Purvi Champaran Lok Sabha Election: जिस गांव से चुने गए पहले सांसद, वहां पर क्या है विकास की हकीकत? पढ़िए ग्राउंड रिपोर्ट
Purvi Champaran Lok Sabha Election 2024 नए परिसिमन के बाद से भाजपा के कब्जे में रही पूर्वी चंपारण लोकसभा सीट से पार्टी ने एक बार फिर राधामोहन सिंह को मैदान में उतारा है। वहीं आईएनडीआईए गठबंधन से वीआईपी ने राजेश कुशवाहा को टिकट दिया है। चुनावी लड़ाई के बीच जानिए यहां के पहले सांसद के गांव में क्या है विकास की स्थिति और लोगों के मुद्दे। पढ़ें ग्राउंड रिपोर्ट...
संजय कुमार उपाध्याय, मंगुराहां (पूर्वी चंपारण)। पूर्वी चंपारण लोकसभा को पहला सांसद देनेवाला मंगुराहां, यह महज एक गांव नहीं, बल्कि चंपारण से उठी स्वतंत्रता आंदोलन की लहर को गति देनेवाले उत्साही युवक पं. विभूति मिश्र की जननी भी, जिन्होंने स्वतंत्र भारत में मोतिहारी (अब पूर्वी चंपारण) लोकसभा के पहले सांसद के रूप में जिले का मान बढ़ाया।
जिला मुख्यालय मोतिहारी से 35 किमी दूर स्थित गांव ने कच्ची और कीचड़ सनी सड़क देखी है। अब ‘जर्कलेस’ सड़क का आनंद है। घर-घर बिजली है, गलियां रोशन हैं। घरों तक नल का जल भी। गांव में ही स्कूल है। स्वास्थ्य केंद्र और तीन घंटे में राजधानी तक का सफर करा देनेवाला स्टेट हाईवे और राष्ट्रीय राजमार्ग भी। यह सभी गांव के बदलते और संवरते स्वरूप की कहानी है।
करीब 8 हजार वोटर
16 हजार लोगों की आबादी वाली ऐसी पंचायत है, जहां आठ हजार वोटर हैं। चुनावी रणभेरी बज चुकी है। योद्धा मैदान में हैं...इन सबके बीच गांव की जो कहानी है, उसमें मुद्दे के हवाले से विकास की भूख है। वोट के हकदार की परख करने की शक्ति भी...।
आसान हुई विकास की डगर
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही पं. विभूति मिश्र 1952 में पहले सांसद बने। लगातार 1977 तक रहे। आपातकाल के बाद 1977 में हार गए थे। मंगुराहां चौक पर व्यवसाय कर रहे राजेंद्र मिश्र बताते हैं, 'आती-जाती सरकारों ने विकास के दावों के बीच काम तो किया, लेकिन विकास अधूरा रह गया। समझिए बात को, वोट देने के प्रति जन जिम्मेदारी जरूरी है। वोट देने से पहले वोट की कीमत समझनी होगी। फिर वोट के साथ विकास की राह आसान होगी। चमचमाती सड़क, किनारे सब्जी की दुकान और सभी चौक-चौराहों की रौनक समझ लीजिए।'
इतने में राजेश कुमार बोले, 'वोट देना ही है, कीमत की भी समझ है, नतीजे मिथक तोड़ देंगे...! साफ समझिए माटी में जैसा बीज बोएंगे, पैदावार वैसी ही होगी।’ बृजेश मिश्रा की बात भी सुन लीजिए, 'स्वयं के बूते हैं, काम करते हैं तो खाते हैं, फिर हमारा वोट तो..!' अरेराज-बेतिया मार्ग के किनारे अपने खेत की उपजाई सब्जी लेकर बैठे वशिष्ठ प्रसाद कहते हैं, ‘सुनत नइखीं, चारो ओर का हवा बा। अब चुनाव के दिन आवे दीं गांव के लोग बैठी आ फैसला हो जाई।'
लोगों का ब्रेन वाश हो रहा
यहां के संसदीय इतिहास के पहले विजेता पंडित जी के पौत्र डॉ. पीके मिश्रा वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य पर कहते हैं, बुनियादी ढांचा का विकास होना अभी भी शेष है। पटना में एम्स तो है, लेकिन दिल्ली से उसकी तुलना करके देखिए। मैंने 1971 में एमबीबीएस किया था, मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में नौकरी की। दादाजी के निधन के बाद गांव आया अब अरेराज में सेवा देता हूं। वर्तमान राजनीति लोगों का ब्रेन वाश कर रही है। यह अलगाव और बिखराव को जन्म देगी।
एक कांग्रेसी परिवार के तौर पर कांग्रेस की स्थिति पर कहते हैं, आज उसकी स्थिति वह नहीं है कि अकेले दम पर देश का नेतृत्व कर सके। हां, यह जरूर है कि कांग्रेस की संगठन शक्ति बढ़ी है। गांव के चौराहे पर मिले इम्तियाज व राजेश साह व संजीत राम कहते हैं, 'ऐसा नहीं है कि सबकुछ गुड-गुड है। कुछ तो दर्द बाकी है, कुछ तो विकास बाकी है। आज भले विपक्ष कमजोर लगता है, लेकिन भविष्य समझना होगा...! हम भविष्य समझ रहे हैं। हम हवाबाजी से अलग हैं। कमाते हैं तो खाते हैं, सिर्फ हवा से काम नहीं चलता।'
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