रणबीर कपूर की Ramayana की पर आदिपुरुष डायरेक्टर ने किया कमेंट, बोले- 'हर काम कठिन है'
आदिपुरुष डायरेक्टर ओम राउत ने हाल ही में ओटीटी पर आई मनोज बाजपेयी की फिल्म इंस्पेक्टर झेंडे के जरिए बतौर निर्माता शानदार वापसी की है। इस बीच दैनिक जागरण से खास बातचीत में ओम ने नितेश तिवारी की रामाणयम् को लेकर जिक्र किया है और अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त दी है।

एंटरटेनेंट डेस्क, मुंबई। ‘इंस्पेक्टर झेंडे’ से डिजिटल प्लेटफार्म पर उतरे फिल्मकार ओम राउत अब फिल्म ‘कलाम- द मिसाइल मैन ऑफ इंडिया’ से निर्देशन की कमान संभालने की तैयारी में हैं। उन्होंने प्रियंका सिंह के साथ जागरण के मंच पर अपने विचार साझा किए हैं।
क्या बतौर निर्माता डिजिटल प्लेटफार्म ज्यादा सुरक्षित जगह लगी?
बतौर निर्माता इच्छा होती है कि हमारा काम विश्व तक पहुंचे। पहली बार डिजिटल के लिए काम किया। संतुष्टि है कि मुंबई पुलिस के जाबांज इंस्पेक्टर झेंडे की कामयाबी विश्व तक पहुंच रही है। इंस्पेक्टर मधुकर झेंडे पर फिल्म बनाने को लेकर मेरे पिता जी ने इच्छा जताई थी। वह पत्रकार रहे हैं, तो उन्होंने कई कहानियां बताई थीं।
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फिल्म ‘कलाम’ से आप निर्देशन में तीन साल बाद वापसी कर रहे हैं। आप अक्सर अपनी फिल्मों का लेखन करते हैं, इसका नहीं किया?
मैंने कालेज में ए.पी.जे. अब्दुल कलाम साहब की किताब ‘विंग्स आफ फायर’ पढ़ी थी। उस किताब में लिखी बातों ने मेरी जिंदगी को नया आकार दिया। इस फिल्म की कहानी साइविन क्वाड्रास लिख रहे हैं, जिन्होंने ‘नीरजा’, ‘परमाणु: द स्टोरी आफ पोखरण’ लिखी है, लेकिन हम साथ में सीन पर चर्चा करते हैं। साइविन अच्छे लेखक हैं, उनका अलग नजरिया है।
आपने कहा था कि सलमान खान और प्रभास फ्लाप प्रूफ हैं। ‘कलाम’ फिल्म में धनुष हैं। क्या यही कारण है कि आप केवल स्टार्स के साथ फिल्में बनाते हैं?
मैं जो कहानियां कहना चाहता हूं, उसमें पैसे अधिक लगते हैं। जब तक बड़े एक्टर नहीं जुड़ते, तब तक निर्माता पैसे नहीं लगाते हैं। अगर उन्हें नहीं लूंगा, तो कहानियां कैसे बताऊंगा। बड़े स्टार की अपनी फैन फालोइंग होती है। स्टार सिस्टम तो 100 साल से चल रहा है, विदेश में भी है।
आपकी कहानियां अच्छी हो सकती हैं, आप अच्छे निर्देशक हो सकते हैं, लेकिन यह सच है कि जब तक आपके पास अच्छा एक्टर नहीं है, तब तक आपके पास फिल्म नहीं है। मुझे अपनी कहानियां कहने के लिए बड़े कलाकार चाहिए।
आप ‘आदिपुरुष’ फिल्म की बात ज्यादा नहीं करते कि तीन साल पुरानी बात है, लेकिन वह आपकी फिल्मोग्राफी का हिस्सा तो है ही। उस फिल्म ने काफी कुछ सिखाया, ताकि आगे बेहतर करें?
शत प्रतिशत। सफलता सिखाती है, लेकिन असफलता ज्यादा सिखाती है। अगर आप में असफलता का कारण समझकर उससे बाहर निकलने की क्षमता है, तो उससे अच्छा सबक कुछ नहीं। सफलता आपको बड़े दरवाजे खटखटाने का मौका देती है।
अगर आप सफल हैं, तो सामने वाला तेजी से जवाब देता है, नहीं तो समय लगता है। जब तक कलम चल रही है, तब तक अच्छा काम कर रहे हैं। अगर असफलता की वजह से अगले दिन काम करने की ऊर्जा नहीं हुई, तो आपकी कहानी खत्म है। सफल हों या असफल, जो कर रहे हैं, वह करते रहें। काम करना अपने हाथ में हैं, उसका परिणाम नहीं।
नितेश तिवारी की ‘रामायणम्’ भी आ रही है। आपने उसका टीजर देखा?
हां, मुझे बहुत अच्छा लगा। दूसरों का नहीं पता कि उन्होंने क्या कहा। मुझे तो वह टीजर सकारात्मक ही लगा।
आपने भी इतिहास को ‘आदिपुरुष’ में छुआ था। क्या आपको लगता है कि इतिहास पर फिल्में बनाना कठिन है?
‘रामायणम्’ पर भी लोगों की बारीकी से नजर होगी। हर काम कठिन है। फिक्शन बनाना भी उतना ही कठिन, जितना इतिहास दिखाना। आप सफलता की केवल कामना कर सकते हैं। ‘रामायणम्’ में मेरे कई मित्र कलाकार हैं, निर्देशक मेरे दोस्त हैं। यह फिल्म ग्लोबली हिट होनी चाहिए।
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