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    उत्‍तराखंड चुनाव 2017: हरदा के नेतृत्‍व पर लगा सवालिया निशान

    By Gaurav KalaEdited By:
    Updated: Wed, 18 Jan 2017 07:10 AM (IST)

    उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2017 में महारथियों के उतरने से पहले कांग्रेसी सेना में मची उथल-पुथल से मुख्यमंत्री हरीश रावत के नेतृत्व पर भी सवालिया निशान लगे हैं।

    उत्‍तराखंड चुनाव 2017: हरदा के नेतृत्‍व पर लगा सवालिया निशान

    देहरादून, [केदार दत्त]: क्रिकेट की भांति सियासत भी अनिश्चितताओं के खेल से कम नहीं है, मगर ये भी सच है कि यदि संकट के बादल मंडराते हैं तो इससे कहीं न कहीं नेतृत्व पर भी सवाल उठना तय है। उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2017 में महारथियों के उतरने से पहले कांग्रेसी सेना में मची उथल-पुथल से मुख्यमंत्री हरीश रावत के नेतृत्व पर भी सवालिया निशान लगे हैं।

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    पहले सतपाल महाराज और विजय बहुगुणा जैसे क्षत्रपों ने कांग्रेस को अलविदा कहा तो अब यशपाल आर्य ने। यही नहीं, पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी की नाराजगी किसी से छिपी नहीं है। कहीं ऐसा तो नहीं कि इस सबके पीछे मुख्यमंत्री के ‘खाता न बही, हरीश रावत जो कहे वही सही’ के जुमले पर चलना मुख्य वजह रही हो।

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    1जून 2013 में आई आपदा के बाद 2014 में तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को पद छोड़ना पड़ा। एक फरवरी 2014 को हरीश रावत ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली, लेकिन इसके बाद से सरकार और संगठन दोनों में ही असंतोष के स्वर कई मर्तबा मुखर भी हुए। मार्च 2016 के सियासी भूचाल में 10 विधायकों के कांग्रेस छोड़ देने से यह साफ भी हो गया कि भीतर ही भीतर कांग्रेस में बहुत कुछ पक रहा था।

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    मुख्यमंत्री हरीश रावत पहले वरिष्ठ नेता सतपाल महाराज को समझने में कामयाब नहीं रहे तो बाद में मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवाने वाले विजय बहुगणा को। नतीजा, इन दोनों ही बड़े क्षत्रपों ने कांग्रेस से नाता तोड़ भाजपा का दामन थाम लिया। हालांकि, हरदा ने इन घटनाक्रमों को लेकर यह कहकर पिंड छुड़ाया कि ये सब निजी स्वार्थो की पूर्ति है और इनमें कहीं भी सैद्धांतिकता नहीं है।

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    यही नहीं, 10 विधायकों के पार्टी छोड़ने के बाद वे यह भी दावा करते रहे कि अब किसी प्रकार का कोई असंतोष नहीं है, लेकिन ऐन चुनाव से पहले पार्टी के एक बड़े क्षत्रप माने जाने वाले यशपाल आर्य और उनके पुत्र संजीव आर्य के भाजपा के पाले में खड़ा होने से साफ है कि हरदा पार्टी में चल रहे असंतोष को भांपने में असफल ही रहे।

    सूरतेहाल, सियासी हलकों में हरदा की नेतृत्व क्षमता पर प्रश्न उठ रहे हैं तो इसे गलत भी नहीं कहा जा सकता। सियासत के जानकारों की मानें तो सत्तासीन होने के बाद हरदा ने ऐसा जाल बुना कि पूरी कांग्रेस उनके इर्द-गिर्द ही सिमटकर रह गई।

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    सरकार और संगठन के बीच तालमेल का अभाव लगातार नजर आया। आरोप ये तक लगते रहे कि उत्तराखंड में हरदा ने कांग्रेस को जेबी संगठन बना लिया है। यह भी बड़े नेताओं की नाराजगी की बड़ी वजह बनी।

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