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    Election Manifesto: क्या होता है चुनावी घोषणापत्र? इसे लेकर क्या है सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग की गाइडलाइन

    Updated: Thu, 04 Apr 2024 01:43 PM (IST)

    Lok Sabha Election 2024 लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी-कांग्रेस सहित कई पार्टियां चुनावी घोषणापत्र जारी करने की कवायदों में जुटी हैं। चुनाव से पहले सभी राजनीतिक पार्टियां अपना घोषणा पत्र जारी करती हैं। क्या आप जानते हैं कि विभिन्न पाटियों द्वारा जारी यह घोषणा पत्र कैसे तैयार किया जाता है और इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट एवं चुनाव आयोग की क्या गाइडलाइन हैं? जानिए घोषणापत्र से जुड़े ऐसे सभी सवालों के जवाब--

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    Election Manifesto: चुनाव से पहले हर पार्टी अपना घोषणा पत्र जारी करती है।

    चुनाव डेस्क, नई दिल्ली। किसी भी चुनाव में वोटर ही सर्वेसर्वा होता है और वही अंतिम निर्णायक भी होता है। इसी वजह से चुनाव से पहले सभी पार्टियां अपना घोषणा पत्र लेकर आती हैं, जिसमें यह बताया जाता है कि उनका एजेंडा क्या है। ये पार्टियां अपने घोषणापत्र में यह बताती हैं कि चुनकर आने पर वे जनता के हित में क्या-क्या काम करेंगी, कैसे सरकार चलाएंगी और जनता को क्या फायदा होगा।

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    आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर भी जहां कांग्रेस 5 अप्रैल को अपना घोषणा पत्र जारी करेगी, वहीं भाजपा भी अगले कुछ दिनों में घोषणा पत्र जनता के सामने रखेगी। इसके अलावा अन्य दल भी अपनी घोषणाओं के साथ जनता के सामने जाएंगे।

    कैसे तैयार होता है घोषणा पत्र

    बता दें कि चुनावी घोषणा पत्र तैयार करने के लिए राजनीतिक दल कठिन मेहनत करते हैं, क्योंकि इसी घोषणापत्र को उन्हें जनता के सामने प्रस्तुत करना होता है। घोषणा पत्र के लिए सभी दल एक विशेष टीम का गठन करते हैं, जो पार्टियों की नीति और जनता की मांग के अनुरूप मुद्दों का चयन करती है। फिर पार्टी के पदाधिकारियों और अन्य हितधारकों के साथ इस पर चर्चा की जाती है। इसके बाद आर्थिक, सामाजिक एवं अन्य मुद्दों को लेकर नीतियां तैयार की जाती हैं और इसे घोषणा पत्र के रूप में पेश किया जाता है।

    लेकिन केवल लोगों को लुभाने के उद्देश्य से पार्टियां घोषणा पत्र में कोई भी गलत या भ्रामक वादा नहीं कर सकती हैं। इसे लेकर चुनाव आयोग की कुछ गाइडलाइन हैं, जिनका पालन करना अनिवार्य होता है। सुप्रीम कोर्ट भी इसे लेकर निर्देश दे चुका है।

    सुप्रीम कोर्ट का निर्देश

    सुप्रीम कोर्ट ने 5 जुलाई 2013 को एस. सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु सरकार और अन्य के मामले में फैसला सुनाते हुए चुनाव आयोग को सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के परामर्श से चुनावी घोषणापत्र के संबंध में दिशा-निर्देश तैयार करने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने अपने फैसले में कई बातें कही थीं, जिनमें से कुछ ये हैं-

    • "चुनाव आयोग, चुनाव में लड़ने वाले दलों और उम्मीदवारों के बीच समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए और यह देखने के लिए कि चुनाव प्रक्रिया की शुचिता खराब न हो, घोषणापत्र को लेकर निर्देश जारी करे, जैसा कि आयोग अतीत में आदर्श आचार संहिता के तहत करता आया है। आयोग के पास संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत यह शक्तियां हैं कि वह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए ऐसे आदेश दे सकता है।"
    • "हम इस तथ्य से अवगत हैं कि आम तौर पर राजनीतिक दल चुनाव की तारीख के एलान से पहले अपना चुनाव घोषणा पत्र जारी करते हैं, ऐसी परिस्थिति में चुनाव आयोग के पास किसी भी कार्य को रेगुलेट करने का अधिकार नहीं होता है। फिर भी, इस संबंध में एक अपवाद बनाया जा सकता है, क्योंकि चुनावी घोषणापत्र का उद्देश्य सीधे चुनाव प्रक्रिया से जुड़ा होता है।"

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    चुनाव आयोग की गाइडलाइन

    सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद चुनाव आयोग ने मामले पर चर्चा के लिए मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य राजनीतिक दलों के साथ एक बैठक की। इसके बाद सभी दलों की सहमति से चुनाव आयोग ने आदर्श आचार संहिता के तहत घोषणा पत्र को लेकर दिशा-निर्देश तय किए थे, जिसका संसद या राज्य के किसी भी चुनाव के लिए चुनाव घोषणा पत्र जारी करते समय राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को पालन करना आवश्यक है। आयोग की गाइडलाइन कुछ इस प्रकार हैं:-

    • चुनावी घोषणापत्र में संविधान में निहित आदर्शों और सिद्धांतों के प्रतिकूल कुछ भी नहीं होगा और यह आदर्श आचार संहिता के अन्य प्रावधानों की भावना के अनुरूप होगा।
    • संविधान में निहित राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के तहत राज्यों को नागरिकों के लिए विभिन्न कल्याणकारी उपाय करने के आदेश हैं, इसलिए चुनावी घोषणापत्रों में ऐसे कल्याणकारी उपायों के वादे पर कोई आपत्ति नहीं हो सकती है। हालांकि, राजनीतिक दलों को ऐसे वादे करने से बचना चाहिए, जिनसे चुनाव प्रक्रिया की शुचिता प्रभावित हो या मतदाताओं पर उनके मताधिकार का प्रयोग करने में अनुचित प्रभाव पड़ने की संभावना हो।
    • घोषणापत्र में पारदर्शिता, समान अवसर और वादों की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए यह अपेक्षा की जाती है कि घोषणापत्र में किए गए वादे स्पष्ट हों और इसे पूरा करने के लिए वित्तीय संसाधन कैसे जुटाए जाएंगे, इसकी भी जानकारी हो। मतदाताओं का भरोसा उन्हीं वादों पर हासिल करना चाहिए, जिन्हें पूरा किया जाना संभव हो।
    • चुनावों के दौरान निषेधात्मक अवधि (मतदान शुरू होने से 48 घंटे पहले) के दौरान कोई भी घोषणापत्र जारी नहीं किया जा सकेगा।

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