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Women's Day Special: राजनीति में नारी की 'कागजी' भागीदारी... आधी आबादी के सच से रूबरू कराती यह खबर

Women s Day 2024 Specialआप को जानकर हैरानी होगी कि मौजूदा समय में दिल्ली एनसीआर की 13 लोकसभा सीटों में से केवल दिल्ली की एक सीट पर ही महिला सांसद हैं। नई दिल्ली सीट से मीनाक्षी लेखी को अलग कर दिया जाए तो अन्य एक भी सीट पर महिला सांसद नही हैं। राजनीति में महिलाओं की दशा बताने के लिए दिल्‍ली-एनसीआर का उदाहरण ही काफी है।

By Jagran News Edited By: Deepti Mishra Published: Thu, 07 Mar 2024 05:33 PM (IST)Updated: Thu, 07 Mar 2024 07:32 PM (IST)
Women s day 2024 Special: कागजों में बेहद और जमीन पर सीमित है महिला नेताओं की हिस्‍सेदारी

 वी के शुक्ला, नई दिल्ली। यूं तो देश की महिलाएं राजनीति के उच्च शिखर तक पहुंच चुकी हैं, लेकिन उन्हें राजनीति में वह सम्मान आज तक नही मिल सका है, जिसकी वह हकदार हैं। और तो और देश की राजधानी में जहां देश की संसद है और जहां से देश की सरकार चलती उस दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में भी राजनीति में महिलाओं की भागीदारी की स्थिति अच्छी नहीं है। 

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आप को जानकर हैरानी होगी कि मौजूदा समय में दिल्ली एनसीआर की 13 लोकसभा सीटों में से केवल दिल्ली की एक सीट पर ही महिला सांसद हैं। नई दिल्ली सीट से मीनाक्षी लेखी को अलग कर दिया जाए तो अन्य एक भी सीट पर महिला सांसद नहीं हैं।  राजनीति में महिलाओं की दशा बताने के लिए दिल्‍ली-एनसीआर का उदाहरण ही काफी है।

बेशक महिलाओं को लेकर 1998 से लंबित कानून को संसद से पास करा दिया गया है, जिसमें महिलाओं की 33 प्रतिशत की हिस्सेदारी की बात की गई है, लेकिन राजनीति में महिलाओं स्थिति अभी भी ठीक नहीं है।

दिल्‍ली-एनसीआर में कितनी महिला प्रत्याशी?

एनसीआर में 13 लोकसभा सीटें आती हैं। दिल्ली में प्रत्याशियों के नाम की घोषणा शुरू हो गई है, इसमें से गठबंधन में चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी ने सात में से अपने हिस्से की चार सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं, मगर एक भी महिला को टिकट नहीं दिया है। जबकि भाजपा ने घोषित किए गए पांच सीटों के प्रत्याशियों में से दो महिलाओं को टिकट दिया है।

कांग्रेस गठबंधन में बची हुई तीन सीटों में से किसी सीट पर महिला प्रत्याशी उतारेगी, अभी ऐसा कुछ दिख नहीं रहा है। एनसीआर क्षेत्र की अन्य सीटों पर भी किसी दल द्वारा महिलाओं को उतारे जाने की संभावना नहीं दिख रही है। ऐसे में साफ तौर पर कहा जा सकता है कि राजनीति में कागजों में ज्यादा, जमीन पर कम हिस्सेदारी है। हालांकि, उम्मीद की जा रही है कि आने वाले समय में महिलाओं की राजनीति में भागीदारी बढ़ेगी।

महिलाओं की भागीदारी में भारत पीछे!

अपेक्षा की जाती है कि भारत वर्ष 2030 तक संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के अनुसार, भारत की अर्थव्यवस्था अमेरिका की 1.6% की तुलना में 6.8% की दर से विकास करेगी, लेकिन भारत के इस आशाजनक आर्थिक विकास के बावजूद देश की अर्थव्यवस्था राजनीति में महिलाओं की भागीदारी अभी भी अनुरूप गति नहीं पा सकी है।

हाल के समय में भारतीय चुनावों में मतदान के मामले में एक आश्चर्यजनक बदलाव दिखाई पड़ा है। देश में महिला मतदाताओं द्वारा मतदान में वृद्धि हुई है

इस परिदृश्य में राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की राह में मौजूद बाधाओं को दूर करना समय की मांग है। लैंगिक समता प्राप्त करने के लिए और यह सुनिश्चित करने के लिए कि महिलाओं को राजनीति में भाग लेने का समान अवसर मिले, नीति निर्माताओं, नागरिक समाज संगठनों और आम जनता को मिलकर कार्य करना होगा।

17वीं लोकसभा में कितनी प्रतिशत महिलाएं?

