पहली फिल्म सिल्वर जुबली, फिर भी साल भर नहीं मिला काम, मुंबई का कांचवाला सेठ कैसे बना शायराना विलेन
80 और 90 के दशक में कई ऐसे एक्टर्स आए जिनके नाम शायद हमें न याद हों लेकिन उन्होंने अपने किरदारों से फैंस के मन में एक अलग जगह बनाई है। ऐसे ही एक मशहूर एक्टर हैं इशरत अली जिन्होंने आमिर खान से लेकर रजनीकांत जैसे सितारों के सामने अपने अभिनय को लोहा मनवाया। कैसे ये आम आदमी बना बॉलीवुड का शायराना विलेन यहां पर पढ़ें उनकी दिलचस्प कहानी।
एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। हिंदी फिल्म सिनेमा में कई ऐसे एक्टर्स आए, जिन्होंने अपने काम के बलबूते पर अपनी पहचान तो बनाई, लेकिन वह अमिताभ बच्चन और रजनीकांत जैसा नाम नहीं बना सके। उनका चेहरा जब भी कोई देखता तो हमेशा जुबान से यही निकलता कि इन्हें मैंने फिल्मों में इस तरह का किरदार निभाते देखा है, लेकिन उनका नाम पूछ लो तो शायद इक्का-दुक्का को पता हो।
ऐसे ही एक एक्टर 80-90 के दशक में इंडस्ट्री में आए थे, जिन्हें में काम करने की कोई चाह नहीं थी, लेकिन उनकी तकदीर उन्हें फिल्मों खींच ले ही आई। उस अभिनेता का नाम था इशरत अली, जिन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में रजनीकांत से लेकर सनी देओल और आमिर खान जैसे कई सितारों के साथ काम किया और खूब वाहवाही लूटी। इशरत अली को बॉलीवुड का शायरना विलेन माना जाता है। जिनकी पहली ही फिल्म हुई ब्लॉकबस्टर, उन्हें इंडस्ट्री को क्यों कहना पड़ा अलविदा और क्यों उन्हें कहते हैं शायराना विलेन, पढ़ें उनकी जिंदगी की ये बेहद दिलचस्प कहानी हमारे इस आर्टिकल में:
1953 में मुंबई में पैदा हुए इशरत अली
अभिनेता इशरत अली का जन्म मुंबई में हुआ। उनके पिता अफताब हुसैन अली की ऑटोमोबाइल की दुकान थी। अभिनेता के दो भाई और तीन बहनें हैं, जिनमें वह सबसे बड़े थे। इशरत अली ने महज 9वीं क्लास तक पढ़ाई की और उसके बाद उन्होंने मुंबई में ही एक ऑटोमोबाइल कंपनी में आठ साल तक नौकरी की।
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अभिनेता की जिंदगी में मुसीबत के बादल तब घिरे जब उनके पिता का इंतकाल हो गया और घर में बड़ा होने के नाते उनके कंधों पर सारी जिम्मेदारी आ गई। जब उनके सिर से पिता का साया उठा तब वह खुद भी छोटे थे, ऐसे में अकेले घर चलाना उनके लिए काफी मुश्किल हो रहा था। उन्हें मजबूरन पिता की ऑटोमोबाइल की दुकान बेचनी पड़ी।
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चाचा से 1978 में लिया था इतने हजार का लोन
तबस्सुम टॉकीज की रिपोर्ट के मुताबिक, इशरत अली के घर की माली हालत जब बहुत ही खराब हो गई, तो उन्होंने अपने चाचा से 1978 में चार हजार का लोन लिया और खुद की टफन ग्लास की दुकान मुंबई के ठाणे एरिया में शुरू की। उस एरिया में उनकी ऐसी पहचान बनी की लोगो ने उन्हें 'कांच सेठ' बुलाना शुरू कर दिया।
