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    75 साल पहले रिलीज हुई इस हॉरर फिल्म का नहीं है कोई तोड़, एक-एक सीन कर देगा रोंगटे खड़े

    Updated: Mon, 13 Oct 2025 07:24 PM (IST)

    बॉलीवुड में कई हॉरर फिल्में बनाई जा चुकी हैं लेकिन स्वतंत्र भारत के बाद बॉलीवुड की पहली हॉरर फिल्म आज भी इन सब पर भारी पड़ती है। फिल्म के साथ ही इसके पर्दे के पीछे की कहानी भी काफी दिलचस्प है क्योंकि यह रियल लाइफ हादसे से प्रेरित थी जो अशोक कुमार से जुड़ा था।

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    अनंत विजय, मुंबई। रामसे ब्रदर्स को भले ही हारर फिल्मों का शहंशाह कहा जाता हो, लेकिन असली हारर तो 13 अक्टूबर, 1949 को आई फिल्म ‘महल’ में दिखा था, जिसने दर्शकों के दिलों को दहलाया। खास बात ये है कि स्वतंत्र भारत की इस पहली हारर फिल्म की कहानी वास्तविक घटनाओं पर आधारित थी।

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    75 साल पहले रिलीज हुई थी फिल्म

    देश को स्वाधीन हुए एक वर्ष होने को था। स्वाधीनता पूर्व हिमांशु राय और देविका रानी ने जिस बांबेटाकीज की स्थापना की थी, उसको चलाने का दायित्व अशोक कुमार ने संभाल लिया था। अशोक कुमार को भूतों और पुनर्जन्म में विश्वास था। वो काफी समय से भूत को केंद्रीय थीम लेकर फिल्म बनाना चाहते थे। 1948 के मध्य की बात होगी। एक दिन बांबेटाकीज के कुछ कर्मचारी अशोक कुमार के पास पहुंचे और बताया कि परिसर में उन्होंने हिमांशु राय के भूत को देखा है। इसको सुनकर अशोक कुमार की भूत केंद्रित फिल्म बनाने की इच्छा और बलवती हो गई। 

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    अशोक कुमार के साथ रियल लाइफ में हुए ये घटना

    उसी साल उनके साथ एक और घटना घटी। वे बांबे के पास भूत बंगला के नाम से मशहूर एक घर में कुछ समय बिताने गए। एक रात जब वो सोने जा रहे थे तो दरवाजे पर एक महिला ने दस्तक दी। उसने अपनी गाड़ी खराब होने की बात कहकर मदद मांगी। गाड़ी ठीक नहीं की जा सकी। वो गाड़ी वहीं छोड़कर चली गई। देर रात शोर-शराबे से अशोक कुमार की नींद खुली। उन्होंने देखा कि वही गाड़ी उनके घर के बाहर खड़ी है। उसमें एक व्यक्ति की लाश पड़ी है। 

    सुबह अशोक कुमार ने अपने नौकर से रात की घटना के बारे में पूछा। नौकर ने उनको बताया कि रात में तो ऐसा कुछ घटा ही नहीं, आप तो आराम से सो रहे थे, वो सपना होगा। घर के बाहर कोई गाड़ी नहीं थी। परेशान अशोक कुमार स्थानीय थाने पहुंचे थे। पुलिसवाले ने पूरी बात सुनने के बाद बताया कि 14 साल पहले इस तरह की एक वारदात वहां हुई थी। एक महिला हत्या करने के बाद लाश गाड़ी में छोड़कर भाग गई थी। भागते वक्त दुर्घटना हुई और उसकी मौत हो गई। अशोक कुमार ने ये किस्सा कमाल अमरोही को बताया। कमाल अमरोही ने इसके आधार पर फिल्मी प्रेम कहानी गढ़ी और इस तरह हॉरर फिल्म महल के बनने की शुरुआत हुई।

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    महल 13 अक्टूबर, 1949 को थिएटर्स में रिलीज हुई। दर्शकों ने इस फिल्म को खूब पसंद किया। फिल्म की सफलता ने मधुबाला को टॉप अभिनेत्री बना दिया। लता मंगेशकर का गाया गीत, ‘आएगा आने वाला’ बेहद लोकप्रिय हुआ और आज 75 सास बाद भी आएगा आएगासॉन्ग लोगों की जुबान पर चढ़ा रहता है।

    बार-बार रिकॉर्ड करना पड़ा ये गाना

    इस गाने की रिकॉर्डिंग इतनी आसान नहीं थी, लता मंगेशकर बार-बार माइक पर गातीं। खेमचंद संतुष्ट नहीं हो रहे थे। वो गीत के आरंभिक भाग को दूर से आई आवाज जैसा रिकार्ड करना चाह रहे थे। तभी उनके दिमाग में आइडिया आया। उन्होंने लता को माइक से दूर जाने को कहा और गाते हुए माइक तक आने को कहा। वो चाहते थे कि गीत की पंक्ति, ‘खामोश है जमाना, चुपचाप हैं नजारे’ दूर से आती हुई लगे और जैसे ही गायिका ‘आएगा आएगा आने वाला’ तक पहुंचे तो वोमाइक की समान्य आवाज लगे। लता को माइक से दूर जाकर गाते हुए इस तरह माइक तक आना पड़ता था कि ‘आएगा आएगामाइक पर गा सकें।

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    फिल्म में मधुबाला का चरित्र ऐसा गढ़ा गया, जिसकी मासूम आंखों से मोहब्बत टपकती थी। चेहरे पर भोलापन और प्यार की चमक लिए अभिनेत्री जब पर्दे पर आती तो नायक के साथ दर्शक उसके आकर्षण में बंध जाते। मधुबाला की उम्र भले ही उस समय 16 वर्ष के आस-पास थी, लेकिन वो एक दर्जन से अधिक फिल्मों में काम कर चुकी थीं। अभिनय की बारीकियां उनको

    पता थीं। इस फिल्म में उनके संवाद अपेक्षाकृत कम हैं। उनकी उपस्थिति और आंखों से बहुत कुछ कह जाना प्रभाव छोड़ता है। कमाल अमरोही ने भले ही किस्से का दुखांत रचा, लेकिन जिस तरह के डायलॉग फिल्म के आखिरी सीन में अशोक कुमार और उनके दोस्त के बीच हैं- वो प्यार की एनर्जी से भरपूर हैं। 

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