम के साथ परिवार को समय देने का भी ध्यान रखते थे। घर से जब निकलते थे तो अपने संवादों को याद करते हुए जाते थे। वो मेरे बेस्ट फ्रेंड भी थे। एक बार मड आइलैंड में मेरा जन्मदिन सेलिब्रेट हो रहा था। मेरी चाहत थी कि दादू उस पार्टी में आएं। उस समय वह लंदन में शूट कर रहे थे। उन्होंने मेरी इस चाहत को पूरा किया था। वह लंदन से खास मेरी पार्टी के लिए आए और मुझे सरप्राइज दिया। वो जन्मदिन मैं कभी नहीं भूल सकता।
-1750518632072.jpg)
यह भी पढ़ें: सल्तनत फिल्म में 99 शब्दों का था अमरीश पुरी का नाम, पढ़ने में कम पडे़गा वर्णमाला का ज्ञान
खुद को सेल्फमेड कहते थे अमरीश पुरी
वो अपने काम की प्लानिंग खुद करते थे। उनका कोई सेक्रेटरी नहीं था। वह कहते थे कि मैं सेल्फमेड हूं। उन्होंने अपने संघर्ष की कहानी भी साझा की थी। उन्होंने बताया कि वह हीरो बनने के लिए बड़े सपने लेकर पंजाब से मुंबई आए थे। तब किसी ने उनसे कहा कि आप इस दफ्तर में आए तो हम डर गए क्योंकि आप काफी खौफनाक लगते हो। दादू को यह सुनकर बड़ा झटका लगा। फिर एक दिन उन्होंने तय किया कि जिस चीज को यह मेरी कमजोरी बता रहे हैं, मैं इसे अपनी ताकत बना लूंगा। अगर यह कह रहे हैं कि मेरा चेहरा डरावना है तो मैं उसका फायदा लूंगा। मैं लोगों को इतना डराऊंगा कि वो मुझसे प्यार करने लगें। वही हुआ भी।
कोई और नहीं कर सकता था मोगैंबो का रोल
यूं तो उन्होंने कई यादगार पात्र निभाए हैं, लेकिन ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ (डीडीएलजे) में उन्हें अपने किरदार के लिए मेरे परदादा से प्रेरणा मिली थी। उनके जैसी ही चाल-ढाल और पोशाक को उन्होंने इस फिल्म में अपनाया था। यहां तक कि बच्चों के साथ व्यवहार भी उनकी तरह ही रखा था। यह बात फिल्म निर्देशक आदित्य चोपड़ा को भी पसंद आई थी। इसी तरह ‘मिस्टर इंडिया’ में उनके यादगार पात्र मोगैंबो के लिए फिल्म के लेखक जावेद अख्तर और निर्देशक शेखर कपूर का मानना था कि यह रोल उनके अलावा कोई और निभा नहीं सकता था।
-1750518649745.jpg)
घातक के इस सीन के बाद नाराज थे फैंस
एक मजेदार किस्सा है। फिल्म ‘घातक’ के एक दृश्य में डैनी के पात्र ने पट्टा डालकर उन्हें कुत्ता बनाया था। मेरे पिता राजीव पुरी बताते हैं उस सीन के बाद प्रशंसक इतने नाराज हो गए थे कि डैनी के घर के बाहर इकठ्ठा हो गए और कहने लगे कि आपने अमरीश के साथ ऐसा कैसे कर दिया। डैनी साहब का घर हमारे घर के नजदीक ही है। तब दादू को जाकर लोगों को बताना पड़ा कि वो अपना रोल निभा रहे थे। आप असल जिंदगी और सिनेमा की जिंदगी को न जोड़ें। तब लोग शांत हुए।
फिल्म ‘चाची 420’ भी उनकी शानदार फिल्मों में एक है। उसकी कहानी सुनाने कमल हासन साहब घर आए थे। दादू को कहानी बहुत पसंद आई थी। तब कमल हासन ने कहा था कि अमरीश जी सबने आपका खल रूप देखा है, मैं आपका अनदेखा हृयूमर वाला हिस्सा दिखाना चाहता हूं। उस फिल्म का उन्होंने काफी लुत्फ लिया था। स्क्रिप्ट इतनी मजेदार थी कि कई बार शाट के बीच में ही सब हंसने लगते थे।
सहेज रखी है हर याद
दादू अपने किरदार की तैयारी को लेकर नोट्स बनाते थे। इसके अलावा वे अपने पसंदीदा फाउंटेन पेन से डायरी भी लिखते थे। उस पेन और उनकी सारी डायरीज को भी हमने संभालकर रखा है। खास बात यह है कि वह सब कुछ उर्दू में लिखते थे। उन्हें शेरो-शायरी का भी शौक था। उर्दू की किताबें पढ़ते थे। इसके अलावा वे हैट, घड़ियों, अच्छे सूट के काफी शौकीन थे। उनकी करीब 500 टोपियां हमारे पास होंगी। हमने एक अलग घर में उनकी हैट और बाकी सामान रखा है। उनका ‘मिस्टर इंडिया’ में मोगैंबो का कास्ट्यूम, ‘डीडीएलजे’, ‘नायक’, ‘कोयला’, ‘दामिनी’, ‘मेरी जंग’ समेत कई फिल्मों के कास्ट्यूम को हमने उसी घर में संभालकर रखा है। वह इन चीजों को लग्जरी मानते थे, उनकी असली मोहब्बत अभिनय और स्टेज था। उनकी एक खूबी यह भी थी कि वो कभी पीछे मुड़कर नहीं देखते थे, हमेशा आगे देखते थे। वह भले ही सशरीर मौजूद नहीं है, लेकिन मेरे दिल में आज भी हैं।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।