उस दौरान ही उनकी मुलाकात एक नाटक कंपनी वालों से हुई, जो उस एरिया में उस समय अपने प्ले के लिए ऑडीटोरियम ढूंढ रहे थे, लेकिन उन्हें नहीं मिल रहा था। उसमें से एक शख्स ने इशरत से गुजारिश करते हुए कहा कि वह उन्हें ऑडीटोरियम दिला दें। अपनी पहचान से अभिनेता ने नाटक कंपनी वालों को उनका प्ले करने के लिए ऑडीटोरियम दिला दिया।
जेस्चर के तौर पर नाटक के मेकर ने उन्हें एक रोल ऑफर किया, जिसे करने से पहले तो उन्होंने इनकार किया, लेकिन बाद में वह अपने आसपास के लोगों के कहने पर मान गए और यहां से उनका एक्टिंग का सफर शुरू हुआ।
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पहली ही फिल्म ने रचा था इतिहास
ऐसे ही एक नाटक के दौरान उन्हें निर्देशक और राइटर दिलीप शंकर शिशुपाल ने देखा, उन्हें अभिनेता की एक्टिंग इतनी ज्यादा पसंद आई कि उन्होंने अपनी फिल्म में उन्हें एक रोल ऑफर कर दिया। 1988 में इशरत अली ने अपने करियर की पहली फिल्म 'कालचक्र' में काम किया। ये फिल्म सिर्फ हिट ही नहीं हुई,बल्कि इसने सिल्वर जुबली भी मनाई। हालांकि, मूवी सुपरहिट होने के एक साल तक उन्हें छोटे-मोटे रोल ही ऑफर हुए, जो उन्होंने करने से साफ इनकार कर दिया।
दो साल के इंतजार के बाद आमिर खान के पिता ताहिर हुसैन ने उन्हें अपनी फिल्म 'तुम मेरे हो' में कास्ट किया। ये फिल्म 1990 में आई, जिसमें आमिर खान और जूही चावला मुख्य भूमिका में थे। मूवी में इशरत ने उनके पिता का किरदार निभाया। फिल्म फ्लॉप हुई, लेकिन इशरत अली के करियर की गाड़ी दौड़ पड़ी।
क्यों उन्हें कहा जाता था शायराना विलेन?
अपने लंबे फिल्मी करियर में अलग-अलग किरदार निभाने वाले इशरत अली ने कई फिल्मों में विलेन की भूमिका भी अदा की। वह स्क्रीन पर कॉमेडी विलेन का किरदार भी अदा कर चुके हैं। उन्हें स्क्रीन का शायराना विलेन इसलिए कहा जाता था, क्योंकि वह पर्दे पर जब भी विलेन के डायलॉग बोलते थे, उसे बहुत ही कविता वाले अंदाज में और स्पष्ट शायरना अंदाज में बोलते थे।
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कई सुपरहिट फिल्में देकर 2008 में क्यों कहा अलविदा?
इस फिल्म के बाद उन्होंने कभी भी पीछे पलट के नहीं देखा और इज्जत, आ गले लग जा, आतंक ही आतंक और आन्दोलन जैसी फिल्मों में काम किया। जब राम गोपाल वर्मा ने उन्हें स्क्रीन पर देखा तो वह उनके अभिनय के कायल हो गए और अभिनेता के साथ सरकार, दरवाजा बंद करो जैसी फिल्मों में काम किया। आखिरी बार वह राम गोपाल वर्मा की ही फिल्म 'अज्ञात' में नजर आए थे। उन्होंने सनी देओल और अमीषा पटेल स्टारर फिल्म 'गदर: एक प्रेम कथा' में पाकिस्तान के काजी का किरदार भी अदा किया था।
धीरे-धीरे इंडस्ट्री में बदलाव आया और अभिनेता को उनके मन मुताबिक रोल ऑफर नहीं हो रहे थे, जिसकी वजह से उन्होंने साल 2008 में फिल्मों से दूरी बना ली।
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