सपा में जारी है घमासान, मुस्लिम मतदाता परेशान
अखिलेश यादव से तकरार और असली सपा कौन के सवाल के कारण मुस्लिम मतदाता कुछ हद तक भ्रम में नजर आ रहे हैं।
गाजियाबाद [जेएनएन]। समाजवादी पार्टी में चल रही रार से मुस्लिम मतदाता परेशान हैं। उत्तर प्रदेश की राजनीति में करीब ढाई दशक से मुसलमानों की पहली पसंद मुलायम सिंह यादव बने हुए हैं। लेकिन अब हालात बदले नजर आ रहे हैं। पुत्र अखिलेश यादव से तकरार और असली सपा कौन के सवाल के कारण मुस्लिम मतदाता कुछ हद तक भ्रम में नजर आ रहे हैं।
1989 में भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से पहली बार मुख्यमंत्री बने मुलायम सिंह यादव ने दिसंबर, 1993 के चुनाव के दौरान यानि बाबरी मस्जिद के विध्वंस के साल भर के अंदर जामा मस्जिद के तत्कालीन शाही इमाम अब्दुल्ला बुखारी को ये चुनौती देकर सनसनी फैला दी थी कि इमाम साहब अपनी इमामत करें और राजनीति हमें करने दें।
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एक-एक कदम पर मुस्लिमों के हितों का ध्यान रखने वाले मुलायम पर न तो भाजपा के सहयोग से सरकार बनाने का ठप्पा लगा और न ही शाही इमाम का विरोध करने का। दिसंबर, 93 में मुस्लिमों और पिछड़ों की एकजुटता ने मुलायम फिर सत्ता में आए। इसी फार्मूले पर चलते हुए मुलायम ने 2003 में फिर सरकार बनाई। मुस्लिम मतदाताओं पर मुलायम सिंह यादव के भरोसा 2009 के उप चुनावों में देखने को मिला जब उन्होंने बाबरी मस्जिद गिरवाने वाले कल्याण सिंह तक से चुनावी दोस्ती कर ली। मुलायम पर अपने भरोसे का इजहार 2012 के विधानसभा चुनाव में यूपी के मुस्लिमों ने किया और पूरे बहुमत के साथ सपा की सरकार बनवा दी।
मुलायम सिंह यादव और मुस्लिमों के बीच क्या रिश्ते पिछले चुनाव में रहे, इसे सिर्फ इस बात से समझा जा सकता है कि 2012 में पूरे प्रदेश से जीत कर 64 मुस्लिम विधायक विधानसभा में पहुंचे और इनमें 43 सपा के थे। अपने पिता के पद चिन्हों पर चलते हुए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी मुस्लिम हितों का पूरा-पूरा ध्यान रखा। पहली केबिनेट के 47 सदस्यों में से दस मुस्लिम विधायक मंत्री बनाए गए।
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कब्रिस्तानों की चारदीवारी के निर्माण, मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में अलग से इंटर कालेज और नाली-खड़ंजे, पेयजल व बिजली आदि की सुविधा तथा नए मदरसों को अनुदान जैसे कार्य बराबर अखिलेश सरकार द्वारा किए गए। हज यात्रियों की सुविधा के लिए गाजियाबाद में हज हाउस तैयार करवा कर उसका लोकार्पण करने मोहम्मद आजम खां के साथ खुद अखिलेश यादव आए।
हालांकि मोहम्मद आजम खां बाप-बेटे के बीच सुलह कराने के लिए बराबर कोशिश में हैं मगर विवाद खत्म होता नजर नहीं आ रहा। अगर बाप-बेटे दोनों अलग-अलग उम्मीदवारों के साथ चुनावी समर में गए तो वो किसके साथ रहेंगे, ये सवाल उन्हें परेशान कर रहा है।
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उधर, मौके का फायदा उठाने के लिए बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी करीब सौ मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतार दिए हैं। 2012 में बसपा के टिकट पर 16 विधायक जीते थे। इनमें से दो, मुरादनगर से वहाब चौधरी और लोनी से जाकिर अली गाजियाबाद जनपद के ही थे।
बसपा के मुस्लिम चेहरे नसीमुद्दीन सिद्दकी के साथ-साथ उनके बेटे अफजल को भी प्रत्याशी बना दिया गया है। मायावती कोशिश में हैं कि सपा कुनबे की टूट के कारण कश म कश में चल रहे मुस्लिम मतदाताओं को विकल्प के रूप में बसपा नजर आने लगे। मायावती की ये कोशिश भी मुस्लिम मतदाताओं के भ्रम को और बढ़ा रही है।
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