अंतर-संसदीय संघ द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार, भारत में 17वीं लोकसभा में कुल सदस्यता में महिलाएं मात्र 14.44% का प्रतिनिधित्व करती हैं। भारत निर्वाचन आयोग की नवीनतम उपलब्ध रिपोर्ट के अनुसार, महिलाएं संसद के सभी सदस्यों के मात्र 10.5% का प्रतिनिधित्व करती हैं।

राज्य विधानसभाओं के मामले में महिला विधायकों का प्रतिनिधित्व औसतन 9% है। इस संबंध में भारत की रैंकिंग में पिछले कुछ वर्षों में गिरावट आई है। हैरानी की बात तो यह है कि यह वर्तमान में पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से भी पीछे है।

महिलाओं को दिए जाते हैं कम मौके

राजनीतिक जानकारों की मानें तो महिलाओं को राजनीतिक दलों में प्रायः कम प्रतिनिधित्व दिया जाता है, जिससे उनके लिए अपने दलों में विभिन्न पदों से गुजरते हुए आगे बढ़ना और चुनाव के लिए दल का नामांकन प्राप्त करना कठिन हो जाता है। प्रतिनिधित्व की इस कमी को राजनीतिक दलों के भीतर मौजूद लैंगिक पूर्वाग्रह और इस धारणा का परिणाम माना जा सकता कि महिलाएं पुरुषों की तरह चुनाव जीतने योग्य नहीं होतीं।

एक समस्या यह भी है कि भारत एक गहन पितृसत्तात्मक समाज है और महिलाओं को प्रायः पुरुषों से हीन माना जाता है। यह मानसिकता समाज में गहराई तक समाई हुई है और महिलाओं की राजनीति में नेतृत्व एवं भागीदारी की क्षमता के संबंध में लोगों की सोच को प्रभावित करती है। यह एक अच्छी शुरुआत है कि अब इस दिशा में गंभीरता से सोचा जाने लगा है।

नगर निगम में महिलाएं बुलंदी पर तो विधानसभा में... ?

आज दिल्‍ली  नगर निगम में आरक्षण के कारण 50 प्रतिशत महिला पार्षद हैं। यह बात और है कि कई महिलाओं की सीटों को उनके परिवार के लोग देखते हैं, मगर उन्‍हें सम्‍मान मिला है। आज दिल्ली में महापौर के पद पर महिला हैं। गाजियाबाद में भी महापौर पद पर महिला हैं।

आरक्षण नहीं होने पर दिल्ली विधानसभा में महिलाओं की भागीदारी 50 प्रतिशत तो क्या 20 प्रतिशत भी नहीं है। दिल्ली विधानसभा में 12 प्रतिशत महिलाओं ही हिस्सेदारी है। ऐसे में यहां भी उम्मीद की जा रही है कि आने वाले समय में महिलाओं की 33 प्रतिशत भागीदारी नजर आएगी।

भारतीय राजनीति में महिलाओं की भागीदारी को लेकर हम समग्र बात करें तो भारत के इतिहास में आधुनिक काल ही अधिक महत्त्वपूर्ण है। महिलाएं भारत की जनसंख्या का करीब आधी आबादी हैं, लेकिन उन्हें अपेक्षाकृत देश की आर्थिक संपन्नता का कम लाभ मिला है।

अधिकांश महिलाओं के अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत होने के कारण उन पर महामारी का प्रभाव ज्यादा देखने को मिला, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी है। देश भर से ऐसी कई मजबूत औरतों की कहानियां सामने आईं, जिन्होंने अपने घरों से बाहर निकालकर साहस और हिम्मत दिखाते हुए अपने समुदाय की सहायता की।राजनीति में अपना मुकाम हासिल किया है।

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महिलाओं को प्रेरित करती इनकी कहानियां

ये कहानियां दूसरों को आगे बढ़ने के लिए उम्मीद और प्रोत्साहन देती हैं। इनमें हमारे स्वतंत्रता संग्राम में रानी लक्ष्मीबाई, मैडम बीकाजी कामा, कस्तूरबा, अरुणा आसफ अली, सरोजिनी नायडू, सुचेता कृपलानी, विजयलक्ष्मी पंडित ने महत्त्वपूर्ण योगदान किया।

स्वतंत्रता के बाद की राजनीति में इंदिरा गांधी नंदिनी सत्पथी, मोहसिना किदवई, गिरिजा व्यास, सुषमा स्वराज, राजमाता विजयाराजे सिंधिया, वसुंधरा राजे, शीला दीक्षित और स्मृति ईरानी आदि ने सक्रियता दिखाई है।

इंदिरा गांधी ने तो 16 वर्ष तक प्रधानमंत्री के रूप में देश का नेतृत्व किया है और तो और इस समय भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु हैं, जो आदिवासी इलाके से आती हैं।

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