Rajasthan Elections: पत्नी से 10 रुपए लेकर निकला ये नेता और और फिर बना राजस्थान का CM; पढ़ें दिलचस्प चुनावी किस्सा
हाल ही में भैरों सिंह शेखावत की 100वीं जयंती मनाई गई जिसको लेकर पीएम मोदी ने भी ट्वीट कर श्रद्धांजलि दी। भैरों सिंह शेखावत का जन्म 23 अक्टूबर 1923 को हुआ था। राजस्थान में उनको लोग बाबोसा के नाम से जानते हैं। उन्होंने हमेशा राजस्थान के अधिकारों के लिए आवाज उठाई जिसको लेकर लोग उनके बाबोसा बोलते थे। आइए जानते हैं इसके बारे में

ऑनलाइन डेस्क, नई दिल्ली। राजस्थान में इन दिनों चुनावी माहौल जोरों पर है, ज्यादातर राजनीतिक पार्टियों के उम्मीदवार घोषित हो चुके हैं। सीएम गहलोत, पूर्व सीएम वसुंधरा राजे अपने-अपने गढ़ में वोटरों को साधने में लगे हैं। लेकिन इससे पहले हम राजस्थान के मुख्यमंत्रियों से जुड़ा एक और अंक लेकर आए हैं जिसमें आज राजस्थान के 'बाबोसा' यानि भैरों सिंह शेखावत के बारे में बात करेंगे जो अपनी पत्नी से 10 रुपये का नोट लेकर निकले और चुनाव जीत गए और राजस्थान के तीन बार मुख्यमंत्री बन गए।
हाल ही में भैरों सिंह शेखावत की 100वीं जयंती मनाई गई जिसको लेकर पीएम मोदी ने भी ट्वीट कर श्रद्धांजलि दी। भैरों सिंह शेखावत का जन्म 23 अक्टूबर 1923 को हुआ था। राजस्थान में उनको लोग बाबोसा के नाम से जानते हैं। उन्होंने हमेशा राजस्थान के अधिकारों के लिए आवाज उठाई जिसको लेकर लोग उनके बाबोसा बोलते थे। भैरों सिंह शेखावत तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री, तीन बार विपक्ष के नेता, राज्यसभा सदस्य और 12 बार विधायक चुने गए।
पत्नी से 10 रुपये लेकर निकले और जीत गए चुनाव
ये साल 1952 था जब देश में पहली बार चुनाव हो रहे थे, जिसको देखो देश में सिर्फ कांग्रेस ही कांग्रेस गा रहा था। जमींदार और राजघराने कांग्रेस के विरोध में थे, ऐसे में जनसंघ जिसकी जिम्मेदारी राजस्थान में लालकृष्ण आडवाणी पर थी, उनको जनसंघ के लिए योग्य उम्मीदवारों की भी तलाश थी। इस कड़ी में वह उम्मीदवारों की तलाश में सीकर पहुंचे और वहां उन्होंने बिशन सिंह शेखावत से उनके घर पर मुलाकात की क्योंकि बिशन सिंह शेखावत आरएसएस से जुड़े हुए थे और आडवाणी उनको टिकट देना चाहते थे।
लालकृष्ण आडवाणी से जुड़ा किस्सा काफी दिलचस्प
लालकृष्ण आडवाणी अपने दोस्त बिशन सिंह से बोले कि आप जनसंघ के टिकट पर सीकर की दातारामगढ़ सीट से चुनाव लड़ लो, क्योंकि इस सीट पर काफी लोग बिशन सिंह शेखावत और उनको परिवार से भलीभांति परिचित थे। लेकिन बिशन सिंह ने लड़ने से साफ इनकार कर दिया और कहा कि उनकी अभी नौकरी लगी है इसलिए चुनाव नहीं लड़ सकते। लेकिन आडवाणी अपनी मांग पर अडिग थे और बार-बार उनसे चुनाव लड़ने का दबाव डाल रहे थे। जब उनको लगा कि आडवाणी नहीं मानेंगे तो उन्होंने कहा कि आप मेरे भाई को टिकट दे दीजिए और वो भाई था भैरोंसिंह शेखावत....।
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शेखावत के पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वह चुनाव लड़ सकें, फिर याद आई पत्नी
इसके बाद भैरोंसिंह शेखावत के नाम पर लालकृष्ण आडवाणी राजी हो गए। लेकिन यहां से एक नई कहानी शुरू होती है कि भैरोंसिंह शेखावत के पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वह चुनाव लड़ सकें। लेकिन इस घड़ी में शेखावत की पत्नी ने साथ निभाया। बताया जाता है कि चुनाव लड़ने के समय उनकी जेब पूरी तरह से खाली थी और वह सीकर जिला मुख्यालय जाने के लिए भी पैसे जुटा रहे थे। इसके बाद वह अपनी समस्या लेकर पत्नी सूरज कंवर के पास पहुंचे और उनकी पत्नी ने उनको 10 रुपये दिए और वह सीकर पहुंचे और पर्चा भरकर अपना चुनावी अभियान शुरू किया। पत्नी के दिए 10 रुपये इतने भाग्यशाली साबित हुए कि वह चुनाव जीतकर घर लौटे। शेखावत विधायक बनने में कामयाब रहे।
शेखावत का राजनीतिक सफर आगे बढ़ता गया, उसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। शेखावत 19 अगस्त 2002 से 21 जुलाई 2007 तक उपराष्ट्रपति रहे और 1977 से 1980, 1990 से 1992 और बाद में 1993 से 1988 तक राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे और 15 मई 2010 को भैरों सिंह शेखावत का निधन हो गया। जब भी राजस्थान की राजनीति की बात होगी तो 'बाबोसा' का जिक्र न होना ऐसा नहीं हो सकता।
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भैरोंसिंह शेखावत के साथ खास रिश्ता था वसुंधरा राजे का
राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का भैरोंसिंह शेखावत से खास रिश्ता रहा। राजनीतिक नेताओं के मुताबिक, वसुंधरा राजे सिंधिया को राजनीति में लेकर भैरोंसिंह शेखावत लाए थे। इतना ही नहीं, भैरोंसिंह शेखावत ने वसुंधरा को पहले राज्य की राजनीति में स्थापित किया, फिर लोकसभा के चुनाव में उतारकर केंद्र की राजनीति में भी हिट कराया। यही वजह है कि वसुंधरा राजे सिंधिया भैरोंसिंह शेखावत को प्यार से बाबोसा का कहकर संबोधित करती थीं।